एक पाती चीनी माल खरीदने का आग्रह करने वाले रविशजी के नाम

प्रिय रविश जी ,

आपका चीनी माल खरीदने का आग्रह करता आलेख पढ़ा तो कुछ विचार मेरे मन में भी उत्पन्न हुए सोचा पूछ लूँ.

जिन लोगों को आप सम्बोधित कर रहे हैं उनके पास तो स्वयं आप ही के शब्दों में “खबरों का कूड़ेदान ” यानी अखबार और चैनल देखने का वक्त ही नहीं होता और न ही फेसबुक और ट्विटर पर उल्टियाँ करने का तो आप की बात उन तक इस माघ्यम से तो पहुँच नहीं पायेगी.

हाँ उन तक जरूर पहुँच गई जिनका आप उल्लेख कर रहे थे “फर्जी राष्ट्रवादी ” के तौर पर और जहाँ तक आप जैसी शख्सियत का सवाल है आप ऐसी गलती तो कर नहीं सकते कि सुनाना किसी को हो और सुन कोई और ले.

खैर जान कर खुशी हुई कि आपको इस देश के उस गरीबी नागरिक की चिंता है जो साल भर कुछ खाने या पहनने के लिए दिवाली का ही इंतजार करते हैं. यह तो अच्छी बात लेकिन काश कि आप कुछ चिंता अपने देश की भी करते और कुछ ऐसा हल देते जिससे इन लोगों को साल भर काम मिलता और उन्हें खाने और ओढ़ने के लिए साल भर दिवाली का इंतजार नहीं करना पड़ता.

जैसे कि आप उनके लिए कोई एन जी ओ खोल लेते या फिर किसी भी प्रकार की स्वरोजगार की ट्रेनिंग दे देते और एनडीटीवी के अपने साथियों को भी उनके इस कष्ट से अवगत करा कर उनकी मदद करने के लिए प्रेरित करते जिन पर शायद आपकी बात का कोई असर भी होता लेकिन दिन भर फेसबुक और ट्विटर पर उल्टियाँ करने वालों पर आपकी बात शायद असर कम ही डाले क्योंकि ये बेचारे तो” फर्जी” ही सही लेकिन राष्ट्रवाद से घिरे तो हैं.

आप कह रहे हैं कि चीन का माल नहीं खरीदना है तो भारत सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि वो चीन से आयात पर प्रतिबंध लगा दे. रविश जी आप जैसे अनुभवी शख्सियत से इस नादानी की अपेक्षा न थी क्योंकि आपका कसबा जो तबक़ा पढ़ता है वो दिन भर फेसबुक और ट्विटर पर उल्टियाँ ही करता है.

और ऐसी एक उल्टी से यह बात सबको पता है कि चूँकि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव जी के शासन काल में या फिर कहें कि काँग्रेस के शासन काल में 1995 में भारत वर्ल्ड ट्रेड औरगनाइजेशन का सदस्य बन चुका है जिस कारण भारत सरकार चीन पर व्यापारिक प्रतिबंध नहीं लगा सकती लेकिन भारत की जनता तो लगा सकती है !

आपने जो जापान का उदाहरण प्रस्तुत किया है तो जापान वहाँ अपनी ट्योटा कार बेचकर अमेरिका से पैसा कमा रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के साथ साथ अपने नागरिकों को रोज़गार भी दे रहा है वो अमेरिकी माल खरीद कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान नहीं कर रहा.

भारत सरकार के हाथ बंधे हैं पर भारत वासियों के तो नहीं ! अगर भारत के आम आदमी की मेहनत की कमाई चीनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के काम आए तो इससे तो अच्छा है कि भारत अपने शहीदों के सम्मान में दीवाली ही न मनाए.

यह समझना मुश्किल है कि चीन के माल के नाम पर आपको गरीब का जलता घर दिख रहा है उनके रोते बच्चे दिख रहे हैं लेकिन हमारे शहीदों की जलती चिताएँ, उनकी पत्नियों की उजड़ी मांग उनके रोते बच्चे उनके बूढ़े माँ बाप की अपने बेटे के इंतजार में पथरा गई आँखें कुछ भी दिखाई नहीं देता?

