मंदिर में शूद्रों के प्रवेश पर रोक का खुलासा, जानिए किसने रचा ये झूठ

ईस्ट इंडिया कंपनी के समुद्री लुटेरों ने जब भारत में 1757 में टैक्स इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी छीनी तो ऐसा कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं दिया, जहां से भारत को लूटा जा सकता हो. वही काम पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हुआ. वहाँ पर शासन और प्रशासन के नाम पर, तीर्थयात्रियों से टैक्स वसूलने में भी उन्होंने कोताही नहीं की.

तीर्थयात्रियों की चार श्रेणी बनाई गईं. चौथी श्रेणी में वे लोग रखे गए जो गरीब थे, जिनसे ब्रिटिश कलेक्टर टैक्स न वसूल पाने के कारण उनको मंदिर में घुसने नहीं देता था. ये काम वहाँ के पंडे-पुजारी नहीं करते थे, बल्कि कलेक्टर और उसके गुर्गे ये काम करते थे. (संदर्भ : Section 7 of Regulation IV of 1809 : Papers Relating to East India affairs)

ब्रिटिश हुक्मरानों द्वारा किये गए वर्गीकरण की इसी सूची का उद्धरण देते हुये डॉ अंबेडकर ने 1932 में ये हल्ला मचाया कि मंदिरों में शूद्रों का प्रवेश वर्जित है. वो हल्ला ईसाई मिशनरियों द्वारा अंबेडकर भगवान को उद्धृत करके आज भी मचाया जा रहा है.

ज्ञातव्य हो कि 1850 से 1900 के बीच 5 करोड़ भारतीय अन्न के अभाव में प्राण त्यागने को इस लिए मजबूर हुये क्योंकि उनका हजारों साल का मैनुफेक्चरिंग का व्यवसाय नष्ट कर दिया गया था. बाकी बचे लोग किस स्थिति में होंगे ये तो अंबेडकर भगवान ही बता सकते हैं. वो मंदिर जायंगे कि अपने और परिवार के लिए दो रोटी की व्यवस्था करेंगे?

आज भी, कोई भी व्यक्ति यदि मंदिर जाता हैं और अस्वच्छ होता है तो मंदिर की देहरी लांघे बिना प्रभु को बाहर से प्रणाम करके चला आता है. और ये काम वो अपनी स्वेच्छा और पुरातन संस्कृति के कारण करता है, ना कि पुजारी के भय से.

जो लोग आज भी ये हल्ला मचाते हैं, उनसे पूछना चाहिए कि ऐसी कौन सी वेशभूषा पहन कर या सर में सींग लगाकर आप मंदिर जाते हैं कि पुजारी दूर से पहचान लेता है कि आप शूद्र हैं?

विवेकानंद ने कहा था – भूखे व्यक्ति को चाँद भी रोटी के टुकड़े की भांति दिखाई देता है.

एक अन्य बात… जो अंबेडकरवादी दलित, अंग्रेजों की पूजा करते हैं, उनसे पूछना चाहूँगा कि अंग्रेजों ने अपनी मौज मस्ती के लिए जो क्लब बनाए थे, उसमें भारतीय राजा-महाराजा भी नहीं प्रवेश कर पाते थे. बाहर लिखा होता था – Indian and Dogs are not allowed. मुझे लगता हैं कि उन्हीं क्लबों के किसी चोर दरवाजे से शूद्रों को अंदर एंट्री अवश्य दी जाती रही होगी? ज्ञानवर्धन करें, ऐसा ही था न?

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