हम जैसे उधार का कारोबार करने वालों के स्वभाव में एक खास तरह की क्रूरता होती है. चाहे वो ब्याज पर रुपये देने का काम करनेवाला महाजन हो या फिर ऐसा कारोबारी जिसके कारोबार मे उधार पर सामान बिकता हो.. उनके स्वभाव की ये क्रूरता तब कुछ ज्यादा ही शो होती है जब हम तगादे (वसूली) पर निकलते है..!!
मेरा तेल घी चीनी चाय इत्यादि समेत डीलरशिप का थोक का कारोबार है. शहर की छोटी बडी किराने की दुकानों पर सप्लाई का काम है जिसमें अधिकतर माल उधार पर बिकता है. रोजाना एक स्थापित रूटीन के अनुसार हमारा मुनीम शाम को तगादे पर निकलता है और उधार की रकम वसूल करके लाता है.
इस क्रम में रोजाना ही दुकानदारों से कहासुनी और खटपट होती रहती है. कोई पेमेन्ट कम देता है… कोई बहाना बनाता है… कोई मजबूरी बता देता है. इस सिचुएशन की हम जैसे कांईया और घाघ कारोबारी को आदत होती है.
हम भी लेट भुगतान करनेवाले दुकानदारों को भाव तेज लगाते हैं… ब्याज लगाते हैं. खासकर गलियों और मोहल्ले वाले छोटे दुकानदारों को. बेचारों को तीनों मार लगती है .. भाव भी ऊंचे…. नाजायज दर का ब्याज भी और हमारी डांट डपट भी..
पहली दुकान थी… भाटिया प्रोविजन स्टोर.. ये हमारे शहर की एक नामी और बडी दुकान है जो काफी अच्छी चलती है. इसका मालिक इन्द्र भाटिया अच्छा खासा पैसेवाला है मगर नीयत का एकदम लीचड..
उसकी तरफ 32000/- निकलते थे और ये कलम भी चीनी जैसी आईटम की थी जो मुश्किल से 1% का धंधा है. बाजार में चीनी की पेमेन्ट का स्थापित नियम एक से दो दिनो का है.
उसकी दुकान के बाहर मैंने बाईक रोकी. मुझे देखते ही भाटिया अपने कांऊटर से उठ खड़ा हुआ और निहायत नकली अंदाज से बाला..”राम राम संजय जी ..!!”
मैंने भी नकली मुस्कान के साथ उत्तर दिया…” राम राम भाटिया जी..”
“आओ जी आओ.!!..कहिए क्या सेवा करे संजय जी..?”
“अरे मालिक….एक परचा तो क्लीयर करवा दो हमारा. चीनी की पेमेन्ट है ….इसमें क्या कमा लिया हमने..!! दो महीने हो गये. ब्याज लगाऊँ तो आपको बुरा लग जायेगा. .!!”
“संजय जी… हमने पेमेन्ट के लिए कब मना किया !! आपका माल वो नहीं आया जो हमने कहा था. हमने M 30 का नया माल आर्डर किया था…. जूट बोरी पैकिंग और बिल्कुल सफेद दाना..!! हम तो क्वालिटी का बट्टा काटकर पेमेन्ट आपके मुनीम को दे रहे थे ….इसने ही नहीं लिया तो हमारी क्या गलती है..!! ”
” भाटिया जी… आपने यमुनानगर की चीनी मांगी थी और हमने वही माल भेजा था …M30 का नया माल. रही बात पैकिंग की तो मिलवाले अब प्लास्टिक बैग में ही पैकिंग करते है ये तो आप भी जानते हैं..”
“तो आपको पहले बताना चाहिये था. जूट की खाली बोरी 60/- की बिक जाती है जबकि प्लास्टिक बैग 5/- का भी नही बिकता.. और माल भी पुराना था…. पीला और बारीक दाना.. हमारा तो घाटा हो गया न..!!
“माल बिल्कुल फ्रेश था भाटिया जी…!! जरा सैंपल दिखाईये हमारे माल का..!!”
“अब सैंपल कहाँ रखा है जी…!! हमने तो सारा माल कमती बेसी करके बेच बाच दिया. 200/- भाव का बट्टा और 50/- बोरी का डिफरेंस. कुल 250/- के हिसाब से दस बोरी के 2500/- लेस करके पेमेन्ट ले जाओ. हमको आपकी पेमेन्ट रोककर क्या करना है संजय जी..!!!”
