दशहरे के शगुन : आज भी याद हैं बचपन के दिन, नीलकंठ, सोना पत्ती और बीड़ा पान

यूं तो आज भी हमारी पुरानी परम्पराएं और शगुन ख़त्म नहीं हुए हैं. लेकिन आज के कोंक्रिट जंगल में जहां एक ओर नीलकंठ लुप्त होते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर किसी को अब इतना समय नहीं कि सोना पत्ती (शमी की पत्तियाँ) आस-पड़ोस के बुज़ुर्गों को देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने जाए.

सोना पत्ती

अश्विन मास के शारदीय नवरात्र में शक्ति पूजा के नौ दिन बाद दशहरा अर्थात विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक इस पर्व के दौरान रावण दहन और शस्त्र पूजन के साथ शमीवृक्ष का भी पूजन किया जाता है.

संस्कृत साहित्य में अग्नि को शमी गर्भ के नाम से जाना जाता है. खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है. महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी. इस दिन शाम को वृक्ष का पूजन करने से आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है.

मान्यता ये भी है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने के पूर्व शमी वृक्ष के सामने सिर नवाकर अपनी विजय हेतु प्रार्थना की थी. भगवान श्रीराम ने इन पत्तियों का स्पर्श किया और विजय प्राप्त की थी, इसीलिए मान्यता चल पड़ी कि शमी की पत्तियां विजयादशमी के दिन सुख, समृद्धि और विजय का आशीष देती है.

कालांतर में इसे स्वर्ण के समान मान लिया गया और दशहरे की शुभकामना के साथ इसका आदान-प्रदान होने लगा यह कह कर कि सोने जैसी यह पत्तियां आपके जीवन में भी सौभाग्य और समृद्धि लेकर आए.

नीलकंठ

नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूधभात का भोजन करियो, हमारी बात राम से कहियो, इस लोकगीत के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है. दशहरा पर्व पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है. जिसके चलते दशहरा के दिन हर व्यक्ति इसी आस में सुबह से ही आसपास खेतों व गांव के बाहर जंगली इलाकों में नीलकंठ की तलाश करते हैं.

इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन धान्य में वृद्धि होती है, और शुभ कार्य घर में अनवरत होते रहते हैं जिस कारण सुबह से लेकर शाम तक नीलकंठ का दिखाई देना शुभ माना जाता है.

बीड़ा पान

दशहरे के दिन बीड़ा पान का भी महत्व है. इस दिन हम सन्मार्ग पर चलने का बीड़ा उठाते हैं. दरअसल प्रेम का पर्याय है पान. दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है. ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी को व्यक्त करते हैं, और यह बीड़ा उठाते हैं कि वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे.

दशहरे के दिन पान खाने की परम्परा पर वैज्ञानिकों का मानना है कि चैत्र एवं शारदेय नवरात्र में पूरे नौ दिन तक मिश्री, नीम की पत्ती और काली मिर्च खाने की परम्परा है. क्योंकि इनके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है. इस समय संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है.

ऐसे में यह परम्परा लोगों की बीमारियों से रक्षा करती है. ठीक उसी प्रकार नौ दिन के उपवास के बाद लोग अन्न ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनकी पाचन की प्रकिया प्रभावित होती है. पान का पत्ता पाचन की प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखता है. इसलिए दशहरे के दिन शारीरिक प्रक्रियाओं को सामान्य बनाए रखने के लिए पान खाने की परम्परा है.

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