जो लोग ये लिखते हैं कि आज कन्या पूजने वालों ने ही 10 साल में 50 लाख बेटियों को गर्भ में मारा है, उनके मन में कितनी दुर्भावना होगी जबकि ऐसे लोग मुश्किल से 25% भी नहीं होंगे.
क्या आपके आस पास के 10 में 7-8 लोग आपको ऐसे नहीं दिखते, जिन्होंने कभी कोई कन्या भ्रूण हत्या नहीं की. यदि आप गणितीय प्रोबेबिलिटी को थोड़ा भी मानते हैं तो ये तो मानेंगे कि 10 में से पहली संतान लड़का या लड़की होने की प्रोबेबिलिटी 50-50% है. तो 5 लोग तो बरी कर दीजिये इस अपराध से पहली बार में.
फिर दूसरी संतान के भी लड़का या लड़की होने के भी चान्स बराबर हैं. तो बचे 5 में से आधे यानि 2.5 ( यदि सब ख्वाहिश मंद हो पुत्र के तो) दूसरी बार में इस जुर्म से बरी हो जाते हैं.
अब आप ये मानें कि 100% लोग 2 ही बच्चे करेंगे
(जब कि आप जानते हैं कि कुछ अधिक भी करेंगे)
और ये भी मान लें कि सब के सब यानि 100% पुत्र के ख्वाहिश मंद हैं
( हम जानते हैं कि सब नहीं हैं, कई पुत्रियों को भी पुत्र बराबर ही समझते हैं और 2 बेटियों में खुश हैं);
तो भी 75% लोग जो आज कन्या पूजेंगे, इस गुनाह के गुनहगार नहीं.
लेकिन कुछ छद्म बुद्धिजीवी विदेशों से पैसा ही इस बात का पाते हैं कि हिन्दू धर्म को लांछित किया जा सके. ये ही लोग दीवाली पर प्रदुषण और होली पर पानी की बर्बादी देखते हैं. बकरीद पर बहते खून के प्रदुषण पर या chirstmas की तड़क भड़क के खर्चे या न्यू इयर के पटाखों की बुराई करते पर इनकी आँखे मिच जाती हैं और जीभ कट जाती है.
इसे ही सेकुलर वाद कहते हैं- अर्थात हिंदुओं की बुराई करने का कोई बहाना मत चूको और विदेशी शक्तियों की मदद करो और उनसे चंदा खाओ.
ये ही आधुनिक युग के मीर जाफर और जयचंद हैं.
जो लोग आज कन्या पूज रहे हैं; उनमें से 75% लोग कन्याओं को वास्तविक जीवन में भी पूजते हैं.
– R Kamal Varshney