Taharrush Gamea : एक औरत तीन तरह के घेरे के चक्रव्यूह में फंसी हुई…
सबसे अन्दर का घेरा औरत से बलात्कार करता है, बीच वाला घेरा दर्शक बनकर उसका मज़ा लेता है और सबसे बाहरी घेरे के लोगों का काम अन्दर के दोनों घेरों की सुरक्षा करना होता है.
शुरुआती दिनों में सुनने में यह आया था कि यह केवल अरब में होता है, जहां बाहरी देश की वेस्टर्न ड्रेस को बढ़ावा देने वाली महिलाएं शिकार होती हैं. लेकिन अपने ही देश की उन औरतों के साथ भी ये घिनौना खेल खेलने से बाज नहीं आते जहां औरतें बुरका पहनने से इनकार कर देती हैं या आज़ादी के नाम पर इस्लामिक नियमों का पालन करने से मना कर देती हैं.
बाद में अरब देश का ये ‘रेप गेम’ इजिप्ट तक पहुंचा और उस समय चर्चा में आया जब अमेरिका की एक रिपोर्टर ने पूरी दुनिया के सामने इसका खुलासा किया.
11 फरवरी 2011 को होस्नी मुबारक़ की ख़िलाफ़ उठे अरब आंदोलन को कवर करने जब CBS की रिपोर्टर लारा लोगन, इजिप्ट पहुंची तो तहरीर स्क्वायर पर लोगों की बेतहाशा भीड़ जमा थी. यूं तो साउथ अफ्रिका की निवासी और दो छोटे छोटे बच्चों की माँ लारा वॉर रिपोर्टर थी, इस तरह की जगहों के लिए प्रशिक्षित… लेकिन इस बार उसका यह असाइंमेंट जैसे काल बनकर आया था…
बकौल लारा लोगन –
देखने पर तहरीर स्क्वायर पर पार्टीनुमा माहोल था, लोग झूम रहे थे… गा रहे थे… बेतहाशा भीड़ … धक्कम धुक्की होना स्वाभाविक था… लेकिन मेरी टीम मेरी सुरक्षा के लिए मेरे चारो तरफ थी… प्रोड्यूसर मैक्स, कैमरा मैन रिचर्ड, बाहा जो लोकल आदमी था, वहां की भाषा समझता था… दो लोकल ड्राईवर और हमारा सिक्यूरिटी गार्ड “रे”.
अचानक हमारे कैमरे की बैटरी ख़त्म हो गयी. हमें सिर्फ कुछ पल के लिए रुकना पड़ा. हमारे पीछे बड़ा सा हुजूम आ रहा था. बाहा ने घबराकर कहा हमें यहाँ से तुरंत निकलना होगा…. भीड़ की अरबी भाषा केवल बाहा समझता था… हम उसकी बात सुन कर समझ पाते उसके पहले हज़ारों हाथ मेरी तरफ बढ़ चुके थे….
बाहा ने जो अरबी भाषा में सुना था वो यही था कि इस लड़की की पैंट निकालो….
सबकुछ इतना अचानक हुआ कोई कुछ समझ पाता तब तक लोगों ने मेरे कपड़े फाड़ना शुरू कर दिए थे… रे ने मेरा हाथ पकड़कर रखा था और चिल्ला रहा था… मुझे पकड़े रहना लारा…
हम दोनों को भीड़ अलग अलग दिशा में खींच रही थी…. मेरे शरीर का एक एक कपड़ा फाड़ा जा रहा था… न जाने कितने हाथ मेरे शरीर के ऊपर और शरीर के अन्दर जा रहे थे… मुझे सिर्फ इतना होश था कि मेरी नज़रें रे की नज़रों पर टिकी हुई थी… वो मेरे जीवन की आख़िरी उम्मीद था…
यौन शोषण से त्रस्त मेरे शरीर को इस बात का भी भान नहीं था मुझे डंडों और स्टिक से भी पिटा जा रहा था… आख़िरी बार मुझे कपड़े का होश तब तक रहा जब मेरे ब्रा की क्लिप खोल दी गयी थी और नीचे से आखरी कपड़ा भी निकाल दिया गया था….
