एक नई नौटंकी आई है. नाम है Nuclear Security Summit. Nuclear का मतलब तो आप जानते ही हैं– नाभिकीय– परमाणु ऊर्जा से सम्बंधित. Security माने सुरक्षा और Summit का शाब्दिक अर्थ है पर्वत का शिखर.
जब देशों के शासनाध्यक्ष (प्र मं/राष्ट्रपति) किसी मुद्दे पर वार्ता के लिए मिलते हैं तो उसे शिखर वार्ता कहते हैं. अमरीका के बुलावे पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गए हैं इस शिखर वार्ता में.
दरअसल ये मीटिंग 2010 से अमरीका ही करवाता है. मजेदार बात ये है कि जिस देश ने 1945 में अकारण लाखों निर्दोष, निहत्थे, निरपराध जापानी लोगों को मौत के घाट उतार दिया था वो देश अंतर्राष्ट्रीय पंचायत बुला कर निरस्त्रीकरण की कवायद कर रहा है.
हमें तो उद्यमशील जापानियों से सीखना चाहिये जिन्होंने कभी परमाणु अस्त्र नहीं बनाए क्योंकि वे उस विभीषिका की पीड़ा को समझते हैं.
जब अमरीका ने परमाणु अस्त्र बनाया था तो उसे Manhattan Project नाम दिया था. जे. रॉबर्ट ऑपेन्हाईमर के निर्देशन में हज़ारों वैज्ञानिक लगे थे. बम बनने के बाद परीक्षण किया जा चुका था. विनाश कितना होगा इसका अंदाज़ा भी था.
अमरीका जापान पर परमाणु अस्त्र नहीं गिराता तब भी द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म हो सकता था. फिर भी ये कुकृत्य किया गया. अमरीका विश्व का सबसे बड़ा युद्ध अपराधी है.
ये लोग हर साल 6-9 अगस्त को अपनी वाहवाही करते हैं. कहते हैं कि इन्होंने कितना बड़ा विज्ञान का अविष्कार किया. मार्केटिंग स्ट्रेटेजी गज़ब की है. नेशनल जियोग्राफिक और डिस्कवरी पर 2 घण्टे के प्रोग्राम दिखाए जाते हैं.
बहुत पहले रिचर्ड रहोड्स ने एक बेस्टसेलर किताब लिखी थी: The Making of the Atomic Bomb. आज भी ये दुनिया भर में बिकती है. पिछले साल सुनने में आया था कि ओबामा ने माफ़ी मांगने की इच्छा जताई थी. सौ चूहा खा के बिलार बनी भक्तिन!
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अमरीका निरस्त्रीकरण की कूटनीति में फेल हुआ है. Andrew Small लिखते हैं कि यदि चीन और पाकिस्तान के बीच सम्बंध प्रगाढ़ करने में सामरिक साझेदारी महत्वपूर्ण है तो इस साझेदारी में परमाणु तकनीक के प्रसार की सबसे बड़ी भूमिका है.
सन् 2004 में कर्नल गद्दाफी के लीबिया से परमाणु अस्त्रों के ब्लूप्रिंट मिले थे जिनकी भाषा चीनी थी.
अब्दुल क़ादिर खान ने ईरान, कोरिया लीबिया सबको अवैध रूप से सामग्री और तकनीक बेची थी. ये हरामज़ादा पाकिस्तानी सन् 76 में माओ के जनाज़े में चीन गया था वहीँ से चीन पाकिस्तान की दोस्ती गहरी हुई.
सन् 48 से ही अमरीका और चीन पाकिस्तान को शह और भारत को घाव दे रहे हैं. सन् 2000 के आस पास क्लिंटन प्रशासन ने भारत को CTBT और NPT पर हस्ताक्षर कराने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया था. लेकिन हमारे पास आदरणीय अटल जी थे जो शिला की भाँति ‘अटल’ रहे.
अटल जी के कार्यकाल में ही नाभिकीय आयुध के प्रबंधन और रखरखाव हेतु सेना की Strategic Forces Command की स्थापना की गयी थी और प्रशासनिक अधिष्ठान के रूप में Nuclear Command Authority का गठन किया गया था.
देश को ‘नाभिकीय सिद्धान्त’ (Nuclear Doctrine) देने का श्रेय भी आदरणीय अटल जी को ही जाता है. इसका ड्राफ्ट वर्तमान विदेश सचिव एस जयशंकर के पिता के. सुब्रमण्यम ने लिखा था. इसी में लिखा है कि हम परमाणु अस्त्र का प्रयोग पहले नहीं करेंगे.
भारत में हर साल IAEA के अधिकारी आते हैं और नाभिकीय संयंत्रों की सुरक्षा से संतुष्ट हो कर जाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के मुख्य कार्यालय के बाहर एक मात्र वैज्ञानिक डॉ० होमी भाभा की प्रतिमा लगी हुई है.
हम अमरीका के द्वारा प्रोत्साहित दैत्य पाकिस्तान को रोकने के लिए अमरीका द्वारा बुलाई गयी मीटिंग में हिस्सा लेते हैं. वो दिन भारत नहीं भूला जब मुशर्रफ के कन्धे पर हाथ धरे बुश जूनियर घूमा करते थे और विश्व शान्ति के तराने गाते थे.
हेनरी किसिंजर लिखता है कि अमरीका एक नया World Order लिखेगा. इस कथित व्यवस्था में हमारे हितों की आस्था का प्रश्न कितनी बार उठेगा, ये यक्ष प्रश्न है.