लोकप्रिय और गम्भीर साहित्य की बहस में पड़े बिना मैं पूरी गम्भीरता से सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि पाठकजी द्वारा रचे गए लोकप्रिय साहित्य को मैंने हमेशा गम्भीर साहित्य मानकर ही पढ़ा और पसंद किया है.
उनकी लौह लेखनी से निकले कई उपन्यास और कहानियाँ ऐसी हैं जिनके किरदार, कहानी के ट्विस्ट, सस्पेंस और थ्रिल हमेशा के लिए जेहन में बस गए हैं. उनका नशा कभी कम नहीं होता.
उनकी लेखनी ने हमें कभी पेट दुखने तक हंसाया है तो कभी जार जार रुलाया है और कभी आश्चर्य और सकते में डाला है. उनके पात्रों द्वारा की गई स्मार्ट टॉक तो उनके पाठक और प्रशंसक भी अक्सर उपयोग में लाते हैं.
उनकी भाषा उनके पात्रों को सहज और जीवंत बनाती है. उनके नायक सुपरमैन न होकर आम आदमी की तरह जिंदगी में संघर्ष करते और विजय प्राप्त करते नजर आते हैं और कभी कभी असफल भी होते हैं…
उनके खल पात्र भी डार्क नहीं बल्कि ग्रे शेड लिए होते हैं जो अधिक सहज और सच्चे लगते हैं. उनकी लेखनी ने पुलिस प्रशासन की खूबियों और खामियों को उजागर किया है तो कभी राजनेताओं के पाखंड की कलई खोली है.
जिंदगी की खूबसूरती और विद्रूपताएं भी उनकी कलम से चित्रित हुई हैं. मानवीय सम्वेदनाओं के साथ मित्रता, प्रेम और त्याग को शब्द दिए हैं तो सामाजिक बुराइयों और अन्धविश्वास की खिलाफत भी की है.
पाठकों के लिए उनके लेखकीय विविध विषयों पर जानकारी से भरपूर होने के साथ साथ उपन्यास जैसे ही मनोरंजक भी होते हैं. अपने पाठकों के साथ जीवंत सम्पर्क रखने वाले ऐसे लेखक बिरले ही हैं.
उनकी लेखनी यूँ ही अनवरत चलती रहे और हमे गुदगुदाती रहे, हंसाती रहे, रुलाती रहे चमत्कृत करती रहे यही ईश्वर से प्रार्थना है.
– सुमोपाई अरुण गोखले