नरेंद्र मोदी का जीवन मुझे गौतम बुद्ध के जीवन से मिलता-जुलता लगता है. बस, कालान्तर में लक्ष्य का अर्थ बदल गया. मैं गौतम बुद्ध पर लिखे लेख के सारे शब्द यहाँ नरेंद्र मोदी के लिए लिख सकती हूँ.
मोदी जी के बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने पति-धर्म नहीं निभाया. यदि सत्रह साल की उम्र में किसी बच्चे की शादी कर दी जाए, (हाँ, लड़का सत्रह साल की उम्र में बच्चा ही होता है, उसमें उस उम्र में विवाह को समझने जैसी प्रौढ़ता नहीं आई होती), और विवाह के बाद उसमे वैराग्य पैदा हो जाए तो आप क्या कर सकते हैं?
कल आपके जीवन में क्या होगा, आप आज उसके बारे में क्या कह सकते हैं? क्या सामान्य जीवन के लोभ छोड़ कर दुनिया से, घर गृहस्थी से विलग रहने का निर्णय इतना सरल होता है कि कोई भी ले ले? जो व्यक्ति हँसी-ख़ुशी शादी करता है या उस ज़माने में कम उम्र में कर दी जाती है, जिसमें बच्चों से उनकी राय पूछने को कोई महत्व नहीं दिया जाता, तो ऐसे में, (या कैसे में भी), कल को आपको जीवन से ही विरक्ति हो जाए तो आप क्या करेंगे?
भविष्य पर अपना नियंत्रण नहीं होता. मन की बदलती स्थितियों पर भी अपना नियंत्रण नहीं होता. जो अज्ञानी जन मोदी जी को पत्नी के प्रति गैर-ज़िम्मेदार कहते हैं, वे बताएँ कि क्या मोदी जी का उद्देश्य पत्नी को अहाने-बहाने छोड़ कर, अपनी गृहस्थी से मुक्ति पा कर अन्यत्र ऐयाशी करना था? उन्होंने इसलिए तो पत्नी को नहीं छोड़ा था कि उनका मन उनकी पत्नी से ऊब गया था? कि वे कोई दूसरी पत्नी करने जा रहे थे? उन्होंने पत्नी के जीवन में कोई अड़ंगा तो नहीं लगाया. फिर उनका सौभाग्य कि उन्हें अपनी पत्नी का मूक सहयोग मिला.
विवाह, पति-पत्नी धर्म जीवन के वृहत्तर धर्म नहीं हैं कि इनसे ऊपर कुछ नहीं है. इनसे ऊपर है, व्यक्ति का अपना मन, सुसंस्कारी मन, जो यदि एक वृहत्तर लक्ष्य के लिए तड़पता है तो उसे उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भटकने में सांसारिक सुखों का परित्याग करना ही होता है, यह बात दूसरी है कि उसके साथ जुड़े अन्य रिश्ते भी प्रभावित होते हैं. नरेंद्र मोदी में मुझे सच्चे साधु-संतों वाली गरिमा नज़र आती है. मैंने कहा था ना कि मैं वही शब्द नरेंद्र मोदी के लिए भी लिख सकती हूँ जो मैंने गौतम बुद्ध के लिए लिखे.
गौतम बुद्ध पर लिखा लेख
जब गौतम बुद्ध ने सुख साधनों का परित्याग किया, तब उनका उद्देश्य महात्मा बनना नहीं था. उन्हें तब मालूम भी नहीं था कि उस समय का किशोर-युवा सिद्धार्थ भविष्य में महात्मा की उपाधि से नवाज़ा जाएगा.
वह एक आरामपरस्त राजकुमारों वाला जीवन जी रहे थे. कल आपके जीवन में क्या होगा, आप आज उसके बारे में क्या कह सकते हैं? क्या उन्हें अपने राजसी ठाठबाट छोड़ते हुए कोई तकलीफ नहीं हुई होगी? क्या भिक्षा में मिला भोजन उनके शाही भोजन जैसा ही स्वादिष्ट रहा होगा, जिसे खाते हुए उनके मन में घर छोड़ने का क्या कोई मलाल आया होगा?
क्या ज़मीन पर पत्थरों पर सर्दी, गर्मी, बरसात की मार सहते हुए उन्होंने कभी पछतावा किया होगा कि राजसी आरामयुक्त जीवन का त्याग करके उन्होंने कोई गलती की है? क्या ऐश्वर्ययुक्त जीवन छोड़ कर संन्यास लेने का निर्णय इतना सरल होता है कि कोई भी ले ले?
जो व्यक्ति हँसी-ख़ुशी शादी करता है या उस ज़माने में कम उम्र में कर दी जाती है, जिसमें बच्चों से उनकी राय पूछने को कोई महत्व नहीं दिया जाता, तो ऐसे में, (या कैसे में भी), कल को आपको जीवन से ही विरक्ति हो जाए तो आप क्या करेंगे? भविष्य पर अपना नियंत्रण नहीं होता. मन की बदलती स्थितियों पर भी अपना नियंत्रण नहीं होता.
जो अज्ञानी जन गौतम को पत्नी के प्रति गैर-ज़िम्मेदार कहते हैं, वे बताएँ कि क्या गौतम बुद्ध का उद्देश्य पत्नी को अहाने-बहाने छोड़ कर, अपनी गृहस्थी से मुक्ति पा कर अन्यत्र अय्याशी करना था? गौतम बुद्ध ने इसलिए तो पत्नी को नहीं छोड़ा था कि उनका मन उनकी पत्नी यशोधरा से ऊब गया था? कि वे कोई दूसरी पत्नी करने जा रहे थे?
उनकी टूटन का अनुमान लगाइए, उन्होंने एक भिक्षुओं वाला जीवन जिया, जबकि उनकी पत्नी यशोधरा पूरे सम्मान और सुख-सुविधाओं के साथ महल में रहती रही. उन्होंने यशोधरा से यह तो नहीं कहा कि तुम भी महलों के सुख छोड़ कर मेरे साथ सत्य की खोज में चलो.
विवाह, पति-पत्नी धर्म जीवन के वृहत्तर धर्म नहीं हैं कि इनसे ऊपर कुछ नहीं है. इनसे ऊपर है, व्यक्ति का अपना मन, सुसंस्कारी मन, जो यदि एक वृहत्तर लक्ष्य के लिए तड़पता है तो उसे उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भटकने में सांसारिक सुखों का परित्याग करना ही होता है, यह बात दूसरी है कि उसके साथ जुड़े अन्य रिश्ते भी प्रभावित होते हैं.
लेकिन जैसा कि यशोधरा ने सिद्धार्थ के मानसिक कष्टों को समझ कर हालात के साथ समझौता किया, सारी शिकायतों के बावजूद अपने पुत्र राहुल को पालपोस कर बड़ा किया और एक दिन पति की भिक्षा में उन्हें उनका पुत्र ही दे दिया, यह कहानी अद्भुत है.