Cosmology का है क़ुरान में ज़िक्र! आधुनिक युवाओं को लुभाने ज़ाकिर नाइक का जाल

आज से करीब पाँच साल पहले मेरे एक दोस्त की एक मुसलमान गर्लफ्रेंड थी. हैदराबाद की रहने वाली थी और दक्षिण में ही किसी कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी. उस समय उसकी उम्र 24-25 साल रही होगी.

दोस्त का दोस्त होने के नाते वह मुझे भी मैसेज भेजा करती थी. ज्यादा कुछ नहीं बस हाय हैलो हंसी मजाक टाइप. स्वभावतः वह बहुत अच्छी लड़की थी. कालांतर में मेरे दोस्त की शादी हो गयी फिर उस लड़की से कभी बात नहीं हुई. मेरे विचार से उसके बारे में इतना परिचय पर्याप्त है.

वह लड़की यह जानती थी कि मैं भौतिकी का विद्यार्थी हूँ और ब्रह्माण्ड से लेकर परमाणु तक सब पढ़ता हूँ. एक दिन उसने मेरा ईमेल माँगा और मुझे जाकिर नाईक के IRF से छपी कुछ पीडीएफ फ़ाइल भेजी.

पाँच साल पहले मैं जाकिर नाईक नामक किसी भी आदमी को नहीं जानता था. लिहाजा वह ईमेल एक सरसरी निगाह से देखा और भूल गया. कुछ दिन पहले जब इस चोट्टे का नाम मीडिया में उछला तो मुझे कुछ याद आया.

मैंने अपने पुराने ईमेल चेक किये तो तीन पर्चों सहित जाकिर नाईक का लिखा 67 पेज का एक पीडीएफ डॉक्यूमेंट मिला जिसमें उसने क़ुरान की आयतों का हवाला देकर यह बताया है कि आधुनिक विज्ञान में जितनी भी खोज हुई है वह सब पहले से ही क़ुरान में लिखा हुआ है.

जाकिर नाईक ने बड़ी चालाकी से क़ुरान की आयतों को ‘Cosmology’ से जोड़ा है. इस विषय पर चर्चा करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ‘ब्रह्माण्ड विज्ञान’ या cosmology क्या है.

कॉस्मोलॉजी मूलतः भौतिकशास्त्र (Physics) की एक शाखा है. इसकी परिभाषा है: “Cosmology is the study of universe as a whole.” अर्थात् समूचे ब्रह्माण्ड को निहारिकाओं, मन्दाकिनियों, ग्रहों, ब्लैक होल, तारामंडलों इत्यादि में विभाजित न कर के बल्कि एक पिंड के रूप में उसके गुण व्यवहार का समग्रता में अध्ययन करना कॉस्मोलॉजी है.

आधुनिक कॉस्मोलॉजी का आरंभ आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत से हुआ. कॉस्मोलॉजी में हम ब्रह्माण्ड को एक दिक् काल रूपी द्रव्य पिंड के रूप में मान कर उसमें व्याप्त पदार्थ, ताप, घनत्व, रेडिएशन तरंगों की ऊर्जा, विस्तार की गति इन सभी मानकों के परस्पर व्यवहार का अध्ययन करते हैं. इसी के आधार पर ‘बिग बैंग’ सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया था.

जाकिर नाईक क़ुरान की कुछ आयतों का फ़र्जी तर्जुमा कर यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि चूंकि क़ुरान में लिखा है कि जन्नत और ज़मीन पहले एक थे फिर अल्लाह ने उन्हें अलग कर दिया इसलिए यह सिद्ध होता है कि ‘बिग बैंग’ सिद्धांत पहले से ही इस्लाम की आसमानी किताब में लिखा हुआ है.

इतना ही नहीं एक जगह यह भी लिखा कि अल्लाह ने आकाश में धुंआ बनाया फिर उसे एक जगह इकट्ठा होने का आदेश दिया इससे यह सिद्ध होता है कि मन्दाकिनी (galaxy) बनने से पहले सब पदार्थ धूल और धुएँ का गुबार था.

इसी तरह तमाम तथ्य जैसे धरती ध्रुवों पर चपटी गोल है, तारों के बीच का पदार्थ interstellar matter, सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगाता है इत्यादि पहले से ही क़ुरान में लिखे हैं यह जाकिर नाईक ने अपने इस पीडीएफ पर्चे में सिद्ध करने की कोशिश की है.

केवल कॉस्मोलॉजी ही नहीं बल्कि Botany, भूगर्भ विज्ञान, Marine Geology, Hydrology जैसे कई जटिल विषयों के अध्ययन से ज्ञात तथ्यों को भी क़ुरान की ही देन बताया है. कहीं कहीं तो उसने कई प्रसिद्ध विषय विशेषज्ञों को मनमाना ढंग से उद्धृत भी किया है. स्टीफेन हॉकिंग, एडविन हबल जैसे विद्वानों का रेफरेंस दिया है.

एक दूसरे पर्चे में तो बाकायदा सैद्धांतिक भौतिकी के प्रकांड विद्वान तथा नोबेल से सम्मानित प्रोफेसर स्टीवन वाइनबर्ग की प्रसिद्ध पुस्तक First Three Minutes का हवाला भी दिया गया है.

