नेहरु की कुंडली के गुरु चांडाल योग ने किया देश का नुकसान!

चांडाल योग राहु-गुरु की युति या दृष्टि संबंध से बनता है, जिसे गुरु-चांडाल योग के नाम से जाना जाता है. इस योग की सबसे बड़ी बात यह है कि गुरु ज्ञान, धर्म, सात्विक, पंडित्व का कारक है, तो राहु अनैतिक संबंध, अनैतिक कार्य, जुआ, सट्टा, नशाखोरी, अवैध व्यापार का कारक है.

गुरु-राहु के संयोग की वजह से इसका प्रभाव जातक की कुंडली में इन ग्रहों के स्थानानुसार पड़ता है. राहु गुरु के प्रभाव को नष्ट करता है व उस जातक को अपने प्रभाव में जकड़ लेता है. पराई स्त्रियों में मन लगवाता है, चारित्रिक पतन के बीज बो देता है. इसके अलावा ऐसा राहु हिंसक व्यवहार आदि प्रवृत्तियों को भी बढ़ावा देता है.

चांडाल योग के दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है. ऐसा जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है. इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु को चांडाल माना गया है. गुरु का इन चांडाल माने जाने वाले ग्रह से संबंध स्थापित होने से कुंडली में गुरु चांडाल योग का बनना माना जाता है.

किसी कुंडली में राहु का गुरु के साथ संबंध जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना देता है, जिसके चलते ऐसा जातक अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है. जिसके लिए ऐसा जातक अधिकतर अनैतिक अथवा अवैध कार्यों को अपना लेता है.

सामान्यतः यह योग अच्छा नहीं माना जाता. जिस भाव में होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है. यदि मूल जन्मकुंडली में गुरु लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चांडाल योग बनाता हो तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है. पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है.

पूर्व IAS ऑफिसर एवं प्रसिद्ध ज्योतिष शोधकर्ता KN Rao की पुस्तक  “The Nehru dynasty” के अनुसार नेहरु की कुण्डली में भी यह गुरु चांडाल योग था. उस योग के प्रभाव को उन्होंने अपनी पुस्तक में बहुत अच्छे से वर्णित किया है.

पुस्तक के कुछ अंश चित्र में दिए गए हैं. जिसे पढ़कर कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि आपके पूर्वजन्म के कर्म, आपकी भाग्य रेखा और इस जन्म की परिस्थितयां मिलकर आपके व्यक्तित्व और स्वभाव का निर्माण करती हैं.

दिलचस्प बात यह है कि उनके पिता कांग्रेस द्वारा संचालित National Herald अखबार के पहले सम्पादक थे.

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