इस्लामी शब्दों में हलाल और हलाला यह ऐसे दो शब्द हैं, जिनका कुरान और हदीसों में कई जगह प्रयोग किया गया है. दिखने में यह दोनों शब्द एक जैसे लगते हैं. कहीं हद तक इनके अर्थ भी एक जैसे ही माने जा सकते हैं.
यह बात तो सभी जानते हैं कि जब मुसलमान किसी जानवर के गले पर अल्लाह के नाम पर छुरी चलाकर मार डालते हैं, तो इसे हलाल करना कहते हैं. लेकिन हलाला के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं क्योंकि इस शब्द का सम्बन्ध मुसलमानों वैवाहिक जीवन और कुरान के महिला विरोधी कानून से है क्योंकि कुरान में अल्लाह के बनाये हुए इस जंगली और मूर्खता पूर्ण कानून की आड़ में मुल्ले, मौलवी और मुफ्ती खुल कर अय्याशी करते हैं. ये भी किसी के हलाल से कम नहीं.
मुस्लिम समाज में मुस्लिम महिलाओं का तलाक के बाद हलाला से गुजरना कितना दर्दनाक और शर्मनांक हादसा है. शौहर द्वारा तलाक तलाक तलाक कह देने भर से तुरंत प्रभाव से पति और पत्नी का सम्बंध विच्छेद हो जाना एक आश्चर्य है.
और शौहर को गलती का अहसास होने पर पति-पत्नी के सम्बंधों को फिर से बहाल करने के मतलब को हलाला कहते हें जहाँ तलाकशुदा पत्नी एक गैर मर्द के साथ निकाह कर एक रात उसके साथ हमबिस्तर हो जिस्मानी रिश्ता कायम करने को मज़बूर होती है. उसके बाद नये शौहर से उसको फिर तलाक मिलता है और तब वह पुराने शौहर से फिर निकाह कर अपनी पुरानी जिंदगी में वापस आती है.
इसी शर्मनाक और दर्दनाक प्रक्रिया को हलाला कहते हैं जिससे मुस्लिम महिलाओं को गुजरना पड़ता है. और वह पत्नी जीवन भर उन लम्हों को याद कर सिहर जाती होगी, पीड़ा से गुजरती होगी. या फिर क्या पुराना शौहर हलाला के बाद पत्नी के उस एक रात के गैर मर्द के साथ के सम्बंध को अपनी सोच से निकाल पाता होगा?
पति की खता और पत्नी को सज़ा
इस बात को ठीक से समझने के लिए अल्लाह की औरतों के प्रति घोर नफ़रत, और मुसलमानों की पारिवारिक स्थितियों के बारे में जानना बहुत जरूरी है. मुसलमानों में चार विवाह तक की अनुमति है. और फिर मुसलमान रिश्ते की बहिनों से भी शादियाँ कर लेते हैं और अक्सर संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते हैं.
इसलिए पति पत्नी में झगड़े होते रहते हैं. और कभी पति गुस्से में पत्नी को तलाक भी दे देता है. चूंकि अल्लाह की नजर में औरतें पैदायशी अपराधी होती है, इसलिए कुरान में पति की जगह पत्नी को ही सजा देने का नियम है. यद्यपि तलाक देने के कई कारण और तरीके हो सकते हैं, लेकिन सजा सिर्फ औरत को ही मिलती है. इसे विस्तार से प्रमाण सहित बताया गया है .जो कुरान और हदीसों पर आधारित है.
अल्लाह की तरकीब
ऐसा कई बार होता है कि व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देकर बाद में पछताता है, क्योंकि औरतें गुलामों की तरह काम करती हैं, और बच्चे भी पालती हैं. कुछ पढ़ी लिखी औरतें पैसा कमा कर घर भी चलाती है. इसलिए लोग फिर से अपनी औरत चाहते हैं.
हे नबी तू नहीं जानता कि कदाचित तलाक के बाद अल्लाह कोई नयी तरकीब सुझा दे – सूरा -अत तलाक 65 :1
और इस आयत के बाद काफी सोच विचार कर के अल्लाह ने जो उपाय निकाला है, वह औरतों के लिए शर्मनाक है
हलाला
तलाक़ दी हुई अपनी बीवी को दोबारा अपनाने का एक तरीका है जिस के तहेत मत्लूका (तलाक दी गयी पत्नी ) को किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करना होगा और उसके साथ हम बिस्तरी की शर्त लागू होगी फिर वह तलाक़ देगा, बाद इद्दत ख़त्म औरत का तिबारा निकाह अपने पहले शौहर के साथ होगा, तब जा कर दोनों तमाम जिंदगी गुज़ारेंगे. हलाला के बारे में कुरान और हदीसों में इस प्रकार लिखा है-
और यदि किसी ने पत्नी को तलाक दे दिया, तो उस स्त्री को रखना जायज नहीं होगा. जब तक वह स्त्री किसी दूसरे व्यक्ति से सहवास न कर ले. फिर वह व्यक्ति भी उसे तलाक दे दे. तो फिर उन दौनों के लिए एक दूसरे की तरफ पलट आने में कोई दोष नहीं होगा “सूरा – बकरा 2 :230
हलाला इस तरह होता है, पहले तलाकशुदा महिला इद्दत का समय पूरा करे. फिर उसका कहीं और निकाह हो. शौहर के साथ उसके वैवाहिक रिश्ते बनें. इसके बाद शौहर अपनी मर्जी से तलाक दे या उसका इंतकाल हो जाए. फिर बीवी इद्दत का समय पूरा करे. तब जाकर वह पहले शौहर से फिर से निकाह कर सकती है.
मलाला का मलाल
जहां एक ओर निकाह में फंसी औरते हैं तो दूसरी ओर शिक्षा से वंचित बच्चियां. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है मलाला युसुफ़ज़ई. वह पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर की है.
13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में एक छद्म नाम के तहत बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गयी. अक्टूबर 2012 में, मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने उदारवादी प्रयासों के कारण वे आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी, जिससे वे बुरी तरह घायल हो गई और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गई.
मलाला यूसुफजई ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है. तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे.
संगठन के प्रवक्ता के अनुसार, ‘यह महिला पश्चिमी देशों के हितों के लिए काम कर रही हैं. इन्होंने स्वात इलाके में धर्मनिरपेक्ष सरकार का समर्थन किया था. इसी वजह से यह हमारी हिट लिस्ट में हैं. अक्टूबर 2012 में, स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गई. इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली. बाद में इलाज के लिए उन्हें ब्रिटेन ले जाया गया जहाँ डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद उन्हें बचा लिया गया.
बच्चों और युवाओं के दमन के ख़िलाफ़ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले भारतीय समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.
मलाला जैसी मुस्लिम बच्चियों को जानबूझकर शिक्षा से वंचित रखा जाता है ताकि वो हलाला जैसे नियमों के खिलाफ आवाज़ न उठा सके और मुस्लिम रिवाजों के तहत हलाल होती रहें.