जी, यह एक 5-स्टार ट्रेन नहीं है… इसमें वातानुकूलित (एसी) डब्बे नहीं हैं. इसमें मुफ्त का चाय नाश्ता नहीं मिलेगा. इसमें मूंगफली खाकर छिलका फर्श पर फेंकने की आज़ादी नहीं होगी. इसमें बिना टिकट यात्रा का सुख भी नहीं मिलेगा..
कुछ लोग इसके टॉयलेट में गन्दी गलियाँ और लड़कियों के नंबर लिख रहे हैं… कुछ इसका शीशा खोल कर ले जाने की फिराक में हैं. कुछ हर 10 मिनट पर चेन खींच कर ट्रेन खड़ी कर दे रहे हैं. कुछ बिना बात का झगड़ा झंझट कर रहे हैं, महिलाओं पर फब्तियाँ कस रहे हैं…
मैं भी इसी ट्रेन में सवार हूँ… पर मैं अपने को इसका पैसेंजर मात्र नहीं समझता. अगर मुझे कहीं केले का छिलका मिलेगा, तो मैं उठा कर कूड़ेदान में फेंकूँगा, अगर बाथरूम में नल खुला मिलेगा तो बंद करूँगा, अगर कोई जंजीर खींच कर खड़ी करने की कोशिश करेगा तो उसकी शिकायत गार्ड से करूँगा…
कोई सामान उठा कर भागने वाला पकड़ा जायेगा तो उसे 2-4 हाथ लगाने के भी पक्ष में हूँ. अगर जरूरत पड़े तो इंजन रूम में जाकर कोयला झोंकने के लिए भी तैयार हूँ, पटरी पर गिरे पेड़ को हटाने के लिए भी हाथ लगाने को तैयार हूँ…
मैं इस ट्रेन में इसलिये नहीं सवार हूँ कि सुबह उठकर अपने साथ दो चादर और एक कम्बल लेकर उतर जाऊँ… मैं चाहता हूँ, ट्रेन ढंग से चले और समय से सही जगह पहुंचे. अगर ट्रेन आउटर सिग्नल पर आधे घंटे खड़ी हो तो चिंता होती है… उतर कर झाँकता हूँ कि क्या हुआ…
मैं सिर्फ बैठ कर ताश का एक हाथ खेलने के लिए ट्रेन में नहीं चढ़ा हूँ. मैं चाहता हूँ, मेरे देश की गाड़ी सही समय से सही जगह पहुंचे. मैं मोदी एक्सप्रेस का एक पैसेंजर भर नहीं हूँ… मैं अपनी जानता हूँ… अपनी आप जानें..