Sri M -6 : गुरु का हाथ ही नहीं, लात भी खानी पड़ती है, सोई ऊर्जा जागृत करने

अपने गुरु श्री एम की पुस्तक “हिमालयवासी गुरु के साए में एक योगी का आत्मचरित” से एक ऐसा किस्सा बता रही हूँ जब वो एक ऐसे कमज़ोर काले शरीर वाले, केवल एक मैली कुचैली धोती पहने हुए आदमी से मिलते हैं जिसकी ज़मीन छूती हुई जटाएं थीं और शरीर पर मैल की मोटी पर्त.

श्री एम उन्हें देखने के लिए बहुत दूर से आए थे लेकिन उस आदमी को देखकर वो लौट जाने का मन बना लेते हैं. वो जैसे ही जाने का सोचते हैं वो आदमी उन्हें इशारे से बुलाता है…

लोगों के यह कहने पर कि वे बहुत भाग्यशाली हैं जो उन्हें बुलाया गया, वो उस आदमी के करीब ये सोचते हुए जाते हैं कि पक्का इस आदमी के करीब से बहुत दुर्गन्ध आएगी और जब वो उनके पास घुटने के बल बैठते हैं तो उस गंदे से दिखने वाले आदमी के पास से उन्हें हवन सामग्री की खुशबू आती है.

और जैसे ही उनके इशारे पर वो अपने सर को झुकाते हैं वो आदमी बैठे बैठे ही उनकी कनपटी पर जोर से लात मारता है और श्री एम को रोशनी की कौंध दिखाई देती है.

उसके बाद वो चुपचाप वहां से लौट आते हैं और घर लौटने के लिए जैसे ही बस में बैठते हैं उन्हें अनुभव होता है कि कुछ महीनों पहले शीर्षासन करते हुए वो गिर पड़े थे और उनकी कमर के निचले हिस्से में लगातार दर्द रहता था…. वो दर्द एकदम से गायब हो चुका है….

श्री एम साथ ही ऐसे बहुत सारे महानुभावों के बारे में बताते हैं जो असामान्य जीवन बिताते हैं, नंगे, गंदे और अजीब सा व्यवहार करते हैं. हिन्दू परम्परा में ऐसे पागल से दीखते संतों को अवधूत कहा जाता है, सूफी परम्परा में उन्हें मस्त या मस्तान कहते हैं.

उनमें से एक से जब उसकी पागलों की सी हरकतों के बारे में पूछा गया तो उसने कहा कि उसे तो पृथ्वी पर कहीं कोई स्वस्थ- चित्त व्यक्ति नहीं मिला. हर कोई किसी न किसी चीज़ के पीछे पागल है. उसके अनुसार पागल खाने के अन्दर और बाहर वालों में इतना ही फर्क था कि कुछ अन्दर हैं और दूसरे बाहर.

सूफी परम्परा के मस्त कहलाने वाले संतों को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि मान्यता है कि वे लोग हमेशा अपने प्यारे के इश्क और उससे मिलन के आनंदातिरेक के नशे में मस्त रहते हैं.

श्री एम कहते हैं कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा में उपरोक्त घटना का महत्व तो उनको नहीं पता लेकिन वे खुद को अपने रहस्यवादी व्यवहार पर रुढ़िवादी मुसलामानों की प्रतिक्रया से मुक्त कर चुके थे जो उन्हें देखकर नाक-भौं सिकोड़ते थे.

दूसरा वे भगवा वस्त्र वाले जादूगरों द्वारा भी उल्लू नहीं बनाए जा सकते थे क्योंकि वे खुद ऐसी जादू की करामातों को सीख चुके थे, जैसे हवा में उठ जाना, युवती को दो भागों में चीरना, हवा से भभूत, सोने की अंगूठी, स्फटिक शिवलिंग पैदा करना….

ये सब श्री एम के लिए बच्चों के खेल थे जो ऐसे चमत्कार दिखाने वाले आडम्बरी साधुओं के सामने श्री एम ने खुद करके उन लोगों को नाराज़ कर दिया था…

जिसे मैं “जादू” कहती हूँ, या जिसे श्री एम सच में चमत्कारी घटनाएं कहते हैं… उसके आगे ये सब हाथ की सफाई है… हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में जो कुछ भी लिखा है या आजकल आप टीवी सीरियल के माध्यम से देखते हैं…

देवताओं का हवा के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, शरीर से आत्मा का बाहर आकर दोबारा शरीर में प्रवेश कर जाना…. किसी अदृश्य चेतना का आपके इर्द गिर्द रहकर आपका मार्गदर्शन करना….. कोरी कल्पना नहीं है…

ये हैं वो वास्तविक जादू जिसे श्री एम ने स्वयं अनुभव किये हैं और मैंने उसके एक कण बराबर झलक पाई है … वैसी ही रोशनी की कौंध मैंने दो बार अनुभव की…

पहली बार जब बड़े पुत्र ज्योतिर्मय गर्भ में थे तब स्वामी ध्यान विनय के हाथों कनपटी पर वार पाया था और दूसरी बार ज्योतिर्मय जो बब्बा(ओशो) का आशीर्वाद ही नहीं, साक्षात ओशो की ही चेतना है, ने साल भर की उम्र में ठीक उसी स्थान पर मेरी कनपटी पर वार किया था….

और वही रोशनी की कौंध को दोबारा पाकर मैं कृतज्ञ हुई थी…. क्योंकि ये आघात उन सुप्त बिन्दुओं को जागृत करने के लिए होते हैं, जिन्हें हम दुनियावी उलझनों में उलझ कर मंद कर चुके होते हैं.

– माँ जीवन शैफाली 

Sri M -1 : आसमानी हवन के साथ दुनियावी सत्संग

Sri M -2 : अग्नि के मानस देवता को प्रणाम

Sri M -3 : स्वातंत्र्य, वेदांती शिक्षाओं की आत्मा है

Sri M – 4 : आप में शिष्यत्व है तो प्रकृति का गुरुत्व प्रकट होगा ही

Sri M – 5 : बस इतनी इजाज़त दे कदमों पे ज़बीं रख दूं फिर सर ना उठे मेरा ये जां भी वहीँ रख दूं

Comments

comments

LEAVE A REPLY