इस पृथ्वी पर स्वर्ग की छोटी सी जो किरण उतरती है, उसी का नाम है प्रेम

तुमने यह बात गौर की? प्रेम को घृणा बनने में देर नहीं लगती. मित्र को दुश्मन बनने में देर कितनी लगती है? जिस स्त्री के लिए तुम जान देने को तैयार थे, उसी की जान लेने को भी तैयार हो जाते हो- इसमें देर कितनी लगती है?

प्रेम इतनी जल्दी घृणा बन जाता है? प्रेम घृणा बन सकता है? और अगर प्रेम घृणा बन सकता है तो कैसा प्रेम! प्रेम घृणा नहीं बन सकता. फिर जो घृणा बन जाता है, वह प्रेम था ही नहीं, कुछ और था, घृणा ही थी, प्रेम का मुखौटा लगा कर नाटक कर रही थी.

प्रेम के नाम पर तुम शोषण कर रहे हो. प्रेम के नाम पर तुम एक-दूसरे का उपयोग कर रहे हो. प्रेम के नाम पर तुम एक-दूसरे का उपयोग कर रहे हो. प्रेम के नाम पर तुम एक-दूसरे की मालकियत कर रहे हो.

प्रेम के नाम पर राजनीति है, कूटनीति है. प्रेम बड़ा लुभावना शब्द है, बड़ा प्यारा शब्द है, खूब उलझा लेता है. जिससे भी तुम कह देते होः मुझे आपसे बहुत प्रेम है, वही आपकी बातों में आ जाता है. तुम्हें खुद से भी प्रेम नहीं है, तुम्हें और किससे प्रेम होगा?

तुम कहते हो, हमें अपने बच्चों से प्रेम है. अपने बच्चों से तुम्हें प्रेम नहीं है, अपने हैं, इसलिए प्रेम है. मेरे हैं, अहंकार का हिस्सा हैं तुम्हारे, इसलिए प्रेम है. और अगर तुम्हारा बेटा प्रधानमंत्री हो जाए, तो बहुत प्रेम पैदा हो जाएगा. और तुम्हार बेटा अगर डाकू हो जाए और कारागृह में चला जाए, तो तुम जाकर अदालत में घोषणा कर दोगे कि मैं इनकार करता हूं कि यह मेरा बेटा है. प्रेम समाप्त हो जाएगा.

तुम्हारा प्रेम भी अहंकार है. तुम्हारा प्रेम भी उतने ही दूर तक है जहां तक तुम्हारे अहंकार को सहारा मिलता है, सत्कार मिलता है, सम्मान मिलता है. इस प्रेम के अनुभव के कारण लोगों को भी बात जंच जाती है कि प्रेम पाप है. मगर यह तो प्रेम का अनुभव ही नहीं है. कंकड़-पत्थर बीनते रहे और कहने लगे कि हीरे पाप हैं! हीरों का तुम्हें अनुभव नहीं है.

प्रेम का थोड़ा अनुभव करो. प्रेम बड़ी अद्भुत घटना है. साधारण नहीं है, अलौकिक है. इस पृथ्वी पर स्वर्ग की छोटी सी जो किरण उतरती है, उसी का नाम प्रेम है. इस अंधेरे में रोशनी की जो थोड़ी सी झलक उतर आती है, उसी का नाम प्रेम है. इस पथरीले हृदय में जो थोड़ी आर्द्रता आ जाती है, उसी का नाम प्रेम है.

– ओशो
पुस्तकः प्रेम पंथ ऐसो कठिन
प्रवचन सं 11 से

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