असहिष्णुता एक शब्द है लेकिन पिछले एक महीने से इस शब्द को बार-बार भारत की जनता के कान में घोला जा रहा है. यह शब्द विशुद्ध रूप से भारतीय है लेकिन इस बार इसको आयात किया गया है.
जब से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व वाली राष्ट्रवादी विचारधारा वाली सरकार भारत में बनी है तब से पूर्व की सरकारों द्वारा पोषित मीडिया और हताशा के बीज विचारक इस शब्द का नगाड़ा बार बार बजा रहे है.
इसका नाद कुछ महीनों में ज्यादा तेज हो गया है और अब जब सारी स्वरलिपि समझ में आ रही है तब यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि यह ‘असहिष्णुता’ एक अंतराष्ट्रीय षडयंत्र है, जिसको आयात किया गया है.
आखिर वह लोग कौन है जिन्होंने इसको आयात किया है और उन्होंने क्यों किया है?
जब से नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत के आर्थिक उत्थान का नक्शा बनाया और उस को ज़मीनी शक्ल देनी शुरू की है तभी से, भारत पर अंदरुनी दबाव बनाये जाने की कोशिश शुरू हो गयी थी.
इस दबाव को नेपथ्य में धकेलते हुए जब मोदी जी ने भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता और आर्थिक व सामरिक गठजोड़ के कूटनैतिक प्रयास तेज़ किए और उसमें मिलती सफलता को देख कर, ‘असहिष्णुता’ का नारे लगने में एकदम से ज्यादा तेजी आ गयी है.
यह ‘असहिष्णुता’ का नाद, भारत विरोधी शक्तियों द्वारा लाया गया है जिसे उनके हित और भारत के अहित के लिए, भारत के ही लोग बजा रहे हैं. यह नाद भारत के विपक्षी राजनैतिक दलों के लिए एक नैसर्गिक खुराक है. जो भारत के भविष्य के दूरगामी परिणामो की चिंता किये बिना, तत्कालीन राजनैतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
उनको इस बात से कोई मतलब नहीं है कि यह भारत और उसके समाज के लिए हितकर है या नहीं, या फिर उससे आग लगेगी कि नहीं. इस सबको गैर राजनैतिक रंग देने के लिए, इस बार भारत विरोधी शक्तियों ने ‘असहिष्णुता’ का नाद अपने गुलाम भारतीय मीडिया और वैचारिक रूप से भ्रष्ट तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग से करवाया है.
इस ‘असहिष्णुता’ को आयात करने वाला देश चीन है, जिसके इशारे पर यह सब कुछ हो रहा है. इसको करवाने के पीछे चीन के पास, उसके अपने हित के लिए दो महत्वपूर्ण कारण है.
पहला कारण आर्थिक है. विश्व की सभी वित्तीय संस्थाए और प्रबुद्ध मंडल भारतीय भविष्य पर अपने-अपने आंकलन दे चुके है. सभी का मानना है कि जिस रफ़्तार को भारत पकड़ रहा है, उस रफ़्तार से अगले दो दशको में भारत की आर्थिक विकास की दर, चीन को पछाड़ देगी.
चीन की बूढी होती जनसंख्या दो दशकों में लड़खड़ा जाएगी और यह लड़खड़ाहट, चीन के राजनैतिक एवं सामाजिक पटल पर उथल पथल करेगी, जिससे चीन भयाक्रांत है. वर्तमान में चीन के लिए यह आवश्यक है कि भारत अस्थिर रहे जिस कारण से, चीन में हो रहे विदेशी निवेश, भारत की तरफ अपना मुख न मोड़ सके. चीन चाहता है कि भारत चीन का स्पर्धी न बन कर सिर्फ बाज़ार बना रहे.
दूसरा कारण अंतराष्ट्रीय शक्ति संतुलन है. आज चीन का कूटनैतिक एकाधिकार एशिया और अफ्रीका में है. इस बात को अंतराष्ट्रीय समुदाय अच्छी तरह समझता है. भारत का संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य हो जाने और अमेरिका व दक्षिण, दक्षिण पूर्व एशिया में सामरिक गठजोड़ हो जाने से चीन का यह एकाधिकार खत्म हो जायेगा. इससे भारत सैन्य और कूटनीति के क्षेत्र में चीन के समकक्ष खड़ा हो जायेगा जो चीन को कभी भी मंजूर नहीं होगा.
इसी कारण से ‘असहिष्णुता’ का नाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के अंदर से करवाया जा रहा है. चीन की इस मंशा को पूरी करने में भारत की मीडिया, चीन के लिए काम कर रही है. भारत की इस सरकार की किसी भी उपलब्धि को भारत की जनता से छुपा दिया जाता है और अंतरराष्ट्रीय पटल पर यह संदेश दिया जाता है कि भारत की स्वतंत्र (?) मीडिया ‘असहिष्णुता’ को भारत की नई सरकार की एक मात्र अपलब्धि मानती है.
एक तरफ जहाँ मीडिया इस दुष्प्रचार में दिन रात लगी है, वहीँ देशद्रोही वामपंथी विचारक इन मीडिया के लोगों के लिए नए-नए एपिसोड बनाने में लगे हुए हैं. इस दुष्प्रचार से भ्रमित कई तटस्थ लोग भी, अपने-अपने स्वार्थो के अधीन, इन देशद्रोहियों का साथ दे रहे है.
कुछ पूर्व की सरकारों में मिलने वाले सत्ता सुख से वंचित होने के कारण इनका साथ दे रहे हैं, कुछ अपनी वैचारिक भूख को शांत करने के लिए, मुस्लिम वर्ग को भयातुर दिखाने के लिए इनके साथ खड़े हुए हैं.
कुछ अपने मुस्लिम या ईसाई परिवारजनों या मित्रों के प्रति आस्था को प्रगट करने के लिए इस असत्य का साथ देने के लिए, इन देशद्रोहियों का साथ दे रहे हैं. इस काम में इन लोगों को आर्थिक सहायता, चीन पोषित मानवाधिकार संस्थाएं एवं वेटिकन पोषित संस्थाएं कर रही हैं.
आज –
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो पिछले 68 वर्ष से राम राज्य में रह रहे थे.
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो किसी भी वैचारिक प्रश्न किये जाने से आहत हैं.
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो देश को बाज़ार बनाये रखना चाहते हैं.
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो हिन्दू को एक शर्म बनाना चाहते हैं.
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो भारत को एक परिवार का गुलाम देखना चाहते हैं.
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो अपने अवैध चीनी माँ बाप का नमक खा रहे हैं.
‘असहिष्णुता’ पर वो बात कर रहे हैं, जो मुसलमान को भारतीय होने से रोकते हैं.
इस ‘असहिष्णुता’ के दुष्प्रचार का विरोध करने के लिए, हम भारतीयों को अपनी राजनैतिक छाप हटाते हुए आगे आना चाहिए. इन भ्रष्ट और दिवालिया बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, इतिहासकारों द्वारा समाज में फैलाई जा रही वैचारिक असहिष्णुता और बौद्धिक अराजकता का मुंहतोड़ जवाब देना हमारा राष्ट्रीय धर्म है.
यह याद रखिये, भारत राष्ट्र ही प्रथम है.