कहते हैं कि कुछ लोग पैदा ही महान होते हैं, कुछ अपने काम से महान बन जाते हैं, और कुछ पर महानता थोप दी जाती है.
इसका उदाहरण देखना हो तो इतिहास में बहुत पीछे नहीं जाना पड़ेगा. इसके लिए कुछ ज्यादा पढ़ने लिखने की भी जरुरत नहीं है. जाने माने नाम ही आपको इस बात की सच्चाई समझा देंगे.
जैसे आपने एलेग्जेंडर, नेपोलियन या फिर विवेकानंद और भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे लोगों का नाम सुना होगा. गौर कीजिये तो याद आ जाता है कि इनमें से कोई बड़ी लम्बी उम्र नहीं जिया था. पैंतीस वर्ष जैसी आयु में इनकी मौत हो गई थी.
इन्हें महान बनने का समय कब मिल गया? इतने में तो कई भारतीय आज अपनी पीएचडी भी पूरी नहीं कर पाते! दरअसल ये लोग पैदा ही महान हुए थे.
आपने मेल्कॉम एक्स का नाम भी सुना होगा, नेल्सन मंडेला का भी, लाल बहादुर शास्त्री का नाम भी, सुभाष चन्द्र बोस तो आज चर्चा में हैं ही, कलाम जैसे नाम भी याद होंगे.
ये लोग पैदा बड़ी ही साधारण स्थितियों में हुए थे लेकिन इन लोगों ने हालात से ऐसी जोरदार टक्कर ली कि जबरन इतिहास को इनके नाम याद रखने पड़े.
इतने लम्बे समय तक इनका संघर्ष चला था जितने में कई लोग आत्महत्या कर लेते हैं.
बहादुरी से लड़कर अपना नाम दर्ज़ करवाने वालों में ‘निर्भया’ ज्योति सिंह का नाम भी याद रखना चाहिए. वो खुद तो वीरगति को प्राप्त हुई लेकिन भारत का कानून अपने साथ ही बदल गई थीं. ये लोग अपने काम से महान हो गए हैं.
आपको एक राज परिवार की बहुरानी भी याद है. आपको उसी राजपरिवार के युवराज भी याद हैं.
ऐसे ही परिवारों से आने वाले मुख्यमंत्री भी देखे होंगे. ये सब वो लोग थे जिनपर महानता थोपी गई है.
गजेन्द्र की मौत होते ही उसका उत्सव मनाया जाने लगा. राजीव गाँधी की मौत पर हुए उत्सव से ही कांग्रेस सत्ता में आई थी.
कहीं अपराधी के जेल जाने का उत्सव मनाकर उसकी पत्नी को राजगद्दी सौंपी गई है.
ऐसे ही अपनी माँ की मृत्यु पर उत्सव मनाती हुई मल्लिका “संवेदना नहीं व्यक्त की” जैसी शिकायत करके अपने लिए सहानुभूति जुटाने की राजनीति करती हैं.
आपको वो गजेन्द्र नाम का तथाकथित ‘किसान’ भी याद होगा. शुक्र है वो मर गया था और खुद पर महानता थोपे जाने की शिकायत नहीं कर पाया.
मुझे हमदर्दी है, रोहित वेमुला के पिता से, जो कहते हैं कि उनके बेटे कि मौत पर रोने का ढोंग करने वाले दरअसल लाश नोचने वाले गिद्ध हैं.
मुझे हमदर्दी उस SFI से भी है जिसे रोहित वेमुला दलितों को दलितों के खिलाफ लड़ाने से मना करता था.
मुझे हमदर्दी दलित चिंतकों से भी है, जो खुद के कारनामे दूसरे दलितों पर थोपने के प्रयास में लगे हैं.
बस इस बार थोपी गई महानता के साथ-साथ थोपे गए आरोप भी अच्छे से नहीं चिपक पा रहे.