आवश्यकता ही लाएगी उद्यमिता, हम चीन को भी बेचेंगे अपना माल

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चीन के सामान के बहिष्कार को लेकर तमाम लोग चुटीले अंदाज़ में कमेंट कर रहे हैं.

कोई चीन के बने मोबाइल से चीन की झालर का बहिष्कार करने के आह्वान का मज़ाक बना रहा है, कोई बता रहा है कि चीन से मेट्रो आ रही है.

कोई सरदार पटेल की मूर्ति के चीन में बनने की बात कह रहा है, कोई कह रहा है कि सरकार ही चीन के माल पर बैन लगा दे, मैं इस सब लोगों से सहानुभूति रखता हूँ.

पहली बात, सरकार किसी भी देश के सामान पर बैन नहीं लगा सकती क्योंकि सरकार WTO और GATT के नियम व शर्तों में बंधी है.

आप तभी किसी देश के सामान पर बैन लगा सकते है अगर वो इंसान की सेहत या वातावरण पर सीधा नुकसान पैदा कर रहा हो.

तो इस मामले से सरकार को तो रखें बाहर ….

इस आह्वान के पीछे राष्ट्रवादी लोगों की सोच है. मैं इसको सीधे सीधे पॉजिटिव तरीके से लेता हूँ.

ऐसे भी सामान चीन से आते हैं जो कि आसानी से भारत में बन सकते हैं, इसके लिए कोई बहुत बड़े तकनीकी ज्ञान या बड़ी फैक्ट्री की जरूरत नहीं. जरूरत है कर्मठ लोगों की जो इसको बनाने के लिए कमर कस के मैदान में कूद जाए.

भारत के साथ बहुत बड़ी कमी ये रही है कि भारत ने सर्विस और सॉफ्टवेयर में बहुत बढ़ चढ़ कर काम किया गया जबकि हार्डवेयर में ना के बराबर काम हुआ. जिसके कारण हम उद्यमिता में और लघु उद्योग में पिछड़ते चले गए.

सॉफ्टवेयर में कम लागत में ज्यादा मुनाफा है जबकि हार्डवेयर के लिए बड़े सेटअप की जरूरत होती है.

एक तरफ सॉफ्टवेयर/आईटी सर्विस सेक्टर खड़ा करने के लिए जहाँ एयरकंडीशंड कमरे में मात्र कंप्यूटर लगा के काम कर सकते हैं तो वहीँ हार्डवेयर में बड़ी-बड़ी मशीन और प्रोसेसिंग के उद्योग लगाने पड़ते हैं.

कम लागत में ज्यादा मुनाफा के चलते सॉफ्टवेयर/आईटी खूब बढ़ीं लेकिन किसी देश की असल औद्योगिक ताकत ‘उत्पादकता’ रसातल में जाती रही.

इस सब के बीच चीन ने हार्डवेयर में ताकत बनाई जिससे उसके यहाँ एलईडी से लेकर माइक्रोप्रोसेसर भी बनने लगे.

सभी इलेक्ट्रॉनिक पार्ट और चिप बनने की वजह से वहां उद्यमिता चरम पर पहुँच गयी और वहां मध्यम और छोटे उद्योगों की बाढ़ सी आ गयी.

वो खुद के अपने मोबाइल, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक के अन्य उपकरण बनाने लगा.

अब जब भारत में Make in India का कदम उठाया गया है तो मुझे विश्वास है कि अब व्यवस्थाएं बदलेंगी.

कई बड़े औद्योगिक घरानों ने इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेन्ट बनाने के लिए भारत में पहल की है और इस पर काम हो रहा है.

अगले कुछ वर्षों में भारत में ही इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेन्ट का उत्पादन शुरू होगा. इसके साथ भारत में ही कई उत्पादों को बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा.

मंगलयान, चंद्रयान, ब्रह्मोस, तेजस, पवन हंस, अग्नि, पृथ्वी, नाग बनाने वाला देश कैसे नहीं ये कर पाएगा.

टाटा, महिंद्रा, बजाज, बिरला, रिलायंस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल जैसे बड़े औद्योगिक समूहों वाला देश अब हार्डवेयर में भी हाथ आजमाने को तैयार हो रहा है.

समय लगेगा… अगले 3 वर्षों में शुरुवात होगी…. 5 वर्षों में रफ़्तार पकड़ेगी… और 5 वर्षों बाद स्वर्णिम काल शुरू होगा…

आज चीनी सामानों का सामाजिक बहिष्कार, समय की जरूरत है. आदमी स्वयं के लिए स्वार्थी हो सकता है तो समाज और देश के लिए क्यों नहीं.

फिलहाल वही लेंगे चीन से जिसकी जरूरत है और जिसके बिना काम चलेगा वो नहीं लेंगे, उसका बहिष्कार करेंगे. 3-5 वर्षों में अपना बना लेंगे और फिर विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा करेंगे.

आज जरूरत है चीन के सामान को जहाँ तक हो सके, न खरीदने की…

जब हमें चाहिए होगा झालर, नकली गहने, प्लास्टिक के खिलौने या कुर्सी टेबल … अपना बनवा लेंगे… मजबूत और टिकाऊ …. जरूर बनाएंगे और फिर उसको बेचेंगे भी.

चीन को भी बेचेंगे… जब अगले वर्षों से व्यापारी खुद ही चीन का सामान नहीं लेगा… और जरूरत महसूस होगी, तो यहाँ ही बनना चालू होगा… आवश्यकता ही उद्यमिता को लाएगी.

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