भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चिट्ठी लिखने में निपुण थे. उन्होने सारी जिंदगी चिट्ठी लिखी. अपने पिता मोतीलाल जी को लिखी, गांधी जी को भी लिखते रहे, पटेल को लिखी तो बोस बाबू को भी लिखी.
अंग्रेज़ मित्रों, अफसरों, वायसराय, सेना के जनरल को भी लिखी. जिन्नाह को भी चिट्ठी लिखते रहे. अपनी बेटी को चिट्ठी लिख-लिख कर ही पाला, यहाँ तक की किताब छप गयी पिता के पत्र बेटी के नाम.
नेहरू ने अपना प्यार, शत्रुता, सलाह, देश भक्ति सब चिट्ठी के सहारे ही जिया. अपनी पत्नी को लेकिन इतनी चिट्ठी नहीं लिखी. उनके मरने के समय ही थोड़ा प्रेम जागा था उनके मन में. लेकिन फिर उस प्रेम की पूर्ति उन्होंने लेडी माउण्टबेटन को चिट्ठी लिख-लिख कर पूरी की.
पंडित साहब भावुक भी बहुत थे. क्या बोलते हैं… कठोर मर्द नहीं थे. बात-बात पर रो देते थे. अपनी पत्नी के मरने पर भी रोये, बोस बाबू के मरने की खबर सुनकर तो सार्वजनिक रूप से रोये. गांधी जी जब मरे तो रो-रो कर आसमान सर पर उठा लिया. जिस गाड़ी मे गांधी जी को ले जाया गया, उसके एक किनारे बैठे रोते ही रहे सारी यात्रा में.
लता जी ने जब ‘ए मेरे वतन के लोगों’ गाया तो भी पंडित जी रोने लगे थे. चीन ने जब असम पर कब्जा करने की पूरी तैयारी कर ली थी तब भी पंडित जी रोते-रोते असम वालों से रेडियो पर कह रहे थे, अब तुम्हारे हवाले असम साथियों.
पंडित जी सीधे भी बहुत थे. इतनी सीधी सादगी की प्रतिमूर्ति भारत को कभी नहीं मिली. कश्मीर को सुरक्षा परिषद मे ले गए, इस भरोसे के साथ कि अमेरिका और ब्रिटेन न्याय की मशाल से अपने घर में मोमबत्ती जलाते हैं, कश्मीर के साथ भी न्याय करेंगे.
1937 में जब चुनाव हुए तो पंडित जी कांग्रेस के अध्यक्ष थे. चुनाव में भाग लेने के विरोधी थे. सरकार बनाने के सख्त खिलाफ थे. लेकिन चुनाव से पहले बहुत प्रचार किया. पूरा देश घूमे. भाषण दिये. एक जगह इतने लोगों की भीड़ इकट्ठा थी कि स्टेज तक जाने के लिए लोगों के कंधे पर चढ़ कर जाना पड़ा. नेहरू जी इतने खुश हुए कि जूता उतारना भूल गए.
बेचारे नेहरू सोच रहे थे कि चुनाव जीतने के बाद सरकार नहीं बनाएँगे, अंग्रेज़ो को मुंह की खानी पड़ेगी. पर सीधे और सादे नेहरू क्या जानते थे कि उनको छोड़कर बाकी कांग्रेस सरकार बनाने के लिए लालायित है.
चुनाव जीतने के बाद हुई सभा में, वो और बोस अकेले थे जो सरकार बनाने के खिलाफ थे. बाकी कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता तो आए ही सरकार मे हिस्सेदारी के लिए थे. गांधी जी ने अनशन करके अपने पाप धो लिए. नेहरू जी ने कांग्रेसी सरकारों की तरक्की देख कर.
सीधे साधे पंडित जी सोचते थे कि विभाजन नहीं होगा, कहीं पानी को लाठी मारने से पानी अलग होता है भला. जिन्नाह को समझाते रहे, पहले दस साल एक साथ रहो फिर अच्छा न लगे तो अलग हो जाना.
बूढ़े भी जल्दी हो गए थे. मात्र 55 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते थक गए और अंग्रेज़ो से बोले कि कर दो विभाजन अब और नहीं लड़ा जाता, बूढ़ा हो गया इस लड़ाई मे. हालांकि उसी समय एडविना जी से प्रेम प्रसंग भी चलता था, जवानों के जैसा. लेकिन देश की आजादी के लिए और लड़ने की ताकत नहीं बची थी. बेचारे नेहरू. सीधे साधे भावुक…