मैंने असहाय भाव से गर्दन हिलाई… मैं अच्छी तरह समझ रहा था कि कमीना सरासर झूठ बोल रहा है. न तो माल पुराना और पीला था न ही दाना बारीक था. उसकी नीयत में बेईमानी साफ दिख रही थी. मुझे अपने बाऊजी के वो शब्द याद आये जो वो अक्सर कहा करते थे…”पढ़ ले बेटा फारसी तले पडे सो आरसी..! ”
” अरे भाटिया जी… मुश्किल से 250-300/- भी नहीं कमाये इस कलम में और आप 2500/- काट लोगे..!! ये तो कोई बात नहीं हुई..!! ”
वो बेशर्मी से खीसे निपोर कर बोला…” हे हे हे… संजय जी. हजार दो हजार में आप लोगो को क्या फर्क पडता है !! आप लोग तो समंदर हो. आज थोड़ा बहुत घाटा हुआ है हमसे …तो कल हमी से कमाओगे भी. मुनीम जी…हमारा आर्डर नोट करो..॥ दस बोरी यमुनानगर की चीनी M 30…दो पेटी नोवा… दो पेटी महाकोश और पांच टीन गोकुल घी..!! माल कल सुबह भेज देना…भाव जायज भर लेना …वैसे भी आपके भाव तो जायज ही होते है..॥ ”
मैंने कुछ नहीं कहा. मुझे समझ में आ चुका था कि झिकझिक करना बेकार है. मुनीम ने आर्डर नोट कर लिया. भाटिया ने निहायत बेशर्मी से दांत निपोरते हुए 2500/- काटकर मुनीम को भुगतान कर दिया.
खून का घूंट पीकर हम वहां से अगले पड़ाव की ओर चले. वो भिवानी के एक पिछड़े इलाके सेवानगर की एक तंग गली में एक छोटी सी दुकान थी… जो एक पुराने से खस्ताहाल मकान में ही बनी थी.
उसकी तरफ 2800/- निकलते थे जो पिछले 6 महीने से बाकी थे. मैंने लेजर पर निगाह दौड़ाई तो पाया कि अमूमन उनकी पेमेन्ट लेट ही रहती थी. पिछली हर पेमेन्ट के साथ 2.10 रु का नाजायज ब्याज वसूला गया था और रेट भी 10-15% ऊंचे लगाये गये थे..
” कमाई वाली असामी..!! “… मैंने मन ही मन सोचा…
मैंने पाया कि दुकान में माल भी नहीं था. बदरंग हो चुकी दीवारों के साथ टूटा फूटा फर्नीचर अपनी बदहाली की कहानी खुद कह रहा था. अधिकतर खाने खाली थे. किसी किसी खाने में दो चार लोकल कंपनी के वाशिंग पावडर के पुराने पैकेट. ..कहीं कहीं नमक के कुछ पैकेट पड़े थे..
एक रस्सी पर कुछ चिप्स और कुरकुरे के पैकेट टंगे थे… टूट कर टेढ़े हो चुके कांऊटर पर तीन चार जार रखे थे जिनमें किसी लोकल कंपनियों की टाफिया आधी चौथाई भरी थी. दुकान की हालत देखकर मेरी अनुभवी आंखो ने ताड लिया कि….” यहाँ तो पेमेन्ट डूबत में है..!!”
दुकान में एक नई तब्दीली भी नोटिस में आई. वो ये कि कांऊटर के भीतर की ओर सतबीर ( दुकान का मालिक) की जगह एक महिला बैठी थी जो सिलाई मशीन पर तल्लीनता से थैले सी रही थी. उसके चेहरे पर दर्द.. विषाद. ..संताप के मिलेजुले भाव थे.
हमें आता देखकर उसने सिर पर ढंका पल्लू ठोड़ी तक खींच लिया और उठ खडी हुई.
” सतबीर कहाँ है..? “….मैंने महाजनी के गुरूर भरे स्वर में रूखाई से पूछा.
वो घूंघट के अंदर से दीनहीन भाव से बोली..” जी वो बीमार है.. ”
“वही पुराना बहाना !! ” ….मैंने मन ही मन सोचा. अक्सर छोटे दुकानदार पेमेन्ट वाले दिन भुगतान से बचने के लिए घर की महिलाओं को बिठाकर कुछ बहाना बना दिया करते थे. मै तनिक क्षोभ में आ गया. शायद भाटिया का गुस्सा भी हावी था मुझ पर.
” बीमार है या भीतर बैठा है..? ”
“जी बीमार है काफी !! टायफाईड बिगड़ गया था. अब तो डाक्टर ने बिल्कुल आराम करने के लिए कहा है. आप बताईये…कुछ काम था..? ”
” आप कौन हो..?”
” उनकी घरवाली..”
” ओहह..!! देखिए हमारे पैसे बाकी है… ब्याज समेत 3100/- बनते हैं. छः महीने हो गये..”
” भाई साहब..!! अभी तो बेहद तंगी चल रही है. दुकान के सारे पैसे और घर की जमा पूंजी इनके इलाज मे लग गये. बडी मुश्किल से गुजारा चल रहा है. सारे दिन थैले सिलकर जो कुछ मिलता है उससे चूल्हे का खर्चा भी नहीं चलता. आप कुछ दिन रुकिए…. ये जरा ठीक हो जाये फिर आपके पैसे जरूर दे देंगे..” ….वो रूंआसे स्वर में बोली.
