पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण, भगवान शिव जी के परम भक्त थे और उस वक्त के सबसे ज्ञानी पुरुष भी. उन्होंने कई सालों तक उनकी तपस्या कर उनको खुश किया और उनसे वरदान प्राप्त किया.
इसलिए कानपुर में सैंकड़ों साल पहले राजा शिवशंकर रावण मंदिर बनाया था. आज भी ये मंदिर कानपुर में स्थित है. इस मंदिर की खासियत ये है कि ये मंदिर साल में सिर्फ एक दिन खुलता है. दशहरे के दिन इस मंदिर को खोला जाता है और रावण की पूजा अर्चना की जाती है.
दशहरे का 10 दिनों तक मनाया जाने वाला पवित्र त्यौहार, जब दसवें दिन यानि की विजयदशमी के दिन रावण दहन की प्रथा पूरे देश में प्रचलित है. देशभर में जहाँ जगह-जगह लंकाधिपति रावण का दहन होता है, वहीं कानपुर शहर के शिवाला में इस दिन रावण को पूजा जाता है.
भक्तगण पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में यहाँ पूजते हैं. भक्तगण सरसों तेल के दिये जलाकर अपने रावण देवता से मन्नतों और शक्ति की कामना करते हैं. इस मंदिर के दरवाज़े भक्तों के लिए पूरे साल में सिर्फ एक बार ही खुलते हैं.
मंदिर का निर्माणकाल 147 साल पुराना है. दशानन मंदिर का निर्माण तब के सुप्रसिद्ध महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल द्वारा करवाया गया था. सन् 1868 में निर्मित यह मंदिर भगवान शिव जी के मंदिर के आगे बना हुआ है.
दशानन मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित कैलाश मंदिर के परिसर में ही स्थापित है जहाँ माँ दुर्गा की 23 अवतारों की मूर्तियां स्थापित हैं. भगवान शिव जी के परमभक्त होने की वजह से शक्ति के प्रहरी के रूप में कैलाश मंदिर के परिसर में रावण का मंदिर बनाया गया.
ऐसा कहा जाता है कि रावण अपनी भक्तिभावना से भगवान शिव जी को खुश करने वाले सबसे पहले भक्त थे, जिन्होंने माँ दुर्गा की पूजा भी की थी. इसलिए मंदिर परिसर में रावण को माँ दुर्गा के सभी अवतारों के रक्षक के रूप में भी स्थापित किया गया.