रटाने की नहीं, कर के देखने वाली चीज़ है विज्ञान

भारत में बहुत सारे स्कूलों में विज्ञान पढ़ाया तो जाता है किंतु लेबोरेटरी की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में बहुत से छात्र केवल पुस्तक रटते हैं, प्रायोगिक रूप से कुछ कर के देख नहीं पाते.

आज आपको अपने बचपन का एक अनुभव बताता हूँ. हुआ ये कि हम क्लास XII में थे और भौतिकी में एक टॉपिक था Electromagnetic Induction. इसमें क्या होता है कि बिना बैटरी या कनेक्शन के तार में करंट पैदा होता है.

आप एक तार लीजिए और उसको (एक) वृत्त या स्प्रिंग (जिसमें कई वृत्त होते हैं) के आकार में मोड़ दीजिये. इसके अंदर से जब चुम्बक आर-पार ले जाएंगे तो तार में करंट दौड़ेगा.

जब माइकल फैराडे ने ये पहली बार बताया था तो सबने उपहास किया था. इस पर फैराडे ने क्रोध में आकर चुम्बक तेजी से वृत्त की ओर फेंका. ऐसा करने से गलवनोमीटर में करंट की मौजूदगी दर्ज हुई और पता चला कि जब तक चुम्बक बढ़ती हुई गति से वृत्त के आर पार नहीं होगा तब तक करंट नहीं पैदा होगा.

NCERT की पुस्तक में ये सब पढ़ लेना एक बात होती है और खुद अपनी आँखों से देखना अलग बात है. आप खुद सोचिए की 10 साल पहले के एक XII के बच्चे को आप कैसे यकीन दिलाते की बिना किसी सोर्स बैटरी या कनेक्शन के भी करंट पैदा हो सकता है.

मुझे भी सिर्फ पढ़ के यकीन नहीं हुआ था. तब अपनी खातिर एक demonstration करने की इच्छा हुई. एक चौड़ी पाइप नुमा चीज़ चाहिए थी जिस पर तार की कई परत लपेटा जा सके.

हमारे गली के पास बुनकर रहते थे. हम लोग घर में सिलाई के लिये जो धागा इस्तेमाल करते हैं वो बहुत कम लम्बाई का होता है गत्ते के छोटे से पाइप पर लपेटा होता है, लेकिन जो धागा बुनकर इस्तेमाल करते हैं वो दफ़्ती के मोटे पाइप पर लपेटा हुआ मिलता है.

जब सड़क किनारे कूड़ा फेकने के लिये गए तो बाँछे खिल गयीं. एक नहीं ढेरों पाइप फेंके पड़े थे. लोगों के कचरे से कुछ गन्दे हो गए थे; कुछ जो साफ़ दिख रहे थे हम वो बटोर लाए और घर में नहीं बताए वरना कूड़ा बटोरने के एवज में डांट पड़ती.

बाजार से एक लम्बा चुम्बक और तार प्राप्त हुआ. अभी एक भारी समस्या और थी कि जब करन्ट बहेगा तो पता कैसे चलेगा. लेबोरेटरी में प्रयुक्त होने वाला ammeter महंगा होता था, अपने बस की बात तो नहीं थी.

तब भौतिकी का एक और सिद्धांत काम आया. जब भी कहीं भी करंट बहता है तो अपने इर्द गिर्द चुम्बकत्व पैदा करता है और एक चुम्बक दूसरे चुम्बक पर प्रभाव डालता है. तो जब हमारे तार में भी करन्ट बहता तो चुम्बक पैदा होता.

उस चुम्बक के पास यदि एक दूसरा चुम्बक लाया जाए तो या तो वो दूर भागेगा या चिपकेगा. मने पता चल जाएगा कि वाकई में करन्ट बह रहा है. ये दूसरा चुम्बक compass यानि दिशासूचक यानि कुतुबनुमा के रूप में 20 रूपए में मिल गया.

अब हमने तार लपेटा पाइप पर और दोनों सिरा मिला कर दिशासूचक पर लपेट दिया और टेप से चिपका दिया. पर समस्या ख़तम नहीं हुई थी. जिस चीज़ की जरूरत थी वो था ‘त्वरण’ यानि acceleration.

चुम्बक को पाइप के अंदर से बढ़ती हुई गति से आर-पार करना था और हमारा हाथ इतना छोटा नहीं था कि पाइप में घुस सके. तभी याद आया कि धरती माता हम सबसे इतना प्रेम करती है कि हर गिरने वाली चीज़ को बढ़ते हुए वेग से अपनी तरफ खींचती है. समाधान मिल गया.

हमने पाइप को सीधा खड़ा किया और चुम्बक थोड़ा ऊपर ले जा कर छोड़ा तो वो त्वरण के साथ उसके अंदर से गुज़रा और compass की needle फट से घूम गयी. उस दिन इतना मजा आया कि हम दिन भर यही करते रहे.

ये कोई अविष्कार नहीं था, एक छोटा सा demonstration था भौतिकी के एक छोटे से सिद्धांत को समझने के लिये, कि बिना बैटरी या मेन कनेक्शन के भी करन्ट का अस्तित्व है. इसी सिद्धांत से dynamo generator आदि चलते हैं.

बात ये है कि ये सब स्कूलों में कर के नहीं दिखाया जाता जबकि विज्ञान कर के देखने वाली चीज़ है. हमें आज भी एक मुए पगलेठ अंग्रेज़ टीचर जॉन डाल्टन की सौ साल पुरानी atomic theory रटाई जाती है.

एक बार Science Reporter में प्रो० सी एन आर राव का इंटरव्यू छपा था जिसमें उन्होंने कहा कि स्कूलों का पाठ्यक्रम इतना पुराना और बेकार है कि उसे पढ़ के कोई भी आधुनिक विज्ञान के साथ कदमताल नहीं मिला सकता.

मेरा मानना है कि विज्ञान कभी पुराना नहीं होता बस आप जो कुछ भी पढ़ायें उसे प्रत्यक्ष कर के दिखाएँ. स्कूलों में लेबोरेटरी की व्यवस्था सुधार दीजिये छात्र आधुनिकता के साथ कदमताल मिला लेगा. अभिभावक बच्चे के स्कूल में जाकर यह पूछने की जहमत भी नहीं करते कि हमारे लाल को प्रयोगशाला का मुंह क्यों नहीं दिखाते.

Comments

comments

LEAVE A REPLY