सिस्टर निवेदिता का असली नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था. उनका जन्म 28 अक्तुबर 1867 में आयरलैंड में हुआ था. उनके पिता एक पादरी थे. जब मार्गरेट 10 साल की थीं तब उनके पिता का देहांत हो गया इसके बाद उनकी नानी हैमिलटन ने उनकी देख-रेख की.
मार्गरेट ने भौतिकी, कला, संगीत और साहित्य जैसे विषयों का अध्ययन किया और 17 वर्ष की उम्र में शिक्षण कार्य प्रारंभ कर दिया. वे एक अच्छी लेखिका थीं और ओजस्वी भाषण देती थी.
मार्गरेट नोबल की भेंट 1895 में स्वामी विवेकानंद से हुई. उन्होंने स्वामी जी से ढेरों प्रश्न किये जिनके उत्तरों ने उनके मन में विवेकानंद के लिए श्रद्धा और आदर उत्पन्न किया.
मार्गरेट अपने परिवार को छोड़कर 1898 में कोलकता आ गयीं. विवेकानंद ने उन्हें भारतीय सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और इतिहास से परिचित करवाया. वे रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा देवी से मिलीं जिन्होंने उन्हें बेटी(खोखी) कहकर संबोधित किया.
मार्गरेट नोबल ने स्वामी विवेकानंद के देख-रेख में ‘ब्रह्मचर्य’ स्वीकार किया जिसके बाद विवेकानंद ने उन्हें एक नया नाम ‘निवेदिता’ दिया. वे स्वामी विवेकानंद को ‘राजा’ कहती थीं और अपने आप को उनकी आध्यात्मिक पुत्री.
1898 में वे विवेकानंद के साथ हिमालय भ्रमण के लिए गयीं. अल्मोड़ा में उन्होंने पहली बार ध्यान की कला को सीखा. 1899 में वे स्वामी विवेकानंद के साथ अमेरिका भी गईं. स्वामी विवेकानंद से दीक्षा ग्रहण करने के बाद वे स्वामी जी की शिष्या बन गई और रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लग गयीं.
बहन निवेदिता भारत की स्वतंत्रता की जोरदार समर्थक थीं और वे भारतीय युवाओं को अपने व्याख्यानों और लेखों के माध्यम से प्रेरित करती रहती थी. 1905 में राष्ट्रीय कॉग्रेस के बनारस अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया. सिस्टर निवेदिता की मृत्यु 13 अक्टूबर 1911 को दार्जीलिंग में हुई.
पुण्यतिथि पर बहन निवेदिता को नमन एवं श्रद्धांजलि !