वो जिज्ञासा के ग्रन्थ में जोड़ता है रोज़ नए सूत्र
मैं आकर्षण के शाश्वत नियम की रचती हूँ लीलाएं
वो ब्रह्माण्ड की विशालता पर अभिभूत, देख नहीं पाता
सबसे करीबी विचार की घेराबंदी
मैं सबसे करीब विचार की खिड़की से देख लेती हूँ
ब्रह्माण्ड के मैदान में पृथ्वी का गेंद की तरह उछलना
वो प्रेम में देह के गुणा के बाद भी
ऋण चिह्न के साथ बचता है
मैं प्रेम से देह को घटाकर भी
धनात्मक हो जाती हूँ
उसकी बातों का प्रेम रसायन क्षारीय है
मेरे अम्लीय मौन को संतृप्त होने की लालसा
लेकिन मिलन की आस का अंतिम क्षण
घड़ी के कांटे पर आकर टूट गया है
समय ने टूटे क्षण को अतीत कहकर
रोक लिया है वर्तमान में प्रवेश से
जीवन सारे विषयों समेत हाज़िर है उसकी सेज पर
वो विषय को विकार समझ गा रहा है देवताओं के गीत
वो नहीं जानता ये देवताओं का ही षडयंत्र है
कि आत्मा को परमात्मा तक पहुँचने के लिए
देह की गुफ़ा से गुज़रना होगा…
गुफ़ा के प्रवेश द्वार पर मैंने आशा का एक दीप जलाया है
बुझने से पहले कदाचित वो नेह डाल जाए…