‘आप क्या चाहते हैं? यहाँ किस प्रकार का राज्य हो, आप स्वयं ही बताएं?’
“हम तो यह चाहते हैं कि भारतवर्ष में सहस्रों वर्ष तक सुख और शांति विराजमान रहे, परन्तु यह सुख और शांति, शुभ विचारों और श्रेष्ठ संस्कृति के आधार पर ही स्थापित हो सकती है.
भारतवर्ष में ऐसे विचार और ऐसी संस्कृति रही है और वही पुन: लाई जा सकती है. ईसाई, यहूदी और मुसलमान इस संस्कृति के विरोधी हैं. उनको भारतवर्ष के राज्य-कार्य में सम्मिलित करने से यहाँ सुख और शांति स्थापित नहीं होगी.
हम चाहते हैं कि राज्य-कार्य में जनसाधारण की सम्मति न ली जाए. राज्य-कार्य से हमारा प्रयोजन राज-नियम बनाने से है. राज-नियम लोगों के मत से नहीं, प्रत्युत लोगों की भलाई के लिए बनने चाहिए.
राज-नियम बनाने वाले लोगों की नियुक्ति जन-साधारण की इच्छा पर नहीं होनी चाहिए. इनकी नियुक्ति कुछ-एक विद्वान् लोगों के हाथ में होनी चाहिए. राजा अथवा प्रबंधकर्ता, चाहे तो वह जन्म से इस पद पर हो और चाहे योग्यता से, उन विद्वान् लोगों द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा बनाए नियमों का पालन करे. राज-नियम बनाने वाले अर्थात स्मृतिकार, विद्वान्, स्वस्थ, सद्चरित्र और प्रलोभनों से परे होना चाहिए.
जन साधारण केवल एक बात कर सकता है. वह यह कि सुन्दर, सबल, सुडौल और सुयोग्य व्यक्ति निर्माण करे. योग्यता का जितना ऊंचा माप-दंड जन-साधारण का होगा, उसके अनुपात में ही राजा, महाराजा तथा स्मृतिकार योग्य होंगे. मूर्ख समाज में नेता भी मूर्ख होंगे.
मुसलमानी मत का इतिहास इतना गंदा और अन्याय तथा अत्याचारपूर्ण रहा है कि उस समाज में रहते हुए कोई श्रेष्ठ नेता बन सकेगा, संभव प्रतीत नहीं होता.”
‘आपको मुसलमानों से इतनी चिढ़ क्यों है?’
“उस समय का दृश्य मेरी आँखों के सामने अब भी नाच रहा है जब महमूद गज़नवी के सिपाही भारतवर्ष की निरीह स्त्रियों और लड़कियों के गलों में रस्सी बाँध कर मीलों लम्बी पंक्तियों में लाखों की संख्या में साथ ले गए थे. फिर दिन-रात जो व्यभिचार उनसे किया गया था, अभी भी स्मरण हो आता है तो क्रोध से रक्त उबलने लगता है.
भारतवर्ष में स्त्रियों की मान-मर्यादा इतनी अधिक थी कि वे जंगलों में भी निधड़क घूम सकती थीं. परन्तु मुसलमानी राज्य में उन पर इतना अत्याचार किया गया कि यहाँ स्त्रियों का नगरों में भी अकेला न घूमना नियम बन गया. स्त्री-पुरुष इस देश में निर्भय घूमते थे.
मुसलमानी राज्य में उनको इतना दबाया गया कि वे भीरु बन गए. दुष्ट राज्य से जनता का पतन हुआ और दुष्ट राज्य दूषित संस्कृति का ही परिणाम था. उस संस्कृति में पलने वाले लोगों को पुन: राज्य देना अनिष्टकारी होगा.”
‘मगर अंग्रेजों के डेढ़ सौ वर्ष से अधिक के राज्य ने मुसलमानों में परिवर्तन कर दिया है. संसार में हो रही बातों के ज्ञान से उनकी विचारधारा में अंतर आ गया है. इस युग में हमें ऎसी कोई संभावना प्रतीत नहीं होती जिससे मुसलमानी काल की बातों की पुनरावृत्ति का भय हो.’
“मैं भविष्यवाणी तो नहीं करता, परन्तु पिछले अनुभवों के आधार पर इतना कहने का साहस करता हूँ कि अभी भारतवर्ष में मूर्खता भी विद्यमान है और पशुपन भी. इन दोनों के रहते हुए मुझे भारत का भविष्य अंधकारमय ही प्रतीत होता है.
इस देश के नेता महात्मा गांधी, एक साधारण सी बात भी तो समझ नहीं सकते. मुसलमानों के नेता मिस्टर जिन्नाह तो कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान भिन्न-भिन्न जातियां हैं और महात्मा गाँधी कहते हैं, मुसलमान और हिन्दू एक जाति हैं, अर्थात वे मुसलमानों को उनकी इच्छा के बिना हिन्दुओं के साथ रखना चाहते हैं. इसमें लाभ ही क्या है?
यदि वे अपनी इच्छा से साथ रहना चाहते, तो हम देखते कि वे इस योग्य हैं भी या नहीं. अब उनकी योग्यता देखनी तो दूर रही, उन अयोग्यों को ही अपने साथ रखना चाहते हैं. इसमें महात्मा जी को सफलता नहीं होगी और देश और जाति को इतनी भयंकर हानि होगी कि लोग सदियों तक भी नहीं भूल पाएंगे.”
‘मान लीजिए कि हिन्दू राज्य स्थापित कर लिया जाए तो मुसलमानों का क्या होगा?’
“मुसलमान यहाँ रहेंगे, परन्तु उनको न तो कोई दायित्वपूर्ण पद दिया जाएगा, न ही राज्य-कार्य में भाग. वे स्वतंत्र रूप से अपने निर्वाह का प्रबंध कर सकेंगे. राज्य की ओर से जो-जो सुविधाएं जन-साधारण को होंगी सो उनको भी होंगी. इसके अतिरिक्त कुछ नहीं.”
‘तो वे यहाँ रहेंगे ही क्यों? उनके लिए केवल दो मार्ग खुले रह जाएंगे. एक तो यह कि वे देश छोड़ जाएं और दूसरा यह कि वे यहाँ उपद्रव खड़ा कर दें और जब तक उनमें से एक भी जीता रहे, हमारे साथ लड़ता रहे.’
“देश छोड़कर वे नहीं जाएंगे. सन 1921 में हिजरत कर वे कटु अनुभव प्राप्त कर चुके हैं. यहाँ उपद्रव तो वे अवश्य करेंगे. यदि उनको दायित्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर दिया तो उनके उपद्रव सफल होंगे और हिन्दुओं को पुन: दासता के पद तक ले जाएंगे.
और यदि हमने उन्हें किसी आवश्यक पद पर न रखा तो उनके उपद्रव सफल नहीं हो सकते. साथ ही मेरा पक्का विश्वास है कि आधी शताब्दी के हिन्दू राज्य से भारतवर्ष में से मुसलमानी संस्कृति समूल नष्ट हो जाएगी. इन लोगों की संतान तो होगी, परन्तु इस्लाम नहीं रहेगा.”
(लेखक स्व. Guru Datt के उपन्यास ‘स्वराज्य-दान’ का अंश)