कौन है मनु ? क्या है स्मृति ?

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बाबासाहब अम्बेडकर ने 27 दिसंबर 1927 को मुंबई में मनुस्मृति जलायी थी. इसके बाद अनेक बार बहुजनों, वामपंथियों, दलित हितचिंतकों, समाजवादियों, प्रगतिवादियों द्वारा मनुस्मृति जलाई जाती रही है. बाबासाहब द्वारा मनुस्मृति जलाये जाने के पीछे एक महान उद्देश्य था – छुआछूत की समाप्ति की घोषणा करना. उन्होंने “मनुस्मृति दहन” मीडिया कवरेज या वोट बटोरने के लिए नहीं किया था. उन्होंने आधे वर्गफुट और 6 इंच गहरी वेदी बनवा के चन्दन की लकड़ियों से उसे भरा और सात दलित साधुओं द्वारा मनुस्मृति दहन कराते हुए “अस्पृश्यता नष्ट हो” मन्त्र का उद्घोष किया. उनकी नक़ल कर आज के  बहुजन, AVBP, या वामपंथी नेता अपने आप को बाबा साहब की बराबरी का समझने लगे हैं.

इन नेताओं से यदि आप सिर्फ दो प्रश्न पूछ लें तो ये बगले झाँकने लगेंगे – स्मृति क्या हैं ? मनु कौन था ?

इस लेख में मैं इन दोनो प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करूंगा.

स्मृति अर्थात “याद रखना”. प्राचीन काल में लेखक अपनी याददाश्त से पुराने नियमों का संकलन कर देते थे, उसे ही स्मृति कहा जाता था. हिन्दू धर्म में ऐसी लगभग 40 स्मृतियाँ हैं, जिनमे से एक मनुस्मृति भी है. स्मृतियों का सिर्फ  ऐतिहासिक महत्व है. मनुस्मृति  के पूर्व  पराशर, अत्रि, हरिस, उशनस, अंगिरस, यम, उमव्रत, कात्यान, व्यास, दक्ष, शरतातय, गार्गेय वगैरह की स्मृतियाँ भी प्राचीन भारत की सामाजिक और धार्मिक अवस्थाओं के बारे में बतलाती हैं.

मनुस्मृति के अतिरिक्त विष्णु, याज्ञवल्क्य नारद, बृहस्पति, पराशर आदि की स्मृतियाँ प्रसिद्ध हैं. मनुस्मृति से, जिसकी रचना संभवतः दूसरी शताब्दी में की गयी है, उस काल की धार्मिक तथा सामाजिक अवस्थाओं का पता चलता है. नारद तथा बृहस्पति स्मृतियों से, जिनकी रचना करीब छठी सदी ई. के आस-पास हुई थी, राजा और प्रजा के बीच होने वाले उचित संबंधों और विधियों के विषय में जाना जा सकता है. इन सभी स्मृतियों में समाज की धर्ममर्यादा, वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया गया है.

मनुस्मृति ही क्यों जलायी जाती है, क्योकि इसमें शूद्रों और स्त्रियों के बारे में असम्मानजनक और अन्यायपूर्ण बाते लिखीं हैं.

क्या मनुस्मृति का कोई महत्त्व है? यह असत्य प्रचार किया जाता है कि आज भी मनुस्मृति से देश की कानून व्यवस्था चलती है. मनुस्मृति जलाने  वालों के अनुसार आज भी पुलिस थानों, कोर्ट कचेहरीयों में मनुस्मृति चलती है. सभी ब्राह्मण दिन रात मनुस्मृति पढ़ते हैं और उसी के अनुसार चलते हैं. आज यदि कोई दलित छात्र परीक्षा में फेल हो जाए या रोहित वेमुला आत्महत्या कर ले तो उसके लिए मनुस्मृति ही जिम्मेवार है. सभी क्षत्रिय, वैश्य, जैन, सिख, कायस्थ  आदि मनुस्मृति ही मानते हैं. इस प्रकार झूठा प्रचार कर मनुस्मृति का हउआ खड़ा किया जाता है.

जबकि वास्तविकता यह है कि मनुस्मृति किसी स्कूल कालेज में नहीं पढाई जाती. यहाँ तक कि संस्कृत विश्वद्यालयों, महाविद्यालयों, गुरुकुलों में भी नहीं. शास्त्री और आचार्य पाठ्यक्रम में भी मनुस्मृति नहीं है. क्योकि श्रुति प्रमाणिक है, स्मृति नहीं. श्रुति अंतर्गत वेद पुराण उपनिषद दर्शन आदि आते हैं. आप्स्तंभ सूत्र के अनुसार श्रुति ईश्वरीय है, स्मृति मानुषीय है.  99 प्रतिशत ब्राह्मण भी मनुस्मृति न कभी देखें हैं और न कभी पढ़ें हैं.

मनुस्मृति जलाने  वालों से यह भी पूछ लो – मनुस्मृति तो जला दी आपने, अच्छा किया. बाकी 40 स्मृतियों को  क्यों  नहीं जलाते, क्या उनमे शूद्रों के लिए अच्छी  बाते है ? इस पर वे चुप लगा जायेंगे क्योकि 40 अन्य स्मृतियाँ  तो छोडिये, इन्होने कभी मनुस्मृति भी नहीं पढ़ी.

अब ये मनु कौन थे ? हिन्दू धर्म के अनुसार 14 मनु हुए हैं –

1.स्वायंभुव मनु,2.स्वारोचिष  मनु,3.औत्तमि मनु,4.तामस मनु,5.रैवत मनु,6.चाक्षुष  मनु,7.वैवस्वत मनु,8.सावर्णि मनु,9.दक्ष सावर्णि मनु,10.ब्रह्म सावर्णि मनु,11.धर्म सावर्णि मनु,12.रुद्रसावर्णि मनु,13.रौच्य दैव सावर्णि मनु, और 14.इन्द्र सावर्णि मनु

एक एक मनु का लाखों वर्षों का समय होता है अर्थात् कुछ लाख वर्ष खंड के स्वामी एक मनु होते हैं फिर दूसरा उसके बाद तीसरे आदि मनु उस समय के अधिपति होते हैं. इसी क्रम में इस समय के मालिक सातवें अर्थात् वैवस्वत मनु हैं. इसलिए यह सातवां मन्वंतर हुआ जिसमें हम लोग रह रहे हैं इसे वैवस्वत मन्वंतर भी कहते हैं. इसीप्रकार यथाक्रम मनु आगे भी होते रहेंगे.

सबसे पहले मनु को स्वयंभू मनु कहा गया है इन्हें ही दूसरा सृष्टा अर्थात सृजन करने वाला माना गया है. इन्हीं से दस प्रजापतियों का जन्म हुआ है उनसे आगे सृष्टि संचालन हुआ है. इस प्रकार उस समय सभी लोग इन्हीं की संतानों के रूप में जाने या माने जाते थे. अब कोई मनुस्मृति जलाने  वालों से यह भी पूछ ले कि इनमें से किस मनु ने मनुस्मृति लिखी? यदि वर्तमान मानव प्रजाति के मूलपुरुष वैवस्वत मनु ने मनुस्मृति की रचना की होती तो वह एकमात्र स्मृति होती, और फिर अन्य ऋषि अपनी अपनी स्मृति लिखे का दुस्साहस न करते. यदि वैवस्वत मनु ने मनुस्मृति की रचना की होती तो वे अपनी संतानों में भेदभाव क्यों करते?

वैदिक साहित्य से लेकर प्राचीन ग्रंथों तक मनु आदिमानव के रूप में जाने जाते हैं. मान्यता है कि जल प्रलय के बाद मनु ही धरती पर शेष बचे थे और उन्हीं से सारी सृष्टी विशेषकर मानव जाति का विकास हुआ. इसलिए हम मनु की संताने यानी मनु से जन्मे कहे जाते हैं. मुस्लिम और ईसाइयों में मनु का नाम आदम है, जिससे आदमी शब्द बना है. अंग्रेजी का MAN शब्द मनु से ही आया है.

वैदिक साहित्य और शतपथ ब्राह्मण में मनु को सूर्य का पुत्र और मानव जाति का पथ प्रदर्शक बताया गया है. भगवत गीता में भी मनुओं का उल्लेख है. जहां यह व्यक्ति के स्थान पर उपाधि के रूप में उपयोग किया गया है. मनु शब्द का मूल मन धातु से पैदा हुआ है. आधुनिक साहित्य में मनु और उनकी पत्नी शतरूपा के बारे में मनोवैज्ञानिक विवेचना के साथ प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद का महाकाव्य कामायनी विशेष चर्चित रहा है. लेकिन इन आदिमानव मनु ने कोई पुस्तक लिखी हो ऐसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता.

उपलब्ध मनुस्मृति में शूद्र विरोधी और शूद्र समर्थक दोनों तरह के श्लोक कैसे हैं? स्त्री  विरोधी और स्त्री समर्थक दोनों तरह के श्लोक कैसे हैं? डा. सुरेन्द्र कुमार ने मनुस्मृति का विस्तृत और गहन अध्ययन किया है. जिसमें प्रत्येक श्लोक का भिन्न- भिन्न रीतियों से परीक्षण और पृथक्करण किया है ताकि प्रक्षिप्त श्लोकों को अलग से जांचा जा सके, उन्होंने मनुस्मृति के 2685 में से 1471 श्लोक प्रक्षिप्त (मिलावटी) पाए हैं, स्वयं बाबासाहब भी मनुस्मृति को प्रक्षिप्त मानते थे. बहुत से पाश्चात्य विद्वान जैसे मैकडोनल, कीथ, बुलहर इत्यादि भी मनुस्मृति में मिलावट मानते हैं.

सभी इतिहासकार यह मानते है कि मनुस्मृति की रचना दूसरी शताब्दी में हुई, तब तो आदि पुरुष वैवस्वत मनु ने इसे लिखा नहीं. दूसरी शताब्दी में शुंग कालीन राज में मनु नाम का कोई व्यक्ति हुआ जिसने इसे लिखा या फिर किसी ब्राह्मण ने मनु के नाम से इसकी रचना कर दी. बाबासाहब अम्बेडकर के अनुसार – “मनुस्मृति 185 ई.पू. के बाद अस्तितव में आई और ये भी कि तब तक अस्पृश्यता नहीं थी,“ (अम्बेडकर -अछूत कौन थे? अध्याय १६)

क्या मनुस्मृति के आधार पर कभी देश में कानून –व्यवस्था चली?

अंग्रेजो के ज़माने में ब्रिटिश कानून चलता था, मुगलों और अन्य सुल्तानों के समय शरिया अर्थात मुस्लिम कानून चलता था. अर्थात पिछले 1000 सालों से मनुस्मृति वाले कानून तो देश में चले नहीं. फ़ाहियान और ह्वेनसांग ने भी मनुस्मृति का जिक्र नहीं किया और न ही अस्पृश्यता के बारे में लिखा. अम्बेडकर भी मानते हैं की सातवी शताब्दी तक अस्पृश्यता नहीं थी. (अम्बेडकर -अछूत कौन थे? अध्याय १६)

क्या हिन्दू राजाओं के समय मनुस्मृति वाले कानून चलते थे?

हिन्दू राजाओं के समय 40 स्मृतियाँ थी, वे किसी भी स्मृति को मानने या न मानने के लिए स्वतंत्र थे. चूंकि स्मृति एक टेम्पररी समयाचारी ग्रन्थ होता है अतः उसकी मान्यता लम्बे समय तक नहीं चल सकती. कई राजाओं का न्याय दूर दूर तक प्रसिद्ध था – जैसे विक्रमादित्य, भोज आदि. वे अपनी बुद्धिमत्ता से न्याय करते थे न कि मनुस्मृति से. यदि राजा मनुस्मृति से न्याय करते तो उनकी प्रसिद्धि न हो पाती.

महाभारत में एक प्रसंग आता हैं – एक बार राजा युद्धिष्ठिर के पास एक किसान का मामला आया, उसके खेत में चोरी करते हुए चार लोग पकड़े गये थे, उनमें से एक ब्राह्मण था, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा व्यापारी और चौथा शूद्र, किसान ने युद्धिष्ठिर से उन्हें समुचित दंड देने को कहा, युद्धिष्ठिर ने शूद्र को एक महीने, व्यापारी को एक साल, क्षत्रिय को पांच साल और ब्राह्मण को दस साल सश्रम कारावास का दंड दिया.

जब लोगों ने एक ही अपराध के लिए चारों को अलग-अलग दंड का रहस्य पूछा, तो युद्धिष्ठिर बहुत न्यायपूर्ण उत्तर दिया, उन्होंने कहा कि शूद्र स्वयं निर्धन है, हो सकता है उसके घर में खाने को अन्न न हो, ऐसे में यदि उसने चोरी कर ली, तो इसे बहुत गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता, इसलिए उसे एक महीने का कारावास पर्याप्त है, व्यापारी का अपराध कुछ अधिक है, उसे किसान की फसल को उचित मूल्य पर खरीदने और बेचनेका अधिकार तो है; पर चोरी का नहीं, इसलिए उसे एक साल का दंड दिया गया है, क्षत्रिय राज्य की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था का आधार है, यदि वह खुद ही चोरी करेगा, तो फिर चोरों को पकड़ेगा कौन; यदि जनता का देश की सुरक्षा व्यवस्था से विश्वास उठ गया, तो इस अराजकता से निबटना राज्य के लिए भी संभव नहीं है, इसलिए उसे पांच साल की सजा दी गयी है, जहां तक ब्राह्मण की बात है, उसका कृत्य केवल अपराध ही नहीं, पाप भी है, उसका काम देश की नयी पीढ़ी को सुसंस्कारित करना है, यदि उसका आचरण गलत होगा, तो फिर वह नयी पीढ़ी को क्या सिखाएगा ? इसलिए उसका अपराध सबसे बड़ा है और उसे दस साल की सजा दी गयी है,

ऐसे ही कई उदाहरण पृथ्वीराज रासो, राजतरंगिणी, दीर्घ निकाय, विनयपिटक, जैन ग्रन्थ (भगवती सूत्र), दिव्यादान आदि में हैं, जिनमें ब्राह्मणों द्वारा अपराध करने पर मृत्युदंड तथा शूद्रों के प्रति क्षमा और मानवीय व्यव्हार का उल्लेख है.  इससे पता चलता है कि महाभारत काल से राजपूत युग तक कभी भी मनुस्मृति के अनुसार राज व्यवस्था नहीं चली.

फिर भी तथाकथित बुद्धिमानो !!! मनुस्मृति जलाना आपका हक है, जलाईये, मगर कागज को जलाने से दलितों की स्थिति में परिवर्तन नहीं होगा. दलितों की स्थिति सुधरेगी –  उन्हें  कौशल देने से, उनको रोजगार देने से, उनकी अर्थ व्यवस्था मजबूत करने से. क्या मनुस्मृति जलाने वाले लोग दलितों के लिए ऐसा कभी करते हैं?

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