गुरु पूर्णिमा महोत्सव : एक शिष्य जो बन गया गुरु

ओशो जब किसी को दीक्षा देकर नया नाम देते हैं तो उनके नाम के आगे “स्वामी” लगाते हैं… कदाचित इसीलिए कि जिसने शिष्य होने की पात्रता अर्जित कर ली वो एक दिन गुरु भी बन जाता है…  स्वामी शब्द को मैं गुरु के अर्थों में ही लेती हूँ…

गुरु को भी दोस्त बना लेने की आदत कहूं या अदा, फिर मैं और स्वामी ध्यान विनय जब भी ओशो के बारे में बात करते हैं… तो उनके बारे में नहीं, उनके साथ ही बात करते हुए पाये जाते हैं…. उन्होंने ‘स्वामी” कहा तो ध्यान विनय ने उन्हें “बब्बा” कहते हुए दोस्त को भी नया नाम दिया…

“बब्बा” को तो अभी कुछ सात या आठ साल ही हुए हैं नया नाम मिले, मेरी और स्वामी ध्यान विनय की मुलाक़ात के बाद. लेकिन स्वामी ध्यान विनय को दीक्षा के साथ यह नाम मिले आज पूरे 26 साल हो गए हैं…

इन 26 सालों की यात्रा ने उन्हें एक शिष्य से गुरु बना दिया..  या कहूं 26 साल पहले ही गुरू का जन्म हो चुका था…  मुझ शिष्या को पहुँचने में ही थोड़ी देर हो गयी… बब्बा ठीक ही कहते हैं गुरु की कमी नहीं है… कमी शिष्य की है… जिस दिन आप शिष्य होने की पात्रता अर्जित कर लेते हैं… गुरु खुद तुम्हारे द्वार पर आकर खड़ा हो जाता है…

मेरे जीवन के द्वार पर भी जब स्वामी ध्यान विनय ने दस्तक दी तब इस बात पर यकीन हो गया… कि जीवन वह नहीं जो हम शास्त्रों, ग्रंथो और किताबों में पढ़ते आये हैं… वास्तविक जीवन वो है जो इन किताबों, ग्रंथों और शास्त्रों में अपवाद के रूप में प्रस्तुत हैं और हम उन अपवादों को महत्वहीन जानकर छोड़ देते हैं…

स्वामी ध्यान विनय का जीवन उन्हीं अपवादों का संकलन है, तभी कदाचित वो मुझे गुरु रूप में प्राप्त हुए.. क्योंकि मैं वही जीवन का अपवाद हूँ… जिसे लोगों ने सदा से ही जीने योग्य नहीं समझा… और स्वामी ध्यान विनय ने इस अपवाद में ही वास्तविक जीवन को खोज निकाला….

गुरु ही है जो पत्थर को भी तराश कर हीरा बना देता है. मैं तो पत्थर ही हो गयी थी… अहिल्या की तरह… उसे तो कदाचित पता भी था कि राम आकर उसे दोबारा जीवंत कर देंगे… मुझ अहिल्या को तो ये भी पता नहीं था कि उसके जीवन में किसी राम का स्पर्श है भी या नहीं…

…. स्वामी ध्यान विनय खुद कहते हैं… हमारा मिलना एक युद्ध की विजयगाथा है… मैं प्रकृति से आपको छीनकर लाया हूँ… और बावजूद इसके, मैं उनके साथ शुद्ध प्राकृतिक जीवन जीती हूँ…  जीवन जीने का कोई और तरीका हो ही नहीं सकता…

गुरु पूर्णिमा – गुरुओं के लिए एक महोत्सव. क्योंकि यह “जीवन” अपने गुरु के लिए समर्पित महोत्सव ही है.

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