मुझे अब भी लगा कि वो टरकाने के लिए बहाने बना रही है. मैंने रूक्ष भाव से कहा… ” हमारे पैसे कोई फोकट के नहीं है. आपकी बीमारी से हमें क्या मतलब ..!! ये सब तो हर घर मे चलता रहता है. यूं सब लोग हमारे पैसे रोकने लगे तो हमारा काम कैसे चलेगा ..?? एक तो उधार दो फिर पेमेन्ट के लिए चक्कर काटो..!! ”
उसने चुपचाप सिर झुका लिया. पल्लू के कोने से आंखे पोंछी..
मुझे अंदर ही अंदर कुछ कचोट रहा था. मैं ऊहापोह की स्थिति में खड़ा था और सोच ही रहा था कि वापस चला जाय. पेमेन्ट डूब चुकी थी…. साफ दिख रहा था.
तभी 13-14 साल का एक किशोर बाहर से आया और हमारी ओर ध्यान दिये बिना काउंटर सरका कर अंदर गया. उसने महिला के हाथ में कुछ थमाया और बोला…” मम्मी. .!! ये तीन हजार रूपये पड़ोस वाली विमला चाची ने भेजे है और कहा है कि पापा की दवाई मंगा लेना..”
एक पल को चुप्पी सी छा गई. मैं मै मन ही मन शर्मिन्दा हो गया. मैं वापस जाने के लिए मुड़ने ही वाला था कि महिला ने मुझसे कहा…” भाई साहब..!! ये लो आप तीन हजार रूपये. बाकी के सौ रूपये अगले हफ्ते ले लेना जब सिलाई के मजदूरी मिल जायेगी..”
उसने बेटे द्वारा लाये गये तीन हजार रूपये बेहिचक मेरी ओर बढ़ा दिये. घूंघट की ओट में छिपी उसकी आंखे मुझे नहीं दिख रही थी मगर स्वाभिमान की चमक से भरी उन आंखो का सामना करने की हिम्मत मैं खुद भी नहीं पा रहा था.
मगर फिर भी यहाँ वाणिक बुद्धि … इंसानी दिल पर हावी हो गई. मैंने चुपचाप रुपये ले लिये.
इतने में पड़ोस से एक आठ-दस साल एक का बालक दुकान में आया और महिला से बोला..” चाची… आधा किलो चीनी… पावभर चायपत्ती और चार बिस्कुट के पैकेट दे दो..”
महिला मीठे स्वर मे बोली..” बेटा… सामान बिल्लू की दुकान से ले लो. मम्मी को कह देना कि हमने दुकान उठा दी है. ” कहकर वो वापस सिलाई मशीन पर बैठ गई.
हम वहाँ से रवाना हो गये.
अगले दिन…
दुकान मे दीया बत्ती करने के बाद.. मुनीम मेरे पास आया…” किसी की डिलीवरी करवानी है क्या भाई साहब? रेहडीवाला खाली बैठा है.”
“हाँ. ..एक डिलीवरी अर्जेन्ट है अभी.”
“किसकी..?”
मैने मुस्कराते हुए कहा…” सेवानगर वाले सतबीर की दुकान की. शर्मा जी… गली मोहल्ले वाली दुकानो में बिकने वाले सामानों की लिस्ट बनाओ और बीस हजार का माल वहाँ आप खुद साथ जाकर देकर आओ.!!
याद रहे कोई भी आईटम बाकी न रहे. जो सामान हमारी दुकान में नहीं वो जैन चौक से ले लेना और बिल्कुल लागत भाव लगाना सबका. और ये पकड़ो तीन हजार रुपये… ये सतबीर की घरवाली को वापस कर देना और कह देना कि पेमेन्ट की चिंता बिलकुल नहीं करेगी. सामान और चाहिए तो बेहिचक मंगवा ले. समझ गये….!!”
तभी मेरे मोबाइल की रिंग बजती है… मैंने स्क्रीन पर नजर डाली तो पाया कि भाटिया का फोन था. मैने फोन रिसीव किया…
भाटिया की आवाज आई..” अरे संजय जी… क्या हुआ..! माल कब भेज रहे हो ? ग्राहक वापस जा रहे है. माल जल्दी भिजवाओ..”
मैने मुंह बिसूर कर बड़ी बेरुखी से उत्तर दिया…” भाटिया जी.!! आप जैसे चोर को हम माल नहीं देते ..समझे. !! अब आईंदा माल के लिए फोन मत करना. माल चाहिए तो नगद पेमेन्ट लेकर दुकान पर आओ. बेईमानों को हमने उधर देना बंद कर दिया है..”
मुनीम हैरत से मेरा मुंह देख रहा था.
मै संतोष से मुस्कुरा रहा था..!!!!
– संजय अग्रवाल