The Book Of Eli : मनुस्मृति के बहाने

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कुछ साल पहले यह फिल्म देखी थी… The Book Of Eli … उस फिल्म का जो फिल्मांकन था सो तो था ही, फिल्म के अंत से मैं इतनी अधिक प्रभावित हुई थी लगा था दुनिया में कुछ मुट्ठी भर लोगों को ऐसे छिड़क दिया गया है, जहां से वो दुनिया को बचाए रखने की अपने अपने स्तर पर हर संभव कोशिश कर रहे हैं… चाहे वो भारत में हो या भारत के बाहर किसी अन्य देश में…

अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले मैं ऑग मैंडीनो की पुस्तक “दुनिया का सबसे महान चमत्कार” का ज़िक्र करना चाहूंगी, जिसमें लिखा है- “कई संगीत रचनाएं, कई पुस्तकें और कई नाटक ऐसे होते हैं जिनकी किसी संगीतकार, कलाकार, लेखक या नाटककार ने नहीं बल्कि ईश्वर ने रचना की है… इसकी रचना करने वाले लोग तो निमित्त मात्र होते हैं, जो ईश्वर के आदेशानुसार रचना कर रहे थे, ताकि वह अपनी बात हम तक पहुंचा सके”.

तो ऐसे ही मनुस्मृति के जलाए जाने की खबर सुनकर अक्सर मुझे हंसी आ जाती है, और याद आती है फिल्म दी बुक ऑफ़ एली… जैसे आज ही की परिस्थितियों के लिए नियति ने मुझे यह फिल्म दिखाई थी… उसकी कहानी मुझे पूरी तरह से याद नहीं थी बस उसकी थीम भर याद थी.. तो इन्टरनेट पर सर्च किया तो जैसे मेरे लिए ही ये कहानी देवेन पांडे ने पहले से लिख कर रख दी थी… देवेन ने बहुत सुन्दर तरीके से इस कहानी को प्रस्तुत किया है कदाचित मैं भी इतने अच्छे से नहीं समझा सकती थी…

मनुस्मृति को ध्यान में रखकर इस कहानी को पढ़ जाइये.. मनुस्मृति को जलानेवालों की मानसिकता और उसका समाज में प्रभाव शब्दश: आपके सामने होगा…

The Book Of Eli ( 2010 ) की कहानी

फिल्म का कांसेप्ट काफी अनूठा है! फिल्म की कहानी परमाणु हमलों से तबाह हो चुकी ऐसी धरती की है, जो आज हर चीज को मोहताज है, उस युद्ध को बीस साल बीत चुके हैं. एक पूरी पीढ़ी और युग उस समय के साथ नष्ट हो गयी, अब बची हैं सिर्फ नयी पीढ़ी जिसने युद्ध के पहले की दुनिया नहीं देखी. वह हर उस चीज से अंनजान है जो उनके जन्म के पहले की है. दुनिया के संसाधन खत्म हो चुके हैं, विकिरणों से सूरज की तीव्र गर्मी सीधे धरती पर पहुँच रही है जिसके कारण बरसात भी नहीं होती. लोग मामूली सी चीज़ों के लिए भी किसी की ह्त्या कर देते हैं.

इंसानी जान सस्ती है रोटी के चंद टुकडो से, ऐसे में एक बूढ़ा जिसका नाम एली है, एक बंजारे जैसी जिन्दगी जी रहा है. बहुत कम लोग बचे हैं जो उसकी उम्र के हैं और जिन्होंने धरती को पहले जैसा देखा है. उसके पास एक किताब है, जिसकी वह हिफाज़त कर रहा है. वह थोड़ा सनकी लेकिन गजब का लड़ाका है.

तो वहीं दूसरी ओर एक छोटा सा क़स्बा है, जहाँ एक महत्वकांक्षी व्यक्ति अपनी सत्ता चलाना चाहता है. वह भी एली की उम्र का है और वह एक किताब की तलाश में है जिसके शब्दों का सहारा लेकर वह नयी दुनिया पर अपनी हुकुमत चाहता है.

