देवी सीता – प्रभु, मोदी जी लखनऊ से चले गए, सोनिया जी रामलीला मैदान से चली गयी, केजरीवाल तो आये ही नहीं…. आपकी सारी प्रजा भी वापस रोजी रोटी में लग गयी…. आपकी आज्ञा हो तो हम लोग भी चले… वापिस… अपने तंबू में….
भाई लक्ष्मण – भैया, आपने जो मेरे नाम से नगरी बनाई थी, लक्ष्मणपुरी, उसे तो ये लोग लखनऊ कहते है, मोदी जी ने भी कुछ नहीं कहा… ऊपर से अपना तंबू भी फट गया है… उसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है… भैया, आप क्यों शांत है.. आप कहे तो मैं कर दूं एक सर्जिकल स्ट्राइक…
भगवान् राम – हे देवी सीता, अनुज लक्ष्मण …. शांत हो जाओ…. ये कलयुग का भारत है… यहाँ आंबेडकर का संविधान चलता है और साथ में पर्सनल लॉ बोर्ड भी है….
हे देवी सीता, क्या फरक पड़ता है कि तंबू फट गया है… अब हमें भी आदत हो चुकी है.. जब अपनी प्रजा ही अपनी नहीं रही तो क्या किया जा सकता है….
आधी प्रजा मुसलमान हो गयी और वो धोबी, केवट, जटायु राज और शबरी जिन समाज के थे वे भी अब हमें कहाँ मानते है… वो सब मूलनिवासी प्रोपेगंडा के शिकार हो गए…. अब वो भी “जय श्री राम” भूल कर ” जय भीम” करते हैं…
अब लगता है जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता है तब तक रहना ही पड़ेगा तंबू में… गरीबी में…. भगवन राम का तो अखिलेश बाबू “गरीबी रेखा वाला कार्ड” भी नहीं बनने देंगे नहीं तो वोटर नाराज हो जायेंगे…. अब, इंतज़ार करने के अलावा क्या चारा बचा है…
चलो… उठाओ, गठरी… चलो अयोध्या… अपने तंबू में…. जय श्री राम….
जैसा मेरे मन ने सुना, लिख दिया… अब मानना या न मानना आपके ऊपर है.
राहुल सक्सेना