रे का हाथ मुझसे छुड़ा लिया गया था… अब मेरे शरीर पर केवल निकालने के लिए चमड़ी बची थी तो भीड़ ने सबसे पहले मेरे बाल नोचे… मेरे शरीर से नोच नोच कर चमड़ी निकाली जा रही थी… बाल टूट गए थे तो सर से त्वचा को नाखूनों से निकाला जा रहा था…
मेरी मौत साक्षात मेरे सामने खड़ी थी … मुझे आखरी बार जीने की उम्मीद तब जागी जब मेरे दोनों बच्चों के चेहरे याद आये…. और वही शायद मेरी जीत थी बेहोश होने से पहले मुझे इतना याद था कि कुछ अरबी औरतें मुझे भीड़ से खींच रही है और मुझे कपड़े से ढांक रही है…
फिर आर्मी का एक जवान मुझे पीठ पर लादे भीड़ से छुड़ा लाया है… भीड़ पर पानी की बौछारे छोड़कर वहीं के कुछ रहवासियों ने मुझे बचा लिया था… मैं जब तक अपने लोगों के बीच वापस नहीं पहुँच गयी तब तक मैंने उस आर्मी के जवान को नहीं छोड़ा…
लारा को बचा लिया गया… पूरा केस चुपचाप रफा दफा कर दिया गया…. क्योंकि अरब, इजिप्ट और अब जर्मनी भी पहुँच चुका यह उनका एक खेल है जिसके खिलाफ आवाज़ उठाने की किसी में हिम्मत नहीं…
फिर 1 मई को लारा ने इस बारे में इंटरव्यू दिया केवल उन औरतों के लिए जो चुपचाप इस तरह की यातनाएं सह जाती है… चुप रह जाती है…
जिस अंग्रेजी वेब साईट से मैंने इसका अनुवाद किया उसका केवल कुछ अंश ही मैं अनुवाद कर सकी… लारा द्वारा कही गयी बातों का शब्दशः अनुवाद करना मेरे बूते के बाहर की बात थी…. मैं केवल उसके कहे को समझ पा रही थी… उसके दर्द को अनुभव कर पा रही थी….
इसे लिखने के पीछे मेरा एक ही उद्देश्य है, हमारे देश में जो नारीवादी महिलाएं कपड़ों की आज़ादी, बुर्के और घुंघट से आज़ादी, शनि मंदिर जैसे जगहों पर जाने की आज़ादी के लिए लड़ रही हैं…. वो केवल एक बार… सिर्फ एक बार दिल पर हाथ रखकर बताएं… क्या केवल मर्ज़ी के कपड़े पहनने की आज़ादी मिल जाने से तुम गुलामी से मुक्त हो जाओगी? भीड़ के बीच अपने उभारों को दिखाने से तुम खुद को आज़ाद अनुभव करोगी?
नहीं तुम गुलाम हो अपनी ही सोच की.. तुम्हें कपड़ों की गुलामी तो दिखाई देती है उस सोच का क्या करोगी जो तुम्हें कपड़ों से ऊपर उठने नहीं देता…
घुंघट, बुर्का निकाल फेंकने के बाद भी तुम गुलाम रहोगी क्योंकि प्रकृति के दिए वरदान पर तुम्हें शर्म आती है…. तुम्हें नारी होने पर गर्व नहीं नारी होने की पीड़ा तुम्हें हमेशा गुलाम बनाए रखेगी… तुम चाहे कपड़े पहनों चाहे मत पहनों.
आज समाज में कपड़े पहनने का रिवाज है तो उसके न पहनने के लिए लड़ाई लड़ो… याद है ना एक समय ऐसा भी था जब स्त्रियों का स्तन ढांकना गुनाह था तब वो कपड़े पहनने के लिए विरोध में उतरी थीं…. गुलामी कपड़ों और रीति रिवाजों और परम्परों से नहीं… हम गुलाम है हर बात का विरोध करने की अपनी विचारधारा से..
तुम्हारी लड़ाई घर में होने वाली छोटी मोटी लड़ाई से ज्यादा कुछ नहीं…. हिम्मत है तो विश्व स्तर पर आकर उन औरतों के लिए लड़ों, जहां उनका गुनाह ही औरत होना है… तुम भाग्यशाली हो जिस धरती पर खड़ी होकर लड़ रही हो वो खुद भारत माता के नाम पर पूजी जाती है… तुम्हारा मान अपमान, गुलामी आज़ादी… प्रताड़ना और पूजा तुम्हारे अपने हाथ में हैं…