मां दुर्गा पर लिखे गए मेरे लेख पर लगातार फोन, व्हाट्सएप और फेसबुक पर आ रहीं टिप्पणियां. कई लोग बहस तक करने को तैयार हैं. बताइए इस देश में मां दुर्गा के अपमान पर बहस की जाएगी अब.
नाम नहीं लिखूंगा क्यूंकि ये ऐसे लोगों को तवज्जो देना होगा लेकिन कुछ तो ऐसे भी रहे जिन्होंने महिषासुर पर रिसर्च करके मेरे फोन में कचरा भेज दिया.
मेरा एक ही जवाब था… मां की गाली सुनकर सहिष्णुता का पाठ नहीं पढ़ सकता. दूसरा मुझे शर्म इस बात पर आ रही है कि मेरे इर्द-गिर्द ऐसी गंदी मानसिकता के लोग भी पल रहे हैं.
एक और वरिष्ठ पत्रकार हैं जो जेएनयू के ही हैं. बहुत लोग मेरे सरनेम को मेरी हालिया पोस्ट से जोड़ रहे हैं. तो बता दूं जिनके बारे में बता रहा हूं वो भी यही सरनेम धारण करते हैं. उन्होंने फोन कर कहा कि आप तो पढ़े लिखे पत्रकार हैं कहां नेताओं की चालबाजियों में आ गए.
मैं जानता हूं कि बहुत से लोगों के दिमाग में इस तरह की बातें आ रही हैं… कि स्मृति ईरानी यही चाहती थीं कि मां का अपमान बहस का मुद्दा बने.
वो क्या चाहती हैं इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है उनकी इस बात को राजनैतिक रंग देने वाले क्या चाहते हैं… जो बुद्धिजीवी फोन कर रहे हैं उनका कहना है छात्रों के बीच इस तरह की बातें चलती रहती हैं…
जेएनयू कैंपस में तो ये सब होता रहा है…. इस कथित बुद्धिजीवी उत्पादक कैंपस में यदि इन मुद्दों पर चर्चा चल रही है और महिषासुर के फैन्स या खुद को उसका वंशज कहने वाले मुंह उठा रहे हैं तो क्या उस पर बात नहीं करने से उनकी ये बीमारी रुक जाएगी?
जी हां… विचारधारा के ढोंग में ये मनोरोग से ग्रसित भटके युवा हैं… जिन्हें हवा देते हैं इनकी ही तरह भटके हुए सीनियर…. ये लोग कहते हैं कि हमारे देश में मुद्दों पर विचार किया जाता है…. हमारी संस्कृति इतनी कमजोर नहीं जो दो चार नारों या इस तरह की बातों से कमजोर हो जाएगी.
मुझसे कहा आप पढ़े-लिखे पत्रकार हैं कहां इन बातों में उलझ गए… वाह जनाब.. बुद्धिजीवियों के कैंपस के कचरे पर कुछ लिखने वाला आपको पढ़े-लिखों का काम नहीं लगता…
और जो यहां इस तरह के मुद्दों को हवा देते हैं, वो क्या हैं? ईश्वर में विश्वास रखने वाला पढ़ा-लिखा नहीं होता?
वाह मेरे देश के बुद्धिजीवियो. यही है तुम्हारी समस्या.. तुम विदेशी किताबों, फलसफों और चेहरों के चक्कर में अपनी जमीन, अपनी संस्कृति और अपनी समृद्ध परंपरा को भूल चुके हो… तुम से अब हो भी नहीं पाएगा… क्यूंकि इतना कचरा तुम साफ नहीं कर पाओगे दूसरा उसकी जरूरत या इच्छाशक्ति ही तुममें जाग नहीं पाएगी.
हां, जहां संभावना है वहां कुछ हो सकता है… और यही वजह है कि देश के युवा और छात्र ज्यादा जरूरी हैं… यही वजह है कि शिक्षा संस्थान और कैंपस जरूरी हैं… लेकिन वहां छात्रों ने अपनी-अलग क्लासेस लगानी शुरू कर दी हैं…
आज सरकार के दखल की दुहाई देने वाले क्या वहां राजनीति के घिनौने दलदल को पहले नहीं देख रहे थे…
आज वहां देश के खिलाफ बोलना, आस्था के खिलाफ बोलना, प्रगतिवादी होने की पहचान बन रहा है… देश को बचाना है तो जड़ों को बचाना होगा… जड़ों को बचाना है तो वहां से कचरे निकालना होगा…
और हां, यदि ऐसे होते हैं बुद्धिजीवी तो माफ करना मैं नहीं हूं बुद्धिजीवी… और अपनी आस्था और स्वाभिमान पर चोट को सहना होती है सहिष्णुता, तो मैं नहीं हूं सहिष्णु….
आप खुद को बेनकाब करते रहो इसी बहाने मुझे भी पता चल रहा है कि मेरे इर्द-गिर्द कौन पल रहे हैं…. इस बहाने, जो अभी भटके नहीं हैं उन्हें भी अहसास होगा कि आस्था पर चोट करने वाले अवसादग्रस्त लोगों की हकीकत क्या है.