कोई मिल गया : पढ़िए एक नौजवान की एलियन से मुलाकात की सच्ची घटना

एलियन एक ऐसी अवधारणा है जिस पर गंभीर चिंतन के बजाय उपहास ही किया गया है. लोग भूत-प्रेत पर यकीन कर लेते हैं लेकिन ये विश्वास नहीं कर पाते कि इस अनंत विशालकाय ब्रम्हांड में उनके सिवा भी और सभ्यताएं निवास करती हैं, कुछ उनसे ज्यादा आधुनिक और कुछ शायद अब भी पाषाण काल में हैं.

मैं उन पर पंद्रह साल की उम्र से शोध कर रहा हूँ और जिंदगी में तीन बार ऐसा अनुभव हुआ है कि वे मेरे आसपास ही हैं.

मेरी पहली मुठभेड़ इन प्राणियों से मुंबई में सन 2005 में हुई. हालांकि मैं ऐसा दावा नहीं करता कि मैंने उनसे बातचीत की हो लेकिन उनकी मौजूदगी और सन्देश भेजने के एक ख़ास तरीके ने मुझमे एलियंस के प्रति भरोसा पैदा किया.

इस पहली कहानी का कोई प्रमाण मेरे पास नहीं है लेकिन अगली दो कहानियों का प्रमाण जरूर पेश करूँगा. पेश है पहली कहानी-

2005 का साल. मुंबई के मलाड क्षेत्र की बहुमंजिला ईमारत की पांचवी मंजिल पर मैं, सुधीर भारद्वाज और करण सक्सेना एक छोटे से रूम को शेयर कर रहे थे. ये अक्टूबर का महीना था और रात लगभग 12 बजे हम स्टूडियो से अपने रूम पर पहुंचे थे.

रोज का नियम था भोजन करना और इंदौर से लाया एक रेडियो सुनते हुए सो जाना. उस वक्त स्मार्ट फोन नहीं थे और मोबाइल केवल बात करने के काम ही आता था. रात 2 बजे अचानक मेरी नींद खुलती है और आदत के अनुसार मैं पानी की बोतल लेकर बालकनी की ओर चल पड़ा.

बालकनी में आते ही मुझे अहसास हुआ कि मामला रोज की तरह नहीं बल्कि बहुत ज्यादा असामान्य है. रात के दो बजे पूर्वी मलाड ऐसी रोशनी में नहाया हुआ था जैसी हमने पहले कभी नहीं देखी थी. ऐसा लग रहा था मानो मलाड उठकर एक स्टेडियम में चला गया हो. ऐसा लग रहा था कि सैकड़ों फ्लड लाइट्स एक साथ जला दी गई हो. मेरे लिए ये बहुत बड़ी घटना थी.

मैं वापस मुड़ा और जाकर गहरी नींद में सोये सुधीर और करण को जगाया. दोनों आँखे मलते हुए मेरे साथ बालकनी में पहुंचे तो उनकी नींद भी ऐसा नज़ारा देखकर फुर्र हो चुकी थी. हम बालकनी से गर्दन लटकाकर जानने की कोशिश कर ही रहे थे कि अचानक मोबाइल बजने की आवाज ने हमें डरा दिया.

आधी रात को आख़िरकार हमें कौन कॉल कर सकता था. अंदर आकर देखा तो नज़ारा डराने वाला था. हम तीनों के मोबाइल साथ ही बज रहे थे और जब हमने अपने फोन रिसीव करने के लिए हाथ में लिए तो गर्दन पर ठंडा पसीना बहता महसूस होने लगा. हमारे ही नंबर हमें कॉल कर रहे थे ये देखकर हम एक दूसरे का चेहरा देखने लगे.

फोन में रिसीव करने का बटन दबने को तैयार नहीं था. लगभग एक मिनट बाद कॉल आना बंद हो चुकी थी और साथ ही हमारे मोबाइल भी. इसके बाद कमरे में एक तेज़ धमाका हुआ. ये छोटा सा विस्फोट मेरे इकलौते रेडियो में हुआ था. रेडियो को उठाया और देखा तो उसके सेल डालने वाली जगह जलकर काली हो चुकी थी लेकिन आश्चर्य रेडियो चल रहा था.

रेडियो पर इस विस्फोट के बाद जो पहला गीत चल रहा था उसके संगीत में हमारे फोन की रिंगटोन की ध्वनियां भी सुनाई दे रही थी. अब मैं समझ चुका था कि माजरा क्या था. मैं फिर बाहर की ओर दौड़ा तो मलाड की वो रहस्यमयी रोशनी अब भी किसी अनजाने स्त्रोत से फूट रही थी.

मेरे दोनों मित्र इसे कोई भूत-प्रेत का प्रकोप समझ रहे थे लेकिन मैं मन ही मन खुश था कि जीवन में पहली बार ऐसे विज्ञान की कारगुजारी देख रहा था जो मेरी समझ से कहीं आगे थी.

मलाड में रहस्यमयी रोशनी दिखना, उसके बाद अपने ही नंबर से कॉल आना और रेडियो में अपने फोन की रिंगटोन सुनाई देना सभी ऐसी घटनाएं थी जिनका अन्तर्सम्बन्ध मेरी जैसी औसत बुद्धि वाला आसानी से जान सकता था.

तब तक मैं नहीं जानता था कि ये कोई सन्देश है या किसी अत्याधुनिक सभ्यता के एक मजाकिया एलियन द्वारा किया गया मजाक. ये सब एलियन की शरारत थी ये कैसे सिद्ध हुआ तो इसका जवाब कल आने वाली कहानी में मिलेगा क्योकि अपने ही नंबर से मिस कॉल आगे भी आने वाले थे और रोमांच और बढ़ने जा रहा था.

यदि आपको मुझ पर भरोसा है तो ये कहानी बिलकुल सत्य है.

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