द्वितीय विश्वयुद्ध के पन्नों से : जापानी बलून बम की कहानी

इन दिनों पाकिस्तान से पतंगे और कबूतर उड़-उड़ कर हमारी सीमा में आ रहे हैं. कल तो एक बाज़ पकड़ा गया, जिसके पंजो में बंधी एक ‘चिप’ बरामद की गई.

चलिए अब आपको ‘जापानी बलून बम’ की कहानी सुनाता हूँ. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शत्रु देश को आघात पहुँचाने के लिए बड़े ही रोचक तरीके अपनाए जाते थे. इस महायुद्ध में अमेरिका और जापान एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे.

जापान अमेरिका को भीतरी नुकसान पहुँचाना  चाहता था लेकिन अमेरिका के तगड़ा डिफेन्स के चलते जापान सीधा प्रहार नहीं कर सकता था.

सन् 1944

इंपीरियल जापानी नेवी ने 9300 हाइड्रोजन से भरे कागज के गुब्बारों का निर्माण करवाया. हर एक गुब्बारा एक अत्यधिक ज्वलनशील विस्फोटक से लैस था.

योजना ये थी कि इन्हें अमेरिका के अभेद्य नार्थ अमेरिका के भीतरी रिहायशी इलाकों में गिराया जाए. जापान चाहता था नार्थ अमेरिका के खेत खलिहान नष्ट हो जाए, लोग मारे जाए.

आज के जापान के बारे में सोचते हुए आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा कि क्या एक शांतिप्रिय देश उस वक्त ऐसा निर्णय ले पाया होगा. मित्रों युद्ध में शत्रु देश को हर तरह से नुकसान देना हर देश का आखिरी मकसद बन जाता है. मानवता पर कपड़ा डाल दिया जाता है. तो समस्या ये थी कि अमेरिकी सेना की सजग पहरेदारी से बचा कर इस घातक ‘कागज़ी सेना’ को नार्थ अमेरिका में कैसे उतारा जाए.

तो बुद्धिमान जापानियों ने इसका एक अनोखा तरीका खोज निकाला. उन्होंने मैपिंग के जरिये ऐसे ‘air current’ का पता लगाया जिनके जरिये गुब्बारों की सेना को ऊपरी वातावरण में बह रही ‘जेट स्ट्रीम’ तक ले जाया जा सकता था.  ये ‘air current’ 30 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर बह रहा था.

3 नवंबर को जापानियों ने इन 9300 हाइड्रोजन के गुब्बारों को कुछ इस अंतराल से छोड़ा कि दो गुब्बारों के बीच कम से कम एक घँटे का अंतराल हो. तो सुपरस्पीड जेट स्ट्रीम पर सवारी करते हुए ये गुब्बारे नार्थ अमेरिका पर कहर बरपाने के लिए निकल पड़े.

अमेरिका सोच भी नहीं सकता था कि 30 हजार फ़ीट की ऊंचाई से एक कागजी सेना उन पर हमला करने वाली है.  बादलों पर सवार इस कागजी सेना में हाइड्रोजन इस तरह भरा गया था कि ये नार्थ अमेरिका के वेस्ट कोस्ट के भीतरी इलाक़ों में जाकर गिरे.

हालांकि अमेरिकी गुप्तचर विभाग जान गया था कि जापान उनके खिलाफ कुछ करने जा रहा है.  लेकिन ऐसा हमला होगा उसने भी नहीं सोचा था.

अमेरिका लंबी दूरी से मार करने वाले हमलों में इस हमले का कीर्तिमान 1982 तक बना रहा. लक्ष्य तक केवल एक हज़ार गुब्बारे ही पहुँच सके. बाकी रास्ता भटक गए.

हालाँकि जापान के इस हमले से केवल पांच ही लोग मारे गए, थोड़ा बहुत नुकसान भी हुआ. अमेरिकी सेना ने कई गुब्बारों को हवा में ही नष्ट कर दिया. सोचिये पूरे 9300 लक्ष्य छू लेते तो कितना नुकसान होता. ये हमला लड़ाईयों के इतिहास में सबसे सस्ता और घातक माना गया.

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