जाकिर नाईक के तमाम प्रयासों के बावजूद उसके द्वारा प्रचारित झूठ का भंडाफोड़ करना कोई कठिन कार्य नहीं है. मैं कॉस्मोलॉजी जानता हूँ इसलिए यह कह सकता हूँ कि इस विषय में जितनी भी खोजें हुई हैं वह या तो गणितीय प्रमेयों द्वारा सिद्ध हैं या प्रायोगिक रूप प्रत्यक्ष मापी गयी हैं.

दरअसल कॉस्मोलॉजी गणितीय भौतिकी से निकला विषय है जहाँ ब्रह्माण्ड के व्यवहार को दर्शाने के लिए उसके भौतिक मानकों को एक गणितीय सूत्र में पिरोया जाता है फिर हर स्थिति में उसे हल किया जाता है.

यदि वह समीकरण हर स्थिति में समाधान देता है तभी वैज्ञानिक जगत में उसे स्वीकृति मिलती है और पेपर छपने लायक बनता है. इसे mathematical model of universe कहा जाता है. ऐसे अनगिनत मॉडल बनाये गए हैं जिनमें Big Bang मॉडल को Standard Model of Universe कहा जाता है.

आर्नो पेन्ज़िअस और रॉबर्ट विल्सन ने cosmic microwave background रेडिएशन को अपने उपकरण पर प्रत्यक्ष सुना था. एडविन हबल ने दूर जाती मन्दाकिनियों से निकलते प्रकाश का विश्लेषण किया था.

एलन गुथ ने जब कहा कि ब्रह्माण्ड विस्तारित हो रहा है तो यह बात उनके स्वप्न में नहीं आई थी. उनकी inflationary universe theory या हाकिंग के singularity theorems बाकायदा क्लिष्ट गणित द्वारा सिद्ध किये गए हैं, अल्लाह ने हैरी पॉटर की छड़ी घुमाई और ब्रह्माण्ड फैलने लगा ऐसा तो नहीं हुआ था.

आइंस्टीन के सिद्धांत के प्रतिपादन से अब तक सौ वर्षों में हज़ारों वैज्ञानिकों की तपस्या और करोड़ों डॉलर फुंक चुके हैं तब आज बिग बैंग सिद्धांत सर्वमान्य है. इसमें भारतीय वैज्ञानिकों का भी बड़ा योगदान रहा है.

ब्रह्माण्ड के अध्ययन के लिए बड़ी बड़ी दूरबीनें धरती पर स्थापित की गयीं और अंतरिक्ष में भी प्रक्षेपित की गयी हैं. भारत का Astrosat इसी कार्य के लिए छोड़ा गया है.

विज्ञान निरन्तर शोध का विषय है. बहुत से विद्वान बिग बैंग थ्योरी से सहमत नहीं भी हैं. किंतु उनका विरोध का तरीका वैज्ञानिक आधार लिए होता है.

जाकिर नाईक के जाल में फंसने वालों को क़ुरान का बेवजह ऊंट पटांग तर्जुमा और व्याख्या करने की बजाय ग्यारहवीं सदी के अरबी विद्वान सईद अल अन्दलूसी की किताब तबाकत-अल-उमाम पढ़नी चाहिये जिसमें लिखा है कि विज्ञान को अपनाने वाली आठ सभ्यताओं में से भारत पहली सभ्यता थी जहाँ ज्ञान विज्ञान को जानने वाले तथा बहुत से दुर्लभ आविष्कार हुए.

यदि मन न भरे तो भारत का वैज्ञानिक इतिहास जानने के लिए बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक प्रो० देबेन्द्र मोहन बोस द्वारा सम्पादित A Concise History of Science in India पढ़नी चाहिये. इस पुस्तक में कैलकुलस में बताई गयी तात्कालिक गति (intantaneous velocity) का सटीक सूत्र तक मिल जायेगा जो प्राचीन भारतीय मनीषियों ने खोजे थे.

इसके अलावा प्रसिद्ध इतिहासकार आर सी मजूमदार जैसे विद्वानों द्वारा लिखित प्रमाण भी इसी पुस्तक में मिल जाएंगे. यह पुस्तक आसमान से नहीं गिरी थी बल्कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी से प्रकाशित की गयी थी.

यद्यपि जाकिर नाईक खुद क़ुरान का तर्जुमा भी नहीं कर सकता फिर भी मैं नहीं मानता कि वह एक जोकर या मूर्ख व्यक्ति है. जाकिर एक बहुत ही चालाक और मज़हब के प्रति ईमान रखने वाला व्यक्ति है. उसने अब्दुल्ला युसूफ अली द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित क़ुरान से आयतें उठा कर विज्ञान की उन शाखाओं से जोड़ा है जो बहुत कम लोग जानते समझते हैं.

उसकी संस्था IRF द्वारा प्रकाशित जो पर्चे मेरे हाथ लगे उनमें कुछ इस तरह से लिखा गया है कि विज्ञान पढ़ने वाले बुद्धिमान युवा छात्र उसकी तरफ आकर्षित हों. यह जाकिर नाईक द्वारा इकट्ठा किये गए youtube पर दिखने वाले उस मजमे से अलग है जहाँ कभी कभी उसका मखौल भी उड़ाया जाता है.

जाकिर मूर्ख को मूर्ख की तरह तथा बुद्धिमान को बुद्धिमान की तरह अपनी बात समझाना चाहता है. वह युवा मुसलमान लड़के लड़कियों को विज्ञान की चमक दिखा कर इस्लामी चरमपंथ की तरफ मोड़ता है. वरना एक 24-25 साल की लड़की जो मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी, उसने मेरे जैसे एक ग़ैर को IRF के पर्चे न भेजे होते. इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.

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