एक फिल्म थी मक़बूल जिसमें मुख्य किरदारों में से एक थे “अब्बा जी”. फिल्म में सारे ही लोग गुंडे बदमाश थे और आपसी खींच तान भी होती रहती थी. शुरुआत के ही एक दृश्य में एक नया नया चुनाव जीता नेता अब्बा जी के पास आकर बैठता है तो पान खाने जा रहे अब्बा जी यानि पंकज कपूर उस से भी पूछते हैं, गिलौरी खाओगे मियां?
नेता कह देता है कि वो पान नहीं खाता.
मगर ये जो नेता जी होते हैं वो अपनी ही धुन में थे और अब्बा जी के एक प्रिय नेता की बुराई करने लगते हैं. अब्बा जी दोबारा कहते हैं, गिलौरी खाओगे मियां?
मगर जीत के नशे में नेता जी का ध्यान नहीं जाता कि अब्बा जी भड़क चुके हैं. वो पान से इंकार कर के, अपनी बकवास जारी रखता है और कुछ ऐसा कह जाता है जो सीधा अब्बा जी को ही चोट कर जाती है. पहले से भड़के हुए अब्बा जी इस बार हत्थे से उखड़ जाते हैं. अचानक उन्होंने नेता का टेंटुआ धर के उसके मुँह में जबरदस्ती पान ठूंस कर उसे बिठा दिया!
अब अब्बा जी बोलते हैं, गिलौरी खाया करो मियां, ज़बान काबू में रहेगी.
जो फ़िल्मों के ट्रेड पंडित थे, उन्होंने “दिलवाले” के पहले दिन 40 करोड़ की कमाई का अंदाजा लगाया था. शाहरुख़-काजोल की जोड़ी वाली फ़िल्म में कैसी भीड़ होनी चाहिए थी ये अंदाजा तो कोई भी लगा सकता है. लेकिन मामला अब कुछ 20-22 करोड़ पर ही अटकता दिखता है. सीटों का हाल देखें तो सिनेमा हॉल करीब 70% बुक रहे. यह किसी भी फिल्म के साथ हो सकता है.
पोस्टर फाड़ने, या सिनेमा हॉल में तोड़ फोड़ के अलावा भी विरोध के तरीके होते हैं इसका अंदाजा तथाकथित “निष्पक्ष” लोगों को नहीं होगा. उन्हें थोड़े साल पहले का इतिहास देखना चाहिए जो उनके ही बंधु बांधवों ने गढ़ा है. ये जो बॉयकॉट और पिकेटिंग के तरीके हैं वो एक पुराने राम भक्त ने करीब सत्तर साल पहले इस्तेमाल किये थे. इनका असर लोग भूल गए थे, अब याद आने लगा होगा.
बाकि, गिलौरी खाओ मियां, ज़बान काबू में रहेगी !