कहते हैं बहुत पहले जब Alexander को कहीं से महाभारत के किस्सों का पता चला तो वो काफी अचंभित हुआ. उसे आश्चर्य हुआ कि युद्ध पर इतना अच्छा ग्रन्थ कहीं और कभी मिला क्यों नहीं!
उसके हिसाब से महाभारत युद्ध लड़ने और जीतने की कला सिखाने वाला ग्रन्थ था. आम तौर पर माना जाता है कि भारत में कभी martial culture नहीं रहा.
यहाँ के जो ग्रन्थ हैं उन पर कुछ साधु जो बोलते सुनाई भी देते हैं, उनका इरादा युद्ध सीखने का नहीं होता. वो शांति के प्रचार प्रसार में लगे होते हैं, उनका उद्देश्य आध्यात्मिक होता है. असल में बताया नहीं गया, वरना इनमें युद्धों का काफी कुछ है.
अगर सिर्फ रामायण भी देखेंगे तो इसमें युद्ध से जुड़ा काफ़ी कुछ मिल जाता है. जैसे महाभारत में अध्याय के “पर्व” होते हैं, युद्ध पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व आदि वैसे ही रामायण को भी सजाया गया है. जैसे कुछ चैप्टर मिलकर एक यूनिट बनता है, आजकल की किताबों में, वैसे ही रामायण को “कांड” में बांटा गया है.
अभी की रामायण में सात कांड हैं, लेकिन ज्यादातर विद्वान मानते हैं कि आखिरी काण्ड (उत्तर कांड) बाद में जोड़ा गया है. शुरुआत के भी कुछ हिस्सों पर संशय जताया जाता है, लेकिन वाल्मीकि रामायण को बाल कांड से ही शुरू मानते हैं. फ़िलहाल इस महाकाव्य में 24000 श्लोक होते हैं.
जहाँ तक युद्ध कलाओं के वर्णन का प्रश्न है, वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड में ही आपको हथियारों का जिक्र मिल जायेगा. सबसे पहले तो आपको ये पता चल जायेगा कि “शस्त्र” हाथ में पकड़ कर चलाया जाने वाला हथियार होता है. जैसे तलवार, या फिर फरसा, इन्हें फेंककर नहीं मारा जाता. तीर, शक्ति जैसे हथियार काफ़ी हद तक projectile missile जैसे हथियारों को “अस्त्र” कहते हैं. बाल काण्ड का सत्ताईसवाँ और अट्ठाईसवां अध्याय (सर्ग) ऐसे ही कई हथियारों के जिक्र से भरा पड़ा है.
ये रामायण का वो हिस्सा है जब राम को ऋषि विश्वामित्र अपने साथ ले जाते हैं. ऋषि विश्वामित्र के यज्ञों में मारीच और सुबाहु आदि राक्षस विघ्न डालते रहते थे. तो विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए दशरथ के पास आये और कहा अपने पुत्रों को मेरे यज्ञ की रक्षा के लिए भेजो.
दशरथ घबराये कि इन बच्चों से यज्ञ की रक्षा भला क्या हो पायेगी ? लेकिन वशिष्ठ ने दशरथ को समझाया बुझाया और फिर विश्वामित्र राम लक्ष्मण को लेकर रवाना हुए. रास्ते में एक रात के लिए वो लोग सरयू नदी के किनारे रुके थे. जहाँ वो रुके थे, आज की तारीख में वो इलाका आज़मगढ़ होता है.
यहाँ रुकने पर विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को सिखाया था कि युद्ध कई बार लम्बा खींचता है. कई दिन तक लगातार लड़ने के लिए Power यानि बल भी चाहिए, और साथ में Stamina यानि अतिबल भी चाहिए.
सरयू के किनारे ही विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को बल-अतिबल मन्त्रों की भी दीक्षा दी और ये विद्या सिखाई थी. कई किस्म के चक्र, वज्र और शक्ति जैसे आयुध, खुद पर उनके प्रभाव को रोकने के लिए उपसंहार अस्त्र, और ऐसीका / इशिका जैसे मंत्रसिद्ध अस्त्रों के प्रयोग भी यहीं पर सिखाया गया था. आगे क्या हुआ था इससे आप लोग टीवी देख-देख के वाकिफ़ हो चुके हैं.
बलशाली राक्षसी तड़का मारी गई थी. मारीच और सुबाहु, राम-लक्ष्मण के अस्त्रों के प्रभाव से उड़कर कहीं दूर जा गिरे थे. यहाँ रामायण पढ़ते समय आपको ये भी याद रखना चाहिए कि कविता में अलंकार होता है. रामायण महाकाव्य है तो उसमें भी अतिशयोक्ति अलंकार होगा ही.
तुलना के लिए यज्ञ के आयोजन को आप दिल्ली के किसी सांस्कृतिक समारोह को देख सकते हैं. उस यज्ञ में हड्डियाँ डाली जाती थी, यहाँ विघ्न डालने के लिए जुर्माने ले लीजिये. वहां राजाओं और राजकुमारों से मदद मांगी गई थी, यहाँ राजनेताओं को बुलाया जाना देखिये.
राक्षसों के भय से उस काल में भी राजा लोग हिचके होंगे और एक-दो से मदद मांगने के बाद ही विश्वामित्र, राम तक पहुंचे होंगे, यहाँ भी कुछ ने आने से इनकार कर दिया था. मारीच-सुबाहु के उड़ के दूर दूर जा गिरने की तुलना करनी हो तो किसी छात्राओं के यौन शोषण करने वाले किसी धूर्त पूर्व जस्टिस का उड़ के दूर जा गिरना देखिये.
बाकी यज्ञ में श्री राम के आ जाने तुलना हम किसी से नहीं करते! राम के बारे में तो बस, जय श्री राम.