ऐसा ही हर बार क्यों होता है कि जब हमारे जवान शहीद होते हैं या फिर वे किसी के हाथों फेंके पत्थर से घायल होकर भी सहनशीलता का परिचय देते हुए कोई कार्यवाही करते हैं तो कुछ ख़ास वर्ग को हमारे सैनिकों के घावों से ज्यादा चिंता पैलेट गन से घायल होने वालों के घावों की होती है और मानव अधिकार याद आ जाते हैं? क्या हमारे सैनिक मानव नहीं हैं?

ख़ैर हम बात कर रहे थे चीनी माल की और उसे बेच कर दो पैसा कमाने वाले गरीब की, तो रविश जी मुझे इस बात का अफसोस है कि आप इस देश की मिट्टी से पैदा होने वाले आम आदमी को पहचान नहीं पाए. यह आदमी न तो अमीर होता है न गरीब होता है जब अपनी पर आ जाए तो केवल भारतीय होता है.
इनका DNA गुरु गोविंद सिंह जी जैसे वीरों का DNA है जो इस देश पर एक नहीं अपने चारों पुत्र हंसते हंसते कुर्बान कर देते हैं. इस देश की महिलाओं के DNA में रानी लक्ष्मी बाई रानी पद्मिनी का DNA है कि देश के लिए स्वयं अपनी जान न्यौछावर कर देती हैं.

इतिहास गवाह है जब जब भारत का DNA जागा है तो बाकी सबको सोना ही पढ़ा है चाहे वो मौत की नींद ही क्यों न हो.मुझे विश्वास है कि देश हित में इतनी कुर्बानी तो देश का हर नागरिक दे ही सकता है चाहे अमीर या गरीब.

आपने नीरज जी की कविता की वो मशहूर पंक्तियां तो सुनी ही होंगी,

“वह ख़ून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं,
वह ख़ून कहो किस मतलब का आ सके जो देश के काम नहीं.”

फिर भी रविश जी आपकी चिंता काबिले तारीफ है तो क्यों न आप केवल लिखने या बोलने के बजाय एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करें और पूरे देश के न सही केवल दिल्ली के और नहीं तो केवल अपने घर और आफिस के आस पास के ऐसे गरीबों से उनके चीनी माल को स्वयं भी खरीदें और एनडीटीवी के ग्रुप के अपने कुलीग्स से खरिदवाएँ ताकि उनका भी कुछ भला हो जाए.

आखिर आपको उनकी चिन्ता है आप उनका भला कीजिए हमें देश की परवाह है हम उसके लिए कदम उठाएंगे.

– डॉ नीलम महेंद्र

नीचे है रविश कुमार की पोस्ट –

इस दिवाली चीनी माल ज़रूर ख़रीदें !!
रेहड़ी पटरी पर बैठ कर सस्ता माल बेचने वालो,
ध्यान से सुनो। मुझे पता है आपके पास ख़बरों का कूड़ेदान यानी अख़बार पढ़ने और चैनल देखने का वक्त नहीं है। जिनके पास फेसबुक और ट्वीटर पर उल्टियाँ करने का वक्त हैं वो तुम्हारे माल की जात पता करना चाहते हैं।

ज़ोर शोर से अभियान चला रहे हैं कि अब दिवाली चीन का माल नहीं ख़रीदेंगे। पाकिस्तान का साथी चीन को सबक सीखाने के लिए इन लोगों ने आपके पेट पर लात मारने की योजना बनाई है।

थोक बाज़ार से अपना माल खरीद कर आप अपने अपने ज़िलों और क़स्बों की तरफ निकल चुके होंगे। चीन का माल आपकी गठरी में आ गया होगा कि इस दिवाली कुछ कमाकर बच्चों के नए कपड़े बनवायेंगे। बच्चों की फीस भरेंगे। फर्ज़ी राष्ट्रवादियों की नज़र आपकी कमाई ख़त्म करने पर है।

चीन का माल नहीं ख़रीदना है तो इन्हें भारत सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि वो चीन से आयात पर प्रतिबंध लगा दे। अपनी नीतियाँ रद्द कर दे। भारत में काम कर रही चीन कंपनियों को भगा दे। कारोबारियों का गला पकड़ लेना चाहिए कि वे चीन का माल न लायें। अरबों रुपये उनके भी दाँव पर लग गए हैं।

