आजकल टीवी और अखबारों में एक किस्सा बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है. अपने एक बंगाली बाबू हैं अनुरूप बाबू और सागरिका जी…रहते वहाँ दूर नॉर्वे में हैं पर बच्चे पाल रहे हैं एकदम खांटी हिन्दुस्तानी स्टाइल से… यानी कि अपने हाथ से बच्चों को खाना खिलाते हैं… अपने साथ ही सुलाते हैं…
अब भैया वहाँ की सरकार को ये बड़ा नागवार गुज़रा है, सो वो बच्चे छीन के ले गयी है… कहती है कि तुम दोनों नालायक लापरवाह हिन्दुस्तानी, बच्चों का सत्यानाश कर दोगे… इन्हें हम कायदे से पालेंगे… अब यहाँ-वहाँ, सब जगह हाय तौबा-मची है… सुना है कि अब भारत सरकार का विदेश मंत्रालय सीधी बात कर रहा है वहाँ की सरकार से.
इत्तेफाक की बात है कि अभी परसों ही मैंने एक फिल्म भी देखी… Evelyn… लगभग इसी विषय पर… James Bond सीरीज़ फिल्मों के मशहूर एक्टर Pierce Brosnon की फिल्म है, जिसमे वो लगभग ऐसी ही परिस्थितियों में Irish government से लड़ता है.
अब इस किस्से पर मैंने अपनी बीवी से कहा कि देखो अगर मैं और तुम… हम लोग अगर वहाँ नॉर्वे में होते तो हम दोनों को तो कम से कम 150 साल की जेल हो जाती और बच्चे पलते सरकारी आश्रम में…
वो यूँ कि हमारे तीन बच्चे और एक मेरे भाई की बेटी… कुल हो गए चार… शुरू के 10 -15 साल तो वहाँ गाँव में रहे… वहाँ हर रात बच्चों का ये झगडा होता कि दादी के साथ कौन सोयेगा…
चारों उन्हीं के साथ सोना चाहते थे… उसी bed पर सब घुस के सो जाते… फिर एकाध को उठा के इधर-उधर किसी दूसरे bed पर सुला दिया जाता… पर सुबह जब सो के उठते तो पाते कि सब उसी bed में घुस के सो रहे है… जिसकी भी नींद रात को खुलती वो दादी को ढूंढता हुआ उन्हीं के साथ घुस जाता…
फिर हम सब यहाँ जालंधर आ गए और दादी वहाँ गाँव में ही रह गयी… एक मकान किराए पर लिया… उसमें कुल तीन कमरे थे… दो कमरों में दो डबल bed लगा दिए और तीसरे कमरे में एक सिंगल… पर यहाँ हर रात को झगडा होता माँ के साथ सोने के लिए…
पर बच्चे अब बड़े हो चुके थे… बड़ा लड़का तो 100 किलो का पहलवान हो गया था… भला एक bed पर कितने आते! सो जिसे bed पे जगह नहीं मिलती, वो वहीं नीचे दरी बिछा लेता, पर सोते सब उसी कमरे में… एक साथ… माँ बाप के साथ ही…
मैं धर्मपत्नी से मज़ाक में कहा करता था कि कभी सर्दी के मौसम में सूअरों को एक साथ सड़क के किनारे सोते देखा है… पूरा परिवार… सब एक साथ, एक के ऊपर एक घुस-मुस के सोते हैं… सो हमारी भी सूअर family ही है…
आजकल बच्चे सब बड़े हो गए हैं… पर सूअर फैमिली की तरह एक साथ सबका सोना बदस्तूर जारी है… ये तो एक साधारण सा उदाहरण है… इसके अलावा भी पूरे परिवार के एक साथ पड़े रहने के और भी बहुत से कारण होते ही हैं भारतीय परिवारों में…
हाल तक सब लोग एक साथ बैठ कर टीवी देखा करते थे… अभी चंद साल पहले तक पूरे मोहल्ले के लोग एक साथ बैठ कर टीवी देखा करते थे… रामायण और महाभारत के दिनों में तो मुझे याद है कि अकसर घरों में सुबह, आँगन में बाकायदा दरियां बिछा दी जाती थीं और मोहल्ले के तमाम लोग बैठ कर देखते थे… और कई तो उनमे नितांत अपरिचित हुआ करते थे…
एक अन्य कारण जो भारतीय मध्यम वर्गीय संपूर्ण परिवार को एक कमरे में सुलाता है वो है AC… पिछली गर्मियों में हम दोनों मियां बीवी, दिल्ली में अपनी बहन के घर गए थे…
वहाँ उसका पूरा परिवार और हम दोनों एकदम निर्विकार भाव से उनके drawing room में गद्दे बिछा के और AC चला के सोये… और हम में से किसी की भी भावनाएं आहत नहीं हुई और शीला दीक्षित और मनमोहन सिंह जी (तत्कालीन राज्य व केंद्र सरकारों के मुखिया) ने भी बिलकुल बुरा नहीं माना…
एक और किस्सा याद आता है मुझे… पुरानी बात है… हम दोनों जम्मू गए थे… अपने एक दोस्त के घर… छोटा सा घर था उनका… उसी छोटे से घर में उनका भरा पूरा संयुक्त परिवार रहा करता था…पर उस छोटे से घर में भी अथाह प्रेम था…
रात को हमारे लिए एक अलग कमरे में अलग बिस्तर लगा दिया गया… तो मैंने अपने उस यार से कहा… देख भाई हम आये हैं तुझसे मिलने… अपन तो यहीं सोयेंगे… इसी कमरे में तेरे साथ… देर रात तक गप्पें मारेंगे… अपना बिस्तर तो यहीं लगा दे… ज़मीन पे…
उसके पिता जी कुछ असहज हो रहे थे पर हमने उन्हें समझा लिया… पिछले 20 सालों में कितनी ही बार हम उनके घर गए… हर बार वहीं… उसी कमरे में गद्दे बिछा के सोते हैं…
खुशकिस्मती से हम लोगों की ego आड़े नहीं आती… भारतीय परिवार और समाज की वात्सल्य, प्रेम, अपनत्व, और साहचर्य की भावनाओं को पाश्चात्य जगत को समझने और ग्रहण करने में सदियों लगेंगी.