दशहरा, सोना पत्ती और सीमोल्लंघन

 

दशहरे के दिन, हम वैदर्भीय (महाराष्ट्र के विदर्भ में जिनकी जड़े हैं) लोग, शाम के वक़्त अपने गाँव-शहर की सीमा के बाहर जाते हैं और वहां से सोन-पत्ती, शमी के पत्ते लूट कर ( तोड़ कर, और अब तो खैर, खरीद कर) लाते हैं और अपने देव, परिजन आदि में  बाँटते हैं! इस प्रथा को सीमोल्लंघन कहा जाता है (मतलब गाँव-शहर की सीमा को लांघ के जाना) .

बचपन में पापा अक्सर हमें दशहरा से दो-तीन दिन पहले भारत के किसी हिस्से में घूमाने ले जाते और दिवाली के छ-सात दिन पहले हम लोग हमारे भ्रमण से वापिस आते थे.

मेरे ख्याल से सीमोल्लंघन का  कुछ-कुछ जुड़ाव राम की कथा से भी है. युद्ध में  जीतकर जब रामजी आते हैं तो अयोध्या से जन समूह उन्हें भेंट देने शहर की बाहरी सीमा पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से जल्लोष के साथ वापस आते हैं.

विजयादशमी, 18 अक्टूबर 2010 की शाम का वक़्त… हम सभी पूजा कर के, महाराष्ट्रियन पद्धति  के अनुसार एक दूजे को सोन-पत्ती देने की तैयारी में थे. पापा को नए कपड़े पहना कर, सोफे पे बिठाया, एक के बाद एक, पहले सभी बड़ों ने फिर छोटे बच्चों ने उन्हें सोना पत्ती दी, आशीर्वाद लिया.

दिमाग के केंसर से झूझते पापा इतना तो समझ रहे थे कि आज कुछ ख़ास अवसर है लेकिन शायद दशहरा है ये नहीं पता पड़ पा रहा था.

सायली ने जब उनके सर पे सोना पत्ती रखी तो उन्होंने भी लाड़ से उसके सर पे सोना पत्ती रख दी. मेरी बेटियों के लिए ये सब रीतियाँ नयी थी ही, पापा भी जाते जाते इन सबसे फिर एक दफा रूबरू हो रहे थे, शायद.

दांई तरफ से शरीर पेरालिटिक हो चुका था पापा का, इसलिए चलने फिरने में तकलीफ होती थी. सीमोल्लंघन क्या करवाते उनका? जैसे तैसे शशांक जी ने कार में बिठाया और हम लोग उन्हें बाहर से ही एक-दो मंदिर के दर्शन करवा लाये.

वो बीच में ही हँसते, बच्चे की तरह किलकारियां भरते और मेरा और बेटियों का हाथ चूमने लगते… वाचा जा चुकी थी.. कभी कभार हाथ उठा के कुछ इशारे में बता देते… ज्यादातर हम ही बोलते रहते.. उन्हें हँसाते और उनके जीवन में एक एक दिन, एक एक सोना पत्ती जोड़ते चले जाते.

कुछ महीने बाद वो वक़्त भी आ गया जब वो हमेशा के लिए सीमोल्लंघन कर गए….

आज फिर विजयादशमी है …मैंने और बच्चों  ने मिल कर पूजा की, भगवान-घर फूलों से सजाया, गाड़ियों को धोकर उनकी भी पूजा की…
शाम को देवालय में सोन पत्ती चढ़ाएंगे… एक दूजे को भी सोन पत्ती देंगे..

सोफे पे उसी जगह जहां पिछले साल पापा बैठे थे, सभी सोन पत्ती रखेंगे और सीमोल्लंघन करने जायेंगे… पापा, आप भी आओगे न, वहाँ से? सीमोल्लंघन करने… हैप्पी दशहरा पापा! विजयादशमी की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं!

(ये लेख गुरूवार, 6 ओक्टोबर 2011 को लिखा गया था)

Dr Swati Pande Nalawade

Comments

comments

LEAVE A REPLY