इस झूठ को हम क्या नाम दें?

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इस्लाम मानव इतिहास का पहला मजहब है जिसने सबसे पहले खुद के वैश्विक मजहब और विश्व स्तर पर सर्वश्रेष्ठ होने का दावा किया तथा अपने लाने वाले के बारे में घोषित किया कि उन्हें सारी दुनिया के लिये हिदायत करने वाला और डराने वाला बना कर भेजा गया है.

अब ये बड़ी सामान्य सी बात है कि अगर आपको कहीं कोई चीज़ भरनी है तो पहले उधर जगह खाली करनी होगी, यही इस्लाम ने भी किया.

इस्लाम सारी दुनिया के उद्धार के लिये आया है इसे साबित करने के लिये ये आवश्यक था कि सारी दुनिया को गुमराह, जाहिल और अंधेर में साबित किया जाये.

इसलिये जितने भी इस्लामिक इतिहासकार हुए सबने एक स्वर में यही लिखा है कि इस्लाम के आगमन के समय अरब समेत पूरा विश्व अंधेर और खुली गुमराही में था.

हालांकि इस दावे पर मेरा रत्ती भर भी यकीन नहीं है कि इस्लाम पूर्व का अरब जाहिल था. इसे मैं नहीं मानता.

खैर आज का विषय ये है कि इन्होने इस्लाम के उद्भव के वक़्त के जाहिल मुल्कों में हमारे भारत को कैसे शुमार कर दिया? वो भी तब, जबकि इस्लाम के उद्भव से पूर्व हमारा भारत उन गुप्त शासकों के शासनाधीन था जिनके काल को स्वर्णयुग कहा जाता है.

300 ईस्वी से लेकर पांचवी सदी तक का गुप्त युग न केवल साहित्य, विज्ञान एवं कला के उत्कर्ष का काल था अपितु भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार का काल भी था, धार्मिक सहिष्णुता एवं आर्थिक समृद्धि का काल भी था, श्रेष्ठ शासन व्यवस्था एवं राजनीतिक एकता का काल भी था.

ये वो काल भी था जिसने एक या दो नहीं बल्कि सक्षम सम्राटों की दीर्घ श्रृंखला दी. इसी गुप्त युग ने भारत को एक भाषा, एक मुद्रा, समान कर प्रणाली और एक अखिल भारतीय नौकरशाही का एक निश्चित और स्थायी रूप प्रदान किया.

चीनी यात्री फाहियान के भ्रमण-आलेखों को देखें तो पता चलता है कि गुप्त शासकों ने दंड विधान और कर विधान में मानवीय सुधार करके एक नए युग का सूत्रपात करते हुए भविष्य के लिए एक आदर्श स्थापित किया था.

गुप्त काल में ही प्रथम बार नगरों तथा ग्रामों में स्थानीय शासन का विकास हुआ था और ग्राम सभाओं को वास्तविक अधिकार प्रदान किये गए थे यानि शासन विकेंद्रीकरण का सूत्र भारत को गुप्तों ने दिया.

राज्य कार्यों में नियुक्त शासनाधिकारी न्यूनतम व्यय करें जिसकी व्यवस्था के लिये नरेंद्र मोदी आज लगे हुए हैं, वो गुप्त-साम्राज्य में लागू थी. सर्वपंथ समादर का भाव भी गुप्तकाल की एक बड़ी खासियत थी.

इस काल की आर्थिक अवस्था और विश्व-व्यापार में हमारी हिस्सेदारी अपने चरमोत्कर्ष पर थी, भारतीय पत्तनो का श्रीलंका, फारस, अरब, इथियोपिया, बायजेनटीन (रोमन) साम्राज्य, चीन तथा हिन्द महासागर के द्वीप जैसे कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा, थाईलैंड, मलक्का इत्यादि देशो के साथ स्थायी सामुद्रिक सम्बन्ध बना हुआ था और भारतीय संस्कृति का इन देशों में प्रसार भी इसी दौरान हुआ था.

रसायन, भौतिकी, आयुर्वेद, नृत्य, कला, नाट्य, वास्तु, सारी विधाएँ गुप्त काल में अपने चरमोत्कर्ष पर थीं. गुप्तकालीन मुद्रा को दीनार कहा जाता था जो मध्य-एशिया के देशों में भी चलाई जाती थी.

जिस काल में सम्पूर्ण विश्व हूण आक्रान्ताओं से त्रस्त था, उस समय गुप्त सम्राटों ने न सिर्फ उन आक्रमणों को सफलता पूर्वक रोका बल्कि उनको पराजित कर अपनी वैभवशाली संस्कृति के अधीन समाहित भी कर लिया. ईसाई मसीह का भारत भ्रमण इसी गुप्तकाल में तो हुआ था.

इस्लामिक इतिहासकारों से इतना ही कहना है कि अपने झूठ को बैठाने के लिये खाली जगह खोजनी ही है तो अफ्रीका, यूरोप या अमेरिका चले जाओ, हाँ बेहयाई से झूठ लिखकर अपना गाल बजाते रहना हो तो और बात है.

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