पंचतन्त्र की एक कथा है जो संक्षेप में बताता हूँ. एक सन्यासी दूसरे से मिलने गया तो उसे मित्र बहुत परेशान सा दिखाई दिया. कारण पूछने पर बताया एक मूषक है जो उनकी रोटी खा जाता है. छत से एक रस्सी को एक मटकी बांधकर उसमें वो रोटी रक्खी तो भी वो ऊंचा कूदकर उस रोटी को कुतरता है.
मित्र चकित हुए – इतना ऊंचा कूदता है?
खुद ही देख लो आज रात को – मेजबान सन्यासी ने कहा.
सो मित्र ने देख लिया मूषक को कूदते और अनुमान लगाया कि उसके बिल में कुछ सुवर्ण अवश्य होगा जो उसे कूदने की शक्ति दे रहा है. बिल खोदा गया और बात सत्य निकली. सुवर्ण निकाल लिया गया तो शाम को मूषक को शक्तिहीन पाया गया और खदेड़ा भी गया.
इस बात पर न जाएँ कि क्या बिल में छिपाया सुवर्ण वाकई कोई मूषक को कूदने की शक्ति देता है. पंचतन्त्र की कथाएँ रूपक होती हैं. यहाँ बात मनुष्य की ही है, और सीधा समझ यह है कि उपद्रव देने के लिए भी धन की शक्ति होती है, बिल खोदकर उस धन को निकाल लेने की आवश्यकता है.
छत्तीसगढ़ में 7 सीआरपीएफ़ जवान विस्फोट में मारे गए. उनके खिलाफ जो माओवादी लड़ रहे हैं उनके शस्त्र आधुनिक हैं. माओवादी जिस समाज से आते हैं उन लोगों के पास पैसे नहीं होते इतने महंगे हथियार या गोला बारूद खरीदने के.
विपन्न अवस्था में जी रहे होते हैं. ऑटोमैटिक रायफल के ट्रिगर दबाते ही चार गोलियां निकल जाएंगी, उनके दामों में वहाँ उनका परिवार चार दिन खा सकता है. अपने पैसों से ये ऐसे शस्त्र हरगिज खरीद नहीं सकते.
मतलब इनको हथियार देने में कोई निवेश कर रहा है. इसके अर्थ स्पष्ट है, अगर देश के भीतर से यह फंडिंग मिल रही है तो वो देशद्रोही है, क्रांति का समर्थक नहीं. अगर देश के बाहर से फंडिंग मिल रही है (हथियार तो बाहर के ही हैं) तो ये भी देशद्रोही ही साबित हुए, क्रांतिकारी नहीं. बिल में छिपाए सुवर्ण के खोद निकालने की आवश्यकता है.
इसी मुहिम के तहत इस मूवमेंट को प्रतिष्ठा दिलानेवालों को एक्सपोज करना जरूरी है. वे हमेशा बड़े बड़े मंचों पर इनका महिमा मंडन करते हैं. बातें हमेशा एक तरफा होती हैं और उन्हें प्रसिद्धि भी मिल जाती है क्योंकि न्यूज़ वाले भी साधे हुए होते हैं.
कितना भी खोजी पत्रकार हो, इन्हें यह सवाल नहीं पूछता जो मैंने यहाँ पूछा है. यह सवाल सूझना कोई बड़े अक्लमंदी की बात नहीं है, लेकिन यह सवाल का आज तक किसी पत्रकारों से न उठाया जाना उनके बेईमानी की बात जरूर है. बेईमानी अपने पेशे से, और देश से भी.
इन प्रतिष्ठा देनेवाले बुद्धिभेदी परजीवियों को देशद्रोह की इस शृंखला की अगली कड़ी समझकर उनसे भी कड़ा व्यवहार होना चाहिए. सख्ती से सवाल पूछे जाये तो भी बस.
इनकी प्रसिद्धि इनका कवच कुंडल है लेकिन पूछताछ को तो बुलाया ही जा सकता है. हाथ उठाने की आवश्यकता नहीं, बस बिना एसी बिना पंखे के कमरे में घंटा भर पूछताछ करें, आवाज सख्त रखें और प्रश्न भी सही रखें. फिर जो उगल देंगे वो सुनकर अपने आप आप का हाथ उठ जाये तो बात समझ में आती है.
कोबाद घांदी, बिनायक सेन जैसों को जेल यूं ही नहीं हुई. और हाँ, उस वक़्त सत्ता कॉंग्रेस की ही थी. किशनजी कोई जाहिल खूंखवार आदमी नहीं था, अव्वल दर्जे का इंटेलेक्चुअल भी था. हाँ, खूंखवार भी था. ये क्रांतिकारी नहीं, देशद्रोही ही हैं.
सब से अहम बात यह है कि इनहोने क्रांति के नाम से एक नैसर्गिक संसाधनों से समृद्ध बड़े भूप्रदेश का योग्य विकास होने ही नहीं दिया है. हमेशा दहशत फैलाकर ही जीते रहे हैं.
कभी सरकार न खुद चलायी है न लोकनियुक्त सरकार को विकास करने का मौका दिया है बल्कि जो भी सुविधाएं वहाँ स्थापित करने की कोशिशें हुई हैं उनको उखाड़कर लोगों को उनसे लाभान्वित होने से रोकते ही आए है और ऊपर से यही प्रचारित करते हैं कि वहाँ के लोग सुविधाओं से वंचित हैं.
सरकार की संप्रभुता को जमीन पर चैलेंज कर के और मीडियाई मिलीभगत द्वारा बदनाम करके इनहोने पूरा भूप्रदेश अपने सत्ता में रखा है जहां प्राकृतिक संसाधनों का ये दोहन कर रहे हैं. जिन संसाधनों से जनता की गरीबी दूर होती उस जनता को गरीब और वंचित इन्हीं के कारण रहना पड़ रहा है.
जरूरी है कि इनके इस लश्कर-ए-मीडिया को तथा इन प्रतिष्ठित वामियों को निष्प्रभ किया जाये. इनके मुखौटों को जाहीर चर्चा में फाड़ा जाय. जब ये बेनकाब होंगे तो अपने आप सहानुभूति और उसका बुर्का पहनकर आता हुआ सुवर्ण का स्रोत भी खोदकर निकाला जा सकता है ताकि यह मूषकदल उपद्रव करने के काबिल न हों.
तब अधिक प्रशिक्षित दलों से इन्हें खोज खोज कर खत्म किया जाये. क्योंकि इनके कब्जे में जो प्रदेश है वो सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, जिसमें आवागमन के लिए हुकूमत सरकार की होनी चाहिए, इनकी नहीं.
CRPF को अगर पर्याप्त सशस्त्र हेलिकोप्टर वो भी जंगल प्रदेशों पर रात्री के उड़ान के लिए सुसज्जित कर के दिये जाएँ तो इनके सफाये में गति आ सकती है. हमारे जवानों की जानें सस्ती नहीं.
हाँ, एकाध कोई रात्रि के प्रहरी दस्ते में कन्हैया कुमार का भी समावेश करना चाहिए, फिर माओवादियों को शहीद कहने के पहले सोच में परिवर्तन हो सकता है. हो सकता है, क्योंकि कम्युनिस्ट है, सो पलटी मारने की संभावनाएं अधिक हैं.