आज प्रो. सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्मदिन है. प्रो. सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को हुआ था. वे देश के पहले National Research Professor थे. वैज्ञानिकों को सम्मानित करने के लिये ये पद नेहरू ने सृजित किया था. कुछ दिन पहले तक भारत रत्न प्रो. CNR Rao इस पद को सुशोभित कर रहे थे.
जिस गॉड पार्टिकल की खोज विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला CERN में 4 जुलाई 2012 को 99.99% सटीकता से की गयी, उसे बोसॉन कण कहा जाता है. प्रो. बोस के नाम पर ही इन कणों का नाम रखा गया.
क्यों रखा गया? इसलिए नहीं रखा गया कि उन्होंने ये कण खोज लिये थे. भौतिकी की एक शाखा है Particle Physics. इसमें अति सूक्ष्म sub atomic कणों का अध्ययन किया जाता है. यानि ऐसे कण जो परमाणु से भी छोटे हैं. इन कणों के व्यवहार को समझने के लिये हम क्वांटम सिद्धांतों का सहारा लेते हैं.
ये बहुत जटिल गणितीय विद्या है जो सूक्ष्म कणों के व्यवहार की व्याख्या करती है. बड़े objects जैसे कि हम आप, नदी, पहाड़, मोटरगाड़ी, उल्का पिंड या ग्रहों की चाल की व्याख्या करने में क्वांटम भौतिकी लगभग असमर्थ है.
ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादा बड़े द्रव्यमान वाली चीजें अलग तरीके से कार्य करती हैं और पदार्थ के अति सूक्ष्म कण जिनका द्रव्यमान लगभग नगण्य होता है उनका व्यवहार, गति और चाल बड़ी तेजी से बदलते हैं. इतने तेज़ की आप किसी इलेक्ट्रॉन की गति और स्थिति दोनों एक साथ पता नहीं लगा सकते.
गणनाएं करने के लिये प्रायिकता का सहारा भी लिया जाता है. जिस चीज को हम सटीकता से माप नहीं सकते उसे सांख्यिकी या statistics की सहायता से गणना करते हैं.
मैक्स प्लांक ने क्वांटम भौतिकी की आधारशिला रखी थी और कहा था कि ऊर्जा सूक्ष्मतम स्तर पर छोटे छोटे पैकेट में उत्सर्जित होती है. बाद में परमाणु की खोज हुई आइंस्टीन ने प्रकाश के कण फोटॉन के बारे में बताया.
इससे पहले लुडविग बोल्ट्ज़मान ने बताया था कि thermodynamics यानि ऊर्जा भौतिकी को सांख्यिकी से समझाया जा सकता है. जैसा कि एक चैंबर में गैसों का व्यवहार क्या होगा.
सत्येंद्र बाबू ने सोचा कि ऊर्जा सांख्यिकी यदि क्वांटम स्तर पर प्रयोग की जाए और प्लांक के सूत्र को नए तरीके से लिखा जाये तो क्या होगा. उन्होंने कल्पना की एक बक्से में विचरते अनगिनत फोटॉनों की और उनके व्यवहार को नए तरीके से ‘क्वांटम सांख्यिकी’ से समझाया.
उन्होंने पेपर लिखा और Philosophical Magazine को भेज दिया लेकिन वो छपा नहीं. भारतीय वैज्ञानिकों ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. बोस ने 1924 में अपना पेपर आइंस्टीन को भेज दिया जिन्होंने उसे जर्मन में अनुवाद कर के छपवाया और बोस को जर्मनी आने का न्योता भेज दिया.
बोसॉन कणों के सन्दर्भ में सत्येन्द्रनाथ बोस और अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक ‘सांख्यिकी’ सिद्धांत विकसित किया था जिसे हम Bose-Einstein Statistics के नाम से जानते हैं. इन नियमों को मानने वाले पदार्थ के वे मौलिक कण बोसॉन कहलाते हैं.
ये कण देखे नहीं जा सकते. कई कणों को आपस में टकरा कर इन कणों के वजूद को detect किया जाता है. सबसे पहले इनके अस्तित्व के बारे में Peter Higgs ने बताया था इस कारण इनका नाम हिग्स-बोसॉन रखा गया. ब्रह्माण्ड की संरचना में आधे कण हिग्स बोसॉन ही हैं.
आइंस्टीन के साथ शोध करते हुये बोस ने एक और खोज की जिसे हम Bose Einstein Condensate (BEC) के नाम से जानते हैं. हम और आप दरअसल सिर्फ ठोस, गैसीय और जलीय पदार्थ से परिचित हैं लेकिन प्रकृति में तथ्यों से ज्यादा अचम्भे भरे पड़े हैं. ऐसी ही अचंभित करने वाली पदार्थ की अवस्था है BEC. बोसॉन कणों की ये अवस्था -273.5℃ पर मिलती है.
सत्येंद्र बाबू के बारे में कहा जाता है कि उनके स्कूल मास्टर ने परीक्षा में उन्हें 100 में से 110 नंबर दिए थे क्योंकि एक सवाल उन्होंने 10 अलग तरीके से हल किया था. MSc में सत्येंद्र बाबू और मेघनाद साहा– जो की भौतिकी के दूसरे बड़े विद्वान थे– दोनों को एक साथ फर्स्ट क्लास पास किया गया था.
विडंबना यही है कि हम अपने राष्ट्र की वैज्ञानिक प्रतिभा को नहीं निखारना चाहते उन्हें हमेशा से तभी पहचाना गया जब वे विदेश गए. प्रो बोस भारतीय संस्कृति और विचारों के प्रबल समर्थक थे. हमने उन्हें तब पहचाना जब 2012 में हिग्स बोसॉन कण खोजे गए और Peter Higgs उस वक़्त अपनी खोज का प्रमाण देख रो पड़े थे.