अगर ये कारोबारी भी चीन के ख़िलाफ़ अपनी राष्ट्रभक्ति साबित करने का शौक़ रखते हैं तो वे अपना सस्ता माल आप दुकानदारों को न बेंचें । मंडी में जला दें। क्या ऐसा होगा? कभी नहीं होगा लेकिन मोहल्ले में जो आपने पुलिस को कुछ ले देकर पटरियाँ लगाई हैं कि इस दिवाली कुछ कमायेंगे, उन पर इन लोगों की नज़र है।

चीन के ख़िलाफ़ अभियान ही चलाना है तो यह भी चले कि किस किस कंपनी का निवेश चीन में है। पूरी लिस्ट आए कि इनका माल नहीं ख़रीदेंगे और ख़रीद लिया है तो उसे कूड़ेदान में फेंक देंगे।

उन कंपनियों से कहा जाए कि अपना निवेश वापस लायें । अपने माल का आर्डर कैंसल करें। भारत में जहाँ जहाँ चीन है उसे खदेड़ देना चाहिए। सरकार से बयान दिलवाना चाहिए कि वे चीन के माल का बहिष्कार कर रहे हैं इसलिए कंपनियाँ वहाँ के लोगों से कारोबार न करें। वहाँ से माल लाकर यहाँ के लोगों को न बेचें।

क्या ऐसा होगा? राष्ट्रवाद के नाम पर सिर्फ ग़रीब को ही जान और माल का इम्तहान क्यों देना पड़ता है? आपने जो माल ख़रीदा है वो बेशक चीन का होगा लेकिन पैसा तो आपका है। उस माल का मालिकाना हक़ आपका है।

अगर इन फेसबुकिये राष्ट्रवादियों को चीनी माल से इतनी नफरत है तो ये अपने घरों से पहले से ख़रीदे गए चीन माल बाहर निकालें और उनकी होलिका जला दें। अपना स्मार्ट फोन क्यों नहीं शहर के मुख्य चौराहे पर फेंक देते हैं ?

सिर्फ दिवाली के वक्त ग़रीब दुकानदारों के ख़िलाफ़ ये साज़िश क्यों हो रही है? ये राष्ट्रवाद नहीं है बल्कि पूरी योजना है कि कैसे इसी के नाम पर ग़रीबों के सवाल को ग़ायब कर दिया जाए। ग़रीब को ही ग़ायब कर दिया जाए।

अगर चीन के माल का विरोध करना ही है तो ऐसा करने जा रहे उन लोगों से गुज़ारिश है कि चीन माल बेच रहे दुकानदारों को घाटा न होने दें। उनसे माल ख़रीदें और फिर होलिका जला दें। जिन लोगों से आप माल लेकर आये हैं, उनका तो काम हो गया है। उन्हें तो पैसा मिल गया है।

राष्ट्रवाद के नाम पर अपनी हर कमियों को ढँकने वाले ये लोग कैसे आपकी पेट पर लात मार सकते हैं? सरकार ने चीन से कारोबार करने के लिए बहुत सी नीतियाँ बनाई होंगी। क्या वे सब भी रद्द की जा रही हैं? क्या इस तरह की राजनीतिक सोच को फ़ंडिंग करने वाली कंपनियों से भी ये लोग माल नहीं ख़रीदेंगे ?

सावधान रहियेगा। चीन के नाम पर आपका घर जलाया जा रहा है। अमरीका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिरा कर लाखों लोगों को मार दिया था। वही जापान आज अमरीका को ट्योटा कार बेच रहा है। पाकिस्तान से अभी तक बाकी कारोबार चल ही रहा है। उसके रद्द होने का औपचारिक एलान नहीं हुआ है तो चीन के माल के बहिष्कार क्यों हो रहा है?

इसलिए जो ग़रीब हैं वो यह समझें कि कुछ लोग राष्ट्रवाद के नाम पर वीडियो गेम खेल रहे हैं। आपकी आवाज़ वैसे ही मीडिया से बेदख़ल कर दी गई है। अब आपको पटरी से भी ग़ायब करने के लिए कभी चीन तो कभी पाकिस्तान के माल के विरोध का शिगूफ़ा छोड़ा जा रहा है।

कुछ लोग चीनी माल न ख़रीद कर या जला कर नौटंकी करेंगे लेकिन इस दिवाली सावधान रहना। अगर इन लोगों से सहमत हो तो थोक बाज़ार से ही चीन का माल मत ख़रीदना। ख़रीद लिये हो तो जाकर लौटा देना।

आपका
रवीश कुमार

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