पिछले दिनों लखनऊ में एक मित्र मिले. भाजपा समर्थक हैं.
कहने लगे, यूपी में तो बसपा आ रही है.
मैंने पूछा, इस आशावाद, या यूँ कहें कि निराशावाद का आधार क्या है?
कहने लगे, लोग उसे बहुत पसंद करते हैं?
कौन से लोग? और क्यों पसंद करते हैं?
इसका उनके पास कोई तथ्यात्मक जवाब नहीं था….
मेरे गाँव माहपुर की हरिजन बस्ती में 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती मनाई गयी. और बाकायदा माइक लगा के ब्राह्मणों और ब्राह्मणवाद के खिलाफ विष वमन हुआ.
पूरे सप्ताह भर इस विष वमन की चर्चा गाँव में हुई.
2007 में बहन मायावती ने अपने ब्राह्मण महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को आगे कर प्रदेश में ब्राह्मण हरिजन गठजोड़ तैयार किया.
100 से ज़्यादा ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिए गए. मायावती की ये रणनीति कामयाब रही और उन्होंने चुनाव जीत लिया.
पर अब 2007 से 2017 तक गंगा में बहुत ज़्यादा पानी (सीवर) बह चुका है. देश और प्रदेश की राजनीति बदल चुकी है.
2007 में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा एक हारी हुई, हतोत्साहित पार्टी थी जो देश की जातीय वर्गीय वोटबैंक राजनीति को साधने में नाकामयाब थी. वैश्य मने बनिया छोड़ एक भी ऐसा जातीय समूह न था जो भाजपा का बंधुआ वोटर हो.
उन दिनों यूपी में भाजपा चौथे नंबर की पार्टी थी और मुलायम सिंह की सपा anti incumbency झेल रही थी, इसलिए मायावती ने आसानी से दलित, ब्राह्मण (सवर्ण) और पिछड़ी जातियों के साथ एक मज़बूत राजनैतिक समीकरण खड़ा कर लिया था.
मुस्लिम वोट तो भाजपा के खिलाफ किसी को भी वोट दे देता है इसलिए वो भी चुपचाप हाथी पर चढ़ गया.
पर जैसा मैंने कहा तब से अब तक बहुत सीवर बह गया गंगा जी में…..
दरअसल कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने मायावती की खीर टेढ़ी कर है . देश भर के अम्बेडकर वादी भी अति उत्साह में राहुल गांधी के साथ शामिल हो गए और मायावती बेबस लाचार देखती रह गयी.
हुआ यूँ कि विपक्ष ने मोदी को घेरने के लिए रोहित वेमुला नामक एक OBC को फ़र्ज़ी दलित बना, उसकी आत्महत्या को एक फ़र्ज़ी ह्त्या बना के, एक फ़र्ज़ी मामला दलित बनाम सवर्ण लड़ाई शुरू कर दी.
मीडिया ने भी मुद्दे को TRP के चक्कर में लपक लिया. सोशल मीडिया में भी सवर्णों को गरिया के दुकान चलाने वाले अम्बेडकरवादियों ने आग में खूब घी डाला.
देश की सभी समस्याओं की जड़ मनु स्मृति और (मनु) स्मृति ईरानी को बताया जाने लगा. गुड़गांव का नाम गुरुग्राम रखते ही लोगों को एकलव्य का अंगूठा काटते बाभन द्रोणाचार्य याद आ गए…..
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस दलितों का अपना खोया जनाधार पाने के लिए संघर्ष कर रही है. आंबेडकरवादी जाने-अनजाने ब्राह्मणों को गरिया रहे हैं.
इस उत्साह में मायावती का वोट समीकरण गड़बड़ा गया है. चमार जाटव यूपी में बाभनों को गरिया रहे हैं.
चुनाव जीतने के लिए एक Umbrella (छतरी) बनानी पड़ती है. जिसमे एक core votebank की नीव के ऊपर छोटे-छोटे जातीय धार्मिक समूहों के वोट बैंक खड़े कर वोट की इमारत खड़ी होती है.
2014 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में बड़े बदलाव आये हैं. सवर्ण वोट और गैर यादव OBC बड़ी संख्या में भाजपा के खेमे में आ गया है और मजबूती से खड़ा है. मुलायम कमजोर हुए हैं सो 20-30 % यादव भी भाजपा के साथ आ गए हैं.
भाजपा के खिलाफ मुस्लिम वोटबैंक अभी तक तो भ्रमित है. आगे भी भ्रमित ही रहेगा. पहले 3 शौहर थे, अब चौथा भी आ गया. किसके किसके साथ सोये? सपा-बसपा-कांग्रेस पहले से थीं, अब ओवैसी भी आ गए हैं.
हिन्दू वोटबैंक (यदि ऐसी कोई चीज़ हो तो) के अलावा सवर्ण यूपी में भाजपा के साथ डटे हुए हैं. ठाकुर, बाभन, भुइहार….
वैश्य स्वर्णकार excise को लेकर अभी नाराज हैं पर देर सवेर भाजपा मना लेगी….. भाजपा ने सबसे बड़ी बढ़त जो हासिल की है वो OBCs में की है….
राजभर, मौर्य, बिंद, मल्लाह, पासी, सैनी….. इनका बड़ा votebank है जो भाजपा के साथ मजबूती के साथ डटा हुआ है…..
पश्चिमी यूपी में तो मायावती के core वोट जाटव हरिजन तक को स्थानीय राजनीति और मुज़फ्फरनगर दंगे से हुए ध्रुवीकरण के चलते मजबूरन भाजपा को वोट देना पड़ रहा है.
ये तो हुई चर्चा जातीय समीकरणों की…..
पर इस समय यूपी में एकमात्र मुद्दा जो चल रहा है वो विकास का है….. मोदी के विकास कार्यों की बड़ी चर्चा है.
सड़क और भूतल परिवहन मंत्रालय ने बड़ी संख्या में सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग मने NH घोषित कर दिया है.
2017 में चुनाव में जाने से पहले मोदी इन सड़कों को वर्तमान स्वरुप में ही सही चिकना करा देंगे. इसके मुकाबले मुलायम अखिलेश की समाजवादी सड़क का हाल तो सब देख ही रहे हैं.
इस रेल बजट में पूरा फोकस यूपी पर रहा. पीयूष गोयल का ऊर्जा मंत्रालय भी बेहद सक्रिय है यूपी में. इधर अखिलेश ने बिजली आपूर्ति सुधार के 6 घंटे से बढ़ा के 12-14 घंटे तक की है जो चुनाव आते आते 16-18 घंटे हो जायेगी, पर इसका श्रेय पीयूष गोयल और मोदी को ही मिलेगा.
मुलायम यादव का चुनाव हारना तय है और हारती हुई सपा और उसका वोटर मायावती की जगह भाजपा को बेहतर विकल्प मानता है.
यदि यूपी में भी बिहार की तर्ज पर भाजपा के खिलाफ कोई बहुत बड़ा गठबंधन न बना तो भाजपा का आना तय है.