मेरी दादी अनपढ़ थीं, समझदार भी कम न थीं. कच्ची उमर में ही घर गृहस्थी की चिंता अच्छे अच्छों को समझदार बना देती है. बच्चे संभालती – घर संभालती मेरी दादी ने अपनी सारी जिम्मेदारियाँ निभाईं – परिवार के लिये भी और देश के लिये भी.
2004 में अपना देहाँत होते तक मेरी दादी ने देश के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुये गाँधी को ही वोट दिया. और मेरी दादी ही क्यों, ऐसे जाने कितने लोग गाँधी को आज तक वोट दे रहे हैं.
इसी लिये स्नूप-वीर चिचा नेहरू ने गाँधी के मरने के बाद भी उनके नाम को नहीं मरने दिया. खेत में कौवे भगाने के लिये अगर किसान खुद खड़ा न रह सके तो बिजूका खड़ा कर देता है अपने कपड़े पहना के. वोटों की लहलहाती फसल काटने के लिये नेहरू ने भी गाँधी का बिजूका अपने परिवार के नाम पर खड़ा कर दिया.
उसके लिये कटने को फसल में मेरी दादी जैसे वोटर तो खैर बाई डिफॉल्ट आ ही गये थे, मगर पढ़े लिखों के वोट भी सर झुकाये धान की बालियों की तरह इस बिजूके के लिये कटते रहे. पुरानी आदतें जल्दी से नहीं छूटती और भईया कौन इतनी मेहनत करे – कोऊ नृप हमें का हानि? राजा जो भी हो, हमें तो अपनी लाईफ से मतलब वाली सोच का सही मानों में कोई इलाज नहीं.
परिवर्तन किसी को पसंद नहीं सिवा शासकों के तभी तो बात नेहरू के जीप घोटाले से बोफोर्स के रास्ते चॉपर घोटालों तक आ गई – इण्डिया इज़ शाईनिंग, काश्मीर के नाम पर जो होता हो होता रहे – इण्डिया इज़ शाईनिंग, भ्रष्टाचार से लिप्त IPL हम देखते रहेंगे, मगर सूखे पर घड़ियाली आँसू बहा कर सोशल मीडिया पर तमगे भी हासिल करेंगे – इण्डिया इज़ शाईनिंग.
दादी मेरी अनपढ़ थीं, उन्हें गाँधी के नाम पर चराया गया. अपने ज़माने में दादी घर की रोटी के लिये चक्की पीसा करती थी. औरतें चक्की के इर्द गिर्द बैठ कर गप्पें लड़ा लिया करतीं थीं. अब अचानक बुद्धिजीवियों की बाढ़ आई है देश में, जो सोशल मीडिया की चक्की पीस रहे हैं – और इसी चक्की पर लच्छे पराँठे बनाये जा रहे हैं.
इन पराँठों के होलसेल विक्रेता हैं प्रशाँत किशोर – वो जिसके साईड बैठें, सोशल मीडिया में हवा उसके साईड से बहने लगे – मोदी की बगल में बैठे, मोदी जी पीएम! नितीशे कुमार के साथ बैठे – नितीशे कुमार के साथ बिहार में जंगलराज की बहार. सुना आजकल छोटा भीम एण्ड पार्टी के साथ यूपी में बैठ रहे हैं, अब देखो वहाँ कैसे पनीर पराँठें बनने वाले हैं अगले साल.
प्रशाँत भैया का सक्सेसफुल ट्रॉजन हॉर्स फारमूला हर जगह फिट है. इसमें ज़्यादा कुछ नहीं करना पड़ता – पहले दुश्मन के पक्ष में लाख नकली आई डी बनवाइये. उसके बाद उनसे बेवकूफियों वाले पोस्ट्स करवाईये – ये पोस्ट सोशल मीडिया में धड़ल्ले से वाईरल होते ही, ट्रोजन हॉर्स आईडीज़ के साथ बनी कुछ अन्य आईडीज़ से इनका मज़ाक बनवाना शुरू कीजिये – लो बन गई आपके लिये सोशल मीडिया में हवा.
पेड मीडिया इसे हाथों हाथ उठा लेगा – मामला पूरा आपके हाथ में, एण्टी वायरस बनाने वाली कम्पनियाँ ये खेल ज़माने से खेल रही हैं – वायरस बनाओ, उसे फैलाओ और फिर उससे लड़ने वाला अपना ही बनाया प्रोग्राम बेचो. प्रशाँत भैया का स्टार्ट अप चाँदी काट रहा है इस खेल में.
मगर सोचने वाली बात ये है जनाब कि खुद को आज़ाद ख्याल कहने वाले आप किसे वोट दे रहे हैं – नीतिशे कुमार को, मोदी के विकास मॉडल को, छोटा भीम वाले पप्पू भैया को या प्रशाँत किशोर को?
जो आदमी इतनी आसानी से गलत खबरें न सिर्फ आपके तथाकथित आज़ाद भेजे में प्लाण्ट करने का माद्दा रखता है बल्कि आपका ध्यान भी ऊलजलूल चीज़ों में लगाये रखता है और आप सरकार को कोसते वक्त कोयला, 2G, 3G, जीजा जी, कॉमनवेल्थ और चॉपर भूल कर सवाल करते फिरते हैं बिना ये जाने कि जनधन योजना का क्या लाभ है, या उजाला स्कीम क्या है? (ज़रा ये देख लें – http://www.delp.in) तो आपसे ज़्यादा क्यूट कोई नहीं.
चाहें तो आज लाँच हुई उज्जवला योजना के विषय में पढ़ें और समझें कि इससे देश के गरीबों को जो फर्क पड़ेगा वो iPhone के ब्राण्ड एम्बेसेडर कन्हैया और JNU के झोलाछाप ग्राण्टखाऊ जोकरों के आजादी छाप नारों से अगले मिलेनियम तक नहीं पड़नेवाला क्योंकि किसी भी परिवर्तन के लिये काम करना पड़ता है एण्ड कॉन्ट्रेरी टू द पापुलर बिलीफ – फिल्म समीक्षा और लालू की चरण वँदना ‘काम’ की कैटेगरी में नहीं आती. लाल सलाम कहते ही आप उस लाल रंग को सलाम करते हैं, जो सड़क पर चलती गाड़ियों को रोकने के काम आता है.
खैर, चाहें तो जैसे मेरी दादी गाँधी को वोट दे रही थी आप भी देते रहिये, दादी तो बेचारी अनपढ़ थीं, आप क्या हैं खुद फैसला कर लीजिये.