जिस ज़बान में सरकार का काम चलता है, इसमें समाजवाद तो छोड़ ही दो, प्रजातंत्र भी छोडो, इमानदारी और बेईमानी का सवाल तक इससे जुड़ा हुआ है. यदि सरकारी और सार्वजनिक काम ऐसी भाषा में चलाये जाए, जिसे देश के करोड़ों आदमी न समझ सके, तो यह होगा केवल एक प्रकार का जादू-टोना.
जिस किसी देश में जादू, टोना – टोटका चलता है, वहां क्या होता है? जिन लोगों के बारे में मशहूर हो जाता है कि वे जादू वगैरह से बीमारियाँ आदि अच्छी कर सकते है, उनकी बन आती है. ऐसी भाषा में जितना चाहे झूठ बोलिए, धोखा कीजिये, सब चलता रहेगा, क्यूंकि लोग समझेंगे ही नहीं. आज शासन में लोगो की दिलचस्पी हो तो कैसे हो ? ” – डॉ. राममनोहर लोहिया.
डॉ, राममनोहर लोहिया जी ने अंग्रेजी के वर्चस्व के विरुद्ध भारतीय भाषाओं के अस्तित्व की लड़ाई को एक वैचारिक आधार दिया. भारत छोड़ो आंदोलन की तर्ज पर उन्होने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन को प्रेरित किया और उसे समाजवादी जनांदोलन का संबल भी दिया.
उन्होंने कहा कि भारत गोरी चमड़ी की गुलामी से मुक्त हुआ लेकिन काली चमड़ी में रची बसी अंग्रेजियत से देश को छुटकारा नहीं मिल सका. आज तो मातृभाषा की उपेक्षा करके अंग्रेजी सीखने की होड़ मची है. दुनिया के किसी भी देश में इतने बड़े पैमाने पर भाषायी गुलामी नहीं है जितनी भारत में है. आज तो अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ अधिक मुखर होने की जरूरत है.
डॉ लोहिया के भाषा संबंधी विचार उनकी “अंग्रेजी हटाओ” पुस्तिका में उपलब्ध हैं. कभी समय निकाल कर पढिये.
– Omparkash ‘Hathpasaria’