सोशल पर वायरल : इससे बढ़िया तो कौरवों का राज था, सब कितने खुश थे!

बैकग्राउंड : कृष्ण, कर्ण-अर्जुन के घनघोर युद्ध को उस ओर घसीट ले गए जहां दलदल था. कर्ण के रथ का पहिया उसमें फंस गया है और कर्ण धनुष-बाण त्याग कर युद्ध के नियमों का आह्वान करते हुए अर्जुन से कह रहा है –

“‘मैं शस्त्र -त्याग करता हूं. धर्मानुसार कुछ क्षणों के लिए युद्ध बंद करो. मैं रथ का पहिया निकाल लूं.”

जब वह रथ का पहिया निकाल रहा था तब अर्जुन ने जैसे ही अपने बाण धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ाये… एक आदर्श लिबरल पत्रकार वहाँ प्रकट हुए… अब आगे…

आदर्श लिबरल : ठहरो अर्जुन… तुम ये गलत कर रहे हो… तुम निहत्थे आदमी पर हमला नहीं कर सकते… ये ह्यूमन राइट्स के खिलाफ है… हम इसके विरोध में कैंडल मार्च निकालेंगे और UN तक इस मामले को लेके जाएंगे?

अर्जुन : ये गलत कैसे हुआ… कहां था तुम्हारा धर्म का विचार जब इनके साथ दुर्योधन, दु:शासन और शकुनि, द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए दरबार में लाए?

आदर्श लिबरल : वो सब पुरानी घटनाएं हैं… उस सब का इस से क्या लेना देना… कैमरामैन जरा फोकस करो और जनता को दिखाओ कि कैसे अर्जुन, कर्ण जैसे निरीह प्राणी पर अत्याचार कर रहा है.

अर्जुन : तब तुम्हारा कैमरा कहाँ था जब कौरवों ने युधिष्ठिर को फुसला कर जुए में छल-कपट किया?

आदर्श लिबरल : आप लोगों की यही दिक्कत है… इतिहास पकड़ के बैठे रहते हो… चलो धनुष छोडो और दो कबूतर उड़ा के अमन की आशा का ट्राई करो… मैं अपने FTII वाले स्लीपर सेल और साहित्य अकैडमी वाले स्लीपर सेल से कह के इवेंट ऑर्गनाइज़ कराता हूँ.

अर्जुन : तुम्हारे स्लीपर सेल तब कहाँ थे जब बारह वर्ष वनवास और तेरहवें वर्ष अज्ञातवास में रहने के बाद हमारा राज्य हमें देने से इनकार कर दिया गया?

आदर्श लिबरल : आपकी बातों से सामंती विचारधारा की बू आ रही है… ये विचारधारा समाज के लिए बहुत खतरनाक है… आप सिर्फ मरने-मारने की बातें कर रहे हैं… मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है… इसलिए मैं बड़ा हुआ आप छोटे हुए… आप कट्टर हैं… मैं लिबरल हूँ… आपको IPC की धाराओं में गिरफ्तार कराने के लिए मैं खुद अपने तीसरे स्लीपर सेल के साथ आमरण अनशन करूंगा.

अर्जुन : तुम्हारी धर्मबुद्धि तब कहां थी जब लाक्षागृह में सब भाइयों को जलाने का यत्न किया गया? अकेले और निहत्थे अभिमन्यु को जब तुम सबने मिलकर मार डाला तब कहां गया था तुम्हारा क्षात्रधर्म और न्याय-व्यवहार?

टीवी की तरफ मुखातिब होके आदर्श लिबरल : तो देखा आपने कैसे कट्टरता इस समाज को बर्बाद कर रही है… कैसे निरीह निहत्थे कौरवों को मारा जा रहा है… अमन का पैगाम सुनने को पांडव राजी तक नहीं हैं… इस से बढ़िया कौरवों का राज था. सब कितने खुश थे… अमन की आशा वाले भी, FTII वाले भी… अकेडमी वाले भी. ये पांडव लोग रैशनल तरीके से सोच ही नहीं पा रहे हैं… ये फासिस्ट हैं… और FTII, अकेडमी, और अमन की आशा वालों के खिलाफ भी.

जनता अपनी राय 420420 पर sms करके भेज सकती है कि पांडवों को महाभारत में फांसी मिलनी चाहिए या उन्हें पत्थर मार के मारा जाना चाहिए.

उधर कृष्ण अर्जुन को परेशान खड़ा देख समझाते हुए : बस यही कलियुग की शुरुआत है… पार्थ.

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