नई दिल्ली. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक पैनल ने दावा किया है कि तीस्ता सीतलवाड़ और उनके सबरंग ट्रस्ट ने धर्म-राजनीति का ‘घालमेल’ कर दुर्भावना फैलाने की कोशिश की थी.
पैनल का दावा है कि सबरंग ट्रस्ट को लगभग 1.4 करोड रुपए का अनुदान देने वाली यूपीए सरकार के लिए पाठ्यक्रम के कंटेट बनाने के दौरान ‘धर्म और राजनीति का घालमेल’ करने और दुर्भावना फैलाने की कोशिश की.
समिति के निष्कर्षों को एक शीर्ष कानूनी अधिकारी का समर्थन प्राप्त है. समिति ने पाया कि प्रथम दृष्टया सीतलवाड़ के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए और 153बी के तहत मामला बनता है.
इन धाराओं में धर्म आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने का और राष्ट्रीय अखंडता को लेकर पूर्वाग्रहों से ग्रसित आरोप लगाने एवं दावे करने का मामला बनता है.
बताया जा रहा है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय को कानूनी अधिकारी की ओर से मिली राय में कहा गया है, ‘जांच समिति की रिपोर्ट व्यापक है और यह मामले के हर पहलू को देखती है.
रिपोर्ट में कहा गया कदम उल्लंघनों की जिम्मेदारियां तय करने, दुर्भावना और घृणा फैलाने के खिलाफ कार्रवाई करने और योजना में लगाए गए धन की पुन: प्राप्ति के लिए उठाया जा सकता है.
अधिकारी ने यह राय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल की रिपोर्ट का पूरा अध्ययन करने के बाद दी.
इस पैनल ने सीतलवाड़ को ‘शिक्षा की राष्ट्रीय नीति’ योजना के तहत अपनी परियोजना ‘खोज’ के लिए मिले कोष के वितरण और उपयोग की जांच की.
मंत्रालय द्वारा गठित तीन सदस्यों वाली इस समिति में उच्चतम न्यायालय के वकील अभिजीत भट्टाचार्य, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति एस के बारी और मंत्रालय के एक अधिकारी गया प्रसाद थे.
इस समिति का गठन सीतलवाड़ के करीबी सहयोगी रहे रईस खान पठान के आरोपों की जांच के लिए किया गया था.
पठान ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि सबरंग ट्रस्ट के प्रकाशन ‘देश के अल्पसंख्यकों में असंतोष फैलाते हैं और भारत को गलत तरीके से पेश करते हैं’ और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं.
ये निष्कर्ष इस लिहाज से महत्वपूर्ण हैं कि सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ दो दशक पुराने एक फैसले पर पुनर्विचार कर रही है, जिसमें कहा गया था कि हिंदुत्व एक ‘जीवन शैली है’ और सीतलवाड़ ने इसमें हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगी है.
रिपोर्ट में कहा गया कि ‘सबरंग ट्रस्ट’ के किसी भी दस्तावेज में शिक्षा कभी एजेंडा नहीं रहा. सीतलवाड़ और उनका ट्रस्ट ‘छोटे बच्चों की कक्षा में धर्म का राजनीति के साथ घालमेल करने की कोशिश करता दिखाई देता है. ये वे बच्चे हैं, जो ज्यादा संपन्न पृष्ठभूमि से नहीं आते.’
धन प्राप्त करने की ‘उसकी योग्यता में असल समस्या और बाधा यही है.’ हालांकि समिति ने कहा कि धन प्राप्त करने के लिए ट्रस्ट की अयोग्यता की वजह यह है कि ट्रस्ट के दस्तावेज ‘सीतलवाड़ के लेखन में उच्चतम न्यायालय की अवमानना’ दर्शाते हैं.
समिति ने ट्रस्ट को 2.05 करोड़ रूपए आवंटित किए जाने पर सवाल उठाया था. ट्रस्ट को इसमें से 1.39 करोड़ रुपए जारी किए गए क्योंकि वह इसका 50 प्रतिशत भी इस्तेमाल कर पाने में अक्षम था.
रिपोर्ट में सीतलवाड़ का एक बयान उद्धृत किया गया है जिसमें उन्होंने हिंदुत्व को ‘जीवन शैली’ बताने से जुड़े उच्चतम फैसले के बारे में टिप्पणी की थी.
रिपोर्ट में कहा गया कि यदि यह अपराध का उचित मामला नहीं है तो फिर और क्या होगा?
अधिकारी ने यह राय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल की रिपोर्ट का पूरा अध्ययन करने के बाद दी.
इस पैनल ने सीतलवाड़ को ‘शिक्षा की राष्ट्रीय नीति’ योजना के तहत अपनी परियोजना खोज के लिए मिले कोष के वितरण और उपयोग की जांच की.
पैनल ने कहा कि मंत्रालय के तत्कालीन अधिकारी ट्रस्ट की ओर से की गई ‘झूठी घोषणाओं’ को पहचानने में विफल रहे क्योंकि उनपर परियोजना को मंजूरी देने की एक तरह की ‘बाध्यता’ थी.
समिति ने उनके खिलाफ भी कार्रवाई का सुझाव दिया. समिति ने कहा कि ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के तहत ट्रस्ट ‘खोज’ को दिया गया जनता का धन ‘दुर्भावना, शत्रुता की भावना, घृणा आदि फैलाने वाला पाया गया.’
‘खोज’ परियोजना को सीतलवाड़ के एनजीओ ने महाराष्ट्र के कुछ जिलों में शुरू किया था.