आज उनका जन्मदिन है. अब तो जयंती कहेंगे न. वो कहते थे कि बड़े सपने देखा करो. कुछ लोग सपने देखते हैं. कुछ सपनों में जीते हैं. कुछ सपने को जीते हैं. डॉ० कलाम उनमे से थे जो सपनों को सच करने के लिए जीए.
बहुत लोगों के साथ उनकी यादें जुड़ी हैं. मेरी भी एक याद है जो उनके साथ परोक्ष रूप से जुड़ी है. स्कूल में एक दिन प्रिंसिपल ने कहा कि हम राष्ट्रपति डॉ० कलाम को बुलाने वाले हैं. मेरी आकाँक्षाओं को पर लग गए थे. कुछ समझ में नहीं आया तो सोचा कि उनकी किताब “Ignited Minds” पर ऑटोग्राफ लिया जाये.
छुट्टी हुई तो जल्दी-जल्दी साईकिल चला के किताब की दूकान तक पहुँच गए. अन्दर जा कर किताब मांगी तो मुझे hardback edition दिखाई गई. मैंने पूछा कितने की? दूकानदार ने कहा ‘ढाई सौ रूपए की’. हमें इतनी हड़बड़ाहट थी कि ठीक से सुनाई नहीं दिया और लगा जैसे उसने कहा हो ‘अट्ठाईस रुपये’. दिल खुश हो गया.
अगले दिन हम हाथ में तीस रुपये ले कर पहुंचे और दुकानदार को पकड़ा दिया. कुछ सेकंड तक हम उसे देखते रहे कि शायद 2 रुपया वापस करेगा और वो हमें देखता रहा कि हम बाकी पैसा देंगे. अंत में उसने चुप्पी तोड़ी और बोला ‘ढाई सौ की है और पैसा दो.’ मेरे पास पैसे नहीं थे. मुँह लटका के चले आए.
यह तो मेरी बेवकूफी थी. बाद में यही हुआ कि डॉ कलाम हमारे स्कूल नहीं आये. और फिर कभी हम उनसे नहीं मिल सके. उनके जाने के बाद एक सज्जन ने लिखा कि डॉ० कलाम को विज्ञान का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं था मसलन Stokes Theorem या Hooke’s Law उन्हें उतना ही पता था जितना एक स्नातक जानता है.
कुछ लोग ये भी कहते हैं उनकी कोई बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी. जो ऐसा मानते हैं उन पर तरस आता है. डॉ० कलाम में वैज्ञानिक संस्थानों की अद्भुत प्रशासनिक क्षमता थी. उनके कार्यकाल में DRDO नयी ऊँचाइयों पर पहुँचा तथा ISRO ने पहला Satellite Launch Vehicle बनाया.
एक वैज्ञानिक सिर्फ कुछ नया खोज निकालने और पुरस्कार पाने के लिए ही विज्ञान को आत्मसात नहीं करता. डॉ० कलाम एक संस्थान निर्माता भी थे. उन्होंने करोड़ों बच्चों और युवाओं के दिलों पर राज किया. उन्हें प्रेरणा दी. वे बहुत कुछ थे. उनकी वाणी में मिठास थी. हृदय सरलता का सागर था.
स्वतन्त्रता से पहले बहुत से विचारक हुए, वैज्ञानिक भी हुए परन्तु उन्होंने अपने क्षेत्र की सीमाओं में रह कर ही सोचा. सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर बहुत कुछ लिखा गया किंतु समग्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण किसी के पास नहीं था.
विज्ञान गवर्नेंस को प्रभावित करता है, प्रशासनिक ढाँचे को प्रभावित करता है, सामरिक रणनीतिक, आर्थिक हितों को प्रभावित करता है- इस मानसिकता से देश के बारे में सोचने वाले एक ही व्यक्ति थे- महर्षि कलाम.
आज देश के भविष्य के बारे में बहुत कुछ लिखा जाता है. नन्दन नीलकेणी से लेकर रुचिर शर्मा तक ने लिखा है लेकिन डॉ कलाम के विचारों की सटीकता को कोई छू भी नहीं पाया क्योंकि उनका चिंतन वैज्ञानिक धरातल पर था.
वे क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग भी नहीं करते थे बड़ी सरलता से अपनी बात कहते थे. उस व्यक्ति ने 1998 में ही 2020 के भारत की कल्पना की थी. गाँवों में शहरी सुविधाएं कैसे पहुँचें इसकी कल्पना उन्होंने PURA योजना में की.
डॉ कलाम केवल सोचते ही नहीं थे बल्कि बाकायदा पूरा प्लान बनाते थे. जब मुशर्रफ भारत आया तो उसने राष्ट्रपति कलाम से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की. सबने सोचा कि ये जाहिल जनरल पता नहीं क्या बात करेगा, कहीं कश्मीर का मुद्दा उठा के बेवजह माहौल न बिगाड़ दे.
लेकिन कलाम साहब ने मुशर्रफ को बिठा के विज़न 2020 का पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन दिखाया समझाया जो उसको समझ में नहीं आया और औपचारिकता का निर्वाह कर के बिना कुछ बोले भाग गया.
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉ कलाम के विचारों की उपेक्षा से ज्यादा खतरा इस बात का है कि कल तक जो कम्म्युनिस्ट जमात उन्हें राष्ट्रपति बनाने पर सवाल खड़े करती थी आज उनके जाने के बाद उन्हीं कम्युनिस्टों के चेले डॉ कलाम को महान बताते हुए ढेर सारे प्रोग्राम चला रहे हैं.
कोई सोशल मीडिया पर है तो कोई NGO चला कर स्कूलों में कम्पटीशन करवाता है. आज प्रतीकों की नायकों की लड़ाई है. वैज्ञानिक रूप से सशक्त भविष्य के भारत की परिकल्पना संजोने वाले डॉ कलाम किसके नायक होंगे यह विचारणीय प्रश्न है.
हिंदुत्व के पैरोकार जो विज्ञान का एक अक्षर नहीं समझते उनके लिए यह कहना बड़ा सरल है कि डॉ कलाम को लिबरल मुस्लिम होने के नाते फायदा मिला. वहीं राष्ट्रवादियों को केवल वही सुहाता है जो मोदी कहते हैं.
इन विरोधाभासों से ऊपर उठ कर देखा जाये तभी समझ में आयेगा कि आदरणीय अटल जी और डॉ कलाम जो विरासत छोड़ गए हैं वह नरेंद्र मोदी के लिए कितनी बड़ी चुनौती है.