वह लोगों को उस पुस्तक के शब्दों से काबू करना चाहता है, और वही पुस्तक एली के पास है. और वह है ‘बाईबल’ जो पृथ्वी पर बची एकमात्र बाईबल है. उस युद्ध के समय दुनिया की सारी “धार्मिक पुस्तकों” को नष्ट कर दिया गया है, इसलिए युद्ध के पश्चात बचे लोगों के पास कोई मार्गदर्शन नहीं है.

संयोग से एली भी उसी कस्बे कसबे में आता है, जहाँ के शासक को एली के पास पुस्तक होने का संदेह होता है. वह उस पुस्तक को हथियाने के लिए एक लड़की सुमायरा का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है, लेकिन एली उनके कब्जे से निकल जाता है और सुमायरा भी एली के साथ निकल जाती है.

अब शासक उस पुस्तक को पाने की चाहत में एली के पीछे है और एली उस पुस्तक को बचाकर दूर कहीं ‘वेस्ट ‘ में ले जाना चाहता है जहां से उसका प्रसार कर सके.

फिर क्या होता है यही आगे की कहानी है! बड़ी ही दिलचस्प कहानी बुनी गयी है. इस कहानी की विशेषता यह है के आप इसे किसी “एक धर्म” से जोड़ कर देखने के बजाय “हर धर्म” से जोड़ कर देख सकते हैं.

“बाईबल” की जगह पर “अन्य ग्रन्थ” भी रख सकते हैं, मर्म वही रहेगा. भटके एवं मार्गदर्शन रहित समाज को प्रेरणा एवं सही राह दिखाने का एकमात्र जरिया यह पुस्तके ही हैं. एक पूरी पीढ़ी जो इन ग्रंथो के महत्व से अनजान है किस कदर बंजारों की भांति भटक रही है, इंसानियत कैसे लुप्त हो चुकी है. इन सबका विस्तृत वर्णन किया गया है.

नहीं नहीं यह कोई आर्ट फिल्म या धीमी बोरिंग फिल्म नहीं है. यह एक्शन और थ्रिल से भरपूर फिल्म है जो कुछ सोचने पर मजबूर करती है. फिल्म की कहानी और “इन” पुस्तकों की महत्ता बहुत सामयिक है. फिल्म की शुरुआत और फिल्म का अंत दोनों एकदम विपरीत है. शुरुआत जहां हिंसा से होगी, मानवता के विद्रूप स्वरूप से होगी तो वही अंत एक शांति का अहसास देता है, जो एक खूंखार व्यक्ति को संत बना देता है.

जिसने ईश्वर का रास्ता अपनाया उसने सबकुछ खोकर भी संतोष पाया मोक्ष पाया, और जिसने ईश्वर की राह छोड़ी उसने सबकुछ पाकर भी सब खो दिया, देखने लायक फिल्म है, अवश्य देखें.
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आपने कहानी तो पढ़ ही ली है लेकिन इसके अंत को देवेन ने रहस्यमय मोड़ देकर छोड़ दिया है.. उसे मैं पूरा करती हूँ… अंत में किताब उस क्रूर शासक के हाथ में आ जाती है… वो बहुत खुश होता है… इस बीच एली एक चर्च के फादर तक पहुँच जाता है. लेकिन जब शासक उस पुस्तक को खोलकर देखता है तो वो सर पीट लेता है क्योंकि जिस किताब के पीछे इतना खून खराबा किया था वो एक दम कोरी है… उस पर एक भी अक्षर लिखा हुआ नहीं है….

और एली इन सारे संघर्षों से निपटकर फादर के पास ट्रांस (जिसे हम निर्वाण, ज्ञान या सम्बोधि कहते हैं) की स्थिति में आता है और किताब उस पर अवतरित होती है…. वो उसी स्थिति में आँख बंद करके बोलता जाता है और फादर उसे लिखते जाते हैं…

तो मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को जलाने वाले मूर्खों, तुम जिसे जला रहे हो वो मामूली कागज़ के टुकड़े हैं.. तुम उसे कितना भी जला दो… फाड़ दो नष्ट कर दो… ग्रन्थ लिखे नहीं जाते ग्रन्थ अवतरित होते हैं… और ब्रह्माण्ड में सुरक्षित हो जाते हैं… फिर चाहे वो बाइबिल हो, गुरुग्रंथ साहेब हो, कुरआन हो या गीता, महाभारत, रामायण या मनुस्मृति…

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