जन्मोत्सव : रेखा जहां पर ख़त्म होती है, वहां से शुरू होते हैं अमिताभ

रेखा जन्मोत्सव की सारी सीरिज़ को जब विराम देने का दिन आया तो ये ख़याल आया, आज 10 अक्टूबर की रात जब रेखा अपना जन्मदिन मना चुकी होगी, तब नए सूर्योदय के साथ 11 अक्टूबर को अमिताभ अपने जन्मदिन की मुबारकें ले रहे होंगे.

उनके वास्तविक जीवन में भी उनका भाग्योदय तभी हुआ जब उनकी मन की रेखा को उन्होंने भाग्य की रेखा नहीं बनने दिया. तब वे अमिताभ बच्चन से बॉलीवुड के बादशाह और फिर बिग बी का सफ़र तय करते हुए आज उस मकाम पर है, जहां उनके चाहने वाले उन्हें सदी का महानायक कहते हैं और लगभग एक देवता के रूप में देखते हैं. रोज़ सुबह उनके घर के बाहर उनके दर्शन के लिए लगने वाली भीड़ तो कम से कम यही कहती है.

मेरी पिछली किसी सीरिज़ में भी मैंने इस बात का ज़िक्र किया था कि हर देवता में कुछ मनुष्य तत्व होते हैं और हर मनुष्य में कुछ देवता तत्व. अमिताभ पर ये बात बिलकुल फिट होती है.

अमिताभ को अपनी इस भव्य छवि को बनाए रखने के लिए कई ऐसे दौर से भी गुज़रना पड़ा जहां एक आम आदमी निराशा के घोर जंगलों में खो जाता है. लेकिन अमिताभ, अमिताभ इसीलिए है क्योंकि उन्होंने इस घनघोर जंगल में ना सिर्फ़ खुद को जीवंत बनाए रखा बल्कि इसी जंगल का राजा बनकर भी दिखाया.

ये उनकी मेहनत, लगन, आस्था, जिजीविषा और माता-पिता का आशीर्वाद है कि आज उम्र के 70 वें दशक में भी वो किसी अन्य नौजवान अभिनेता की तरह ही व्यस्त और सुर्ख़ियों में बने हुए हैं.

प्रेम के बलिदान और गृहस्थ जीवन की तटस्थता को बरकरार रखते हुए अन्दर से भले वो कई बार टूटे होंगे लेकिन समाज के लिए वो एक आदर्श अटूट छवि बनाए रखने में लगातार सफल हो रहे हैं.

जहां एक ओर हम रेखा के जीवन को एक रहस्यमयी ऊर्जा की तरह देखते हैं, तो दूसरी ओर उस रहस्यमयी ऊर्जा के आशीर्वाद स्वरूप अमिताभ दिखाई देते हैं.

दोनों के फिल्मों के सफ़र के बारे में तो हर साल उनके जन्मदिन पर लोग लिखते रहे हैं, लिखते रहेंगे लेकिन मेरे लिए रेखा और अमिताभ को रेखा अमिताभ की तरह ही पेश करना असंभव सा प्रतीत होता है.

रेखा जो है वही ख़ुद को प्रस्तुत भी करती है, इसलिए उसे शब्दों में ढालना ज़रा आसान है. लेकिन अमिताभ जो थे, जो है और जो ख़ुद को प्रस्तुत करते हैं उसके पीछे उनकी अपनी लम्बी तपस्या है, जिसे वही बयान कर सकता है जो इस तपस्या से गुजरा हो.

हाँ कहने वाले इसे उनका व्यावहारिक पक्ष या मतलब परस्ती भी कहते हैं, जो रेखा की बुत परस्ती के आगे कुछ भी नहीं. रेखा के भावों को शब्द देना हो तो मैं उसकी तरफ से यही कहूंगी- “मुझे मेरा एकांत प्रिय है….. जैसे प्रिय से मिलना एकांत में.”

नाना पाटेकर सहित ऐसे कई दिग्गज निर्देशक हैं जो रेखा अमिताभ की जोड़ी को परदे पर एक साथ देखने का सपना आज भी अपनी आँखों में संजोए हुए हैं. पता नहीं उन दोनों के सामने ये प्रस्ताव रखने का किसी ने हौसला दिखाया हो या ना दिखाया हो लेकिन जिस दिन दोनों एक साथ फिर परदे पर होंगे उस दिन फ़िल्मी इतिहास के पन्ने पर एक नया अध्याय जुड़ जाएगा.

हालांकि मैंने अपने जीवन की कहानी “नायिका” में इन्हीं दोनों को किरदार के रूप में लिया है.

कहते हैं, पिछले जन्म के किसी योगी की तपस्या किसी कारणवश पूरी नहीं हो पाती तो वो योगी “योग भ्रष्ट” कहलाता है. लेकिन उस जन्म की तपस्या के कारण अपने अगले जन्म में वो बहुत ख्याति प्राप्त करता है. जो लोग जन्मकुंडली और चेहरे की बनावट का शास्त्र जानते हैं वो इस बात की पुष्टि भी करते हैं.

अमिताभ मुझे उसी योगी की तरह दिखाई देते हैं, जिसका हर जन्म एक तपस्या है. और रेखा उस व्यक्ति के हाथ की वो रेखा है जो योगी की तपस्या का एक कारण बनती है.

रेखा और अमिताभ को जन्मदिन की रात के उस संधि-क्षण की शुभकामनाएं, जहां जीवन का कम से कम एक क्षण दोनों के लिए हैं, जहां दोनों उपस्थित हैं, जहां दोनों के लिए हज़ारों दिलों की शुभकामनाएं उपस्थित हैं.

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