पृथ्वी का प्राचीन इतिहास बहुत संदिग्ध रहा है. इन दिनों मैं एरिक वॉन डेनिकेन (Erich Von Daniken) की लिखी ‘चेरियट्स ऑफ़ द गॉड्स ‘ पढ़ रहा हूँ और हर पन्ने के साथ दिमाग में मचता तूफ़ान और तीव्र होता जा रहा है. पेश है इस तूफ़ान का एक कतरा
अठारहवी सदी की शुरुआत में दो ऐसे प्राचीन नक्शों की जानकारी मिली, जिनकी मदद से पृथ्वी को पूरी तरह जाना जा सकता था.
तुर्किश नौ सेना एडमिरल पिरी रैस (Piri Reis) के पास ये नक़्शे थे. उसे ये किसने दिए, इस बारे में कोई नहीं जानता। पता चला कि ये नक़्शे उसके पास सन 1513 के वक्त से ही थे.
ये नक़्शे टॉपकोपी महल में पाये गए थे और बाद में इन्हे इंग्लैंड स्टेट लाइब्रेरी में पहुंचा दिया गया. इनमें भूमध्य सागर और दुनिया का सबसे निचला बिंदु कहा जाने वाले मृत सागर का भी उल्लेख था.
अमेरिकन कार्टोग्राफर अर्लिंगटन मेलेरी ने इन नक्शों की जाँच करने पर पाया कि इसमें दिए सारे आंकड़े सही हैं लेकिन सही स्थान पर नहीं दिख रहे हैं.
इसके बाद उन्होंने आधुनिक पृथ्वी के ग्लोब के आधार पर एक ग्रिड बनाकर नक्शों को उस पर अप्लाई किया। जो नतीजे आये, वो होश उड़ाने के लिए काफी थे.
न केवल ये प्राचीन नक़्शे पृथ्वी की सरंचना के आधार पर बिलकुल ठीक निकले बल्कि भूमध्य सागर, मृत सागर, उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, अंटार्कटिका की रेखाएं, पहाड़िया, आइसलैंड, पठार सभी सूक्ष्मता से नक्शों में दिखाई दे रहे थे.
वैज्ञानिक इस सूक्ष्मता की पराकाष्ठा से अचम्भित थे. सबसे बड़ा आश्चर्य नक्शों में अंटार्कटिक का पहाड़ी क्षेत्र दर्शाया गया था.
1952 से पूर्व ये इलाका हमारे वैज्ञानिक खोज ही नहीं सके थे क्योंकि ये क्षेत्र हज़ारों साल से बर्फ की मोटी परत के नीचे दबा हुआ है.
खुद हमारे भू वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र का नक्शा ‘इको साउंड तकनीक’ की मदद से तैयार किया था. सवाल यही है कि जो क्षेत्र ‘इको साउंड तकनीक’ से देखा जा सका, वो इन प्राचीन नक्शों में कैसे दिखाई देता है.
कौन थे वो प्राचीन वैज्ञानिक, जो ‘इको साउंड’ जैसी तकनीक 15वीं सदी से पहले जानते थे.
(चित्र पिरी रैस के नक़्शे